पब्लिक फर्स्ट । मृदुल जैन । एसोसिएट एडिटर ।
मेरी कोई औकात नहीं है…
मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले में हड़ताल कर रहे ड्राइवर्स से बातचीत करते हुए कलेक्टर साहब का पारा चढ़ गया, और उन्होंने सवाल-जबाब करते एक ड्राइवर भाई से पूछ लिया, तेरी औकात क्या है? भाई ने भी सटीक जबाब दिया…यही तो हमारी लड़ाई है कि हमारी कोई औकात नहीं है।
इस पूरे मामले में लोग कलेक्टर साहब को गलत नजरिए से देख रहे हैं, जबकि हकीकत में कलेक्टर साहब की कोई गलती ही नहीं है। दरअसल, 18 साल के “शिवराज” में अफसरों का बोल-बाला इस कदर रहा कि उन्होंने अपने सामने किसी की कोई औकात वाकई में ही नहीं समझी। शिवराज सरकार में मंत्री रहे भाजपा के कई नेता, इस हकीकत से रूबरू भी हो चुके हैं।
अब तक अफसर शाही के सामने किसी की कोई औकात न रहना, इस तथाकथित लोकतांत्रिक व्यवस्था का अंग बन चुका था, मगर नए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने गुना बस हादसे में ट्रांसपोर्ट कमिश्नर, कलेक्टर, एसपी, आरटीओ को हटाकर प्रदेश की जनता में उम्मीद जगाई कि सूबे की नई सरकार और उसके मुखिया को आम आदमी के मान और जान दोनों की परवाह है, लेकिन शाजापुर कलेक्टर का रवैया सरकारी प्रयासों को धता बता कर जनता को नाउम्मीद ही करता है।
आम आदमी की औकात पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले इस मामले की शुरुआत एक बेहद संवेदनशील प्रयास से शुरू हुई थी। अपने इस प्रयास के तहत शाजापुर कलेक्टर आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु हड़ताल कर रहे ड्राइवर्स को समझाइश दे रहे थे, यह समझाइश कब धमकी में तब्दील हो गई, कलेक्टर साहब को भी इसका भान नहीं रहा।
अब मसला यह है कि आम आदमी की औकात को धता बताने वाले इस मामले में प्रदेश की नई सरकार का क्या स्टैंड होगा? इस तरह का दुर्व्यवहार करने वाले अफसरों पर नकेल कसने के लिए नए मुख्यमंत्री मोहन यादव क्या एक्शन लेंगे, या फिर उस ड्राइवर की तरह ही मेरे-आपके जैसा हर आम आदमी यही सोचकर अफसरों के दुर्व्यवहार को नजरअंदाज करता रहेगा कि मेरी कोई औकात नहीं है। publicfirstnews.com