छत्तीसगढ़ के राज्यपाल रमेन डेका और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने सतनाम पंथ के प्रवर्तक बाबा गुरू घासीदास जी की 18 दिसंबर को जयंती पर प्रदेशवासियों को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं।
राज्यपाल रमेन डेका ने संत बाबा गुरू घासीदास की जयंती पर प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी है। राज्यपाल डेका ने कहा कि महान संत बाबा गुरू घासीदास ने सामाजिक, आर्थिक, शोषण और जातिवाद, सामंतियों के अन्याय और अत्याचार के विरूद्ध आवाज उठायी। उन्होंने मानव-मानव एक समान है का संदेश देकर सद्मार्ग में चलने का रास्ता दिखाया। राज्यपाल डेका ने कहा कि समाज को एकता के सूत्र में पिरोने वाले बाबा गुरू घासीदास शांति, समरसता और सद्भावना के प्रतीक हैं। समाज में व्यास भेदभाव एवं असमानता को दूर कर समता मूलक समाज स्थापित करने के लिए नई दिशा प्रदान करने में उनका अतुलनीय योगदान है। उनके उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा है कि बाबा गुरू घासीदास जी ने अपने उपदेशों के माध्यम से दुनिया को सत्य, अहिंसा और सामाजिक सद्भावना का मार्ग दिखाया। उन्होंने सम्पूर्ण मानव जाति को ’मनखे-मनखे एक समान’ का प्रेरक संदेश देकर समानता और मानवता का पाठ पढ़ाया। बाबा जी ने छत्तीसगढ़ में सामाजिक और आध्यात्मिक जागरण की आधारशिला रखी। उन्होंने लोगों को मानवीय गुणों के विकास का रास्ता दिखाया और नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना की। सीएम साय ने कहा कि गुरू घासीदास जी का जीवन दर्शन और विचार मूल्य आज भी प्रासंगिक और समस्त मानव जाति के लिए अनुकरणीय हैं।
जानिए कौन थे सतनाम पंथ के प्रवर्तक बाबा गुरू घासीदास?
छत्तीसगढ़ की सामाजिक सांस्कृतिक परम्पराओं की धुरी और संत परम्परा में अग्रणी गुरु घासीदास का नाम सर्वोपरि है। गुरु घासीदास का जन्म चौदशी पौष माह संवत 1700 को बिलासपुर जिले के गिरौदपुर नामक ग्राम में हुआ था. इनकी माता अमरौतिन तथा पिता का नाम महंगूदास था. गुरु घासीदास बाल्यावस्था से ही समाज में व्याप्त कुप्रथाओं को देखकर व्यथित हो जाते थे. शोषित वर्ग और निर्बल लोगों के उत्थान के लिए इस नन्हें बालक का हृदय छटपटाने लगता था, तड़प उठता था.
गुरु घासीदास बचपन में शांत और एकांत प्रिय रहते थे. आत्मसाक्षात्कार ही इनके जीवन का मुख्य लक्ष्य था.पशु बलि, तांत्रिक अनुष्ठान, जातिगत विषमता, जाति विभिन्नता, लोगों की उन्नति के लिए उनकी आत्मा में एक कसक उभर जाती थी.गुरु घासीदास जी ने भक्ति का अति अद्भुत और नवीन पंथ प्रस्तुत किया, जिसे सतनाम पंथ कहा गया. जिसमें सतनाम पर विश्वास, हिंसा का विरोध, व्यसन से मुक्ति, पर स्त्री गमन की वर्जना और दोपहर में खेत न जोतना हैं. उनका स्पष्ट कहना था.
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