वाल्मीकि रामायण का अंतिम अध्याय, उत्तर कांड, भारतीय जनमानस में गहरे स्थापित है, पर इसकी कथाओं पर अनेक विद्वानों ने बार-बार प्रश्न उठाए हैं।
सीता का परित्याग, शंबूक वध और लक्ष्मण का त्याग — क्या ये रामायण की मूल कथाओं का हिस्सा हैं या किसी युग विशेष में जोड़ी गई वैचारिक पुनर्रचना?
इस विशेष रिपोर्ट में पढ़िए —
उत्तर कांड के प्रमुख विवाद
परंपरागत बनाम आधुनिक दृष्टिकोण
ऐतिहासिकता और लोकपरंपरा का समीकरण
उत्तर कांड की प्रमाणिकता पर निर्णायक दृष्टिकोण
HIGHLIGHTS FIRST :
- वाल्मीकि रामायण के अंतिम कांड की प्रमाणिकता पर विद्वानों में मतभेद
- सीता का वनवास, शंबूक की हत्या और लक्ष्मण का त्याग –
- क्या ये श्रीराम की मूल कथा का हिस्सा हैं, या इतिहास से छेड़छाड़?
प्रस्तावना: रामायण का उत्तर कांड – सम्मान या संदेह?
वाल्मीकि रामायण को भारतीय संस्कृति का आधार माना जाता है। इसके कुल सात कांडों में से अंतिम उत्तर कांड सबसे अधिक विवादों में रहा है। यह कांड न केवल श्रीराम की राजधर्म निष्ठा को चुनौती देता है, बल्कि लोकन्याय और वर्णधर्म के बीच टकराव भी दर्शाता है। लेकिन सवाल यह है — क्या ये घटनाएँ सच में वाल्मीकि द्वारा रचित थीं, या किसी कालखंड में जोड़ी गईं?
विवादित घटनाएँ: उत्तर कांड को लेकर उठते मुख्य प्रश्न
उत्तर कांड में तीन कथाएँ विशेष रूप से चर्चा और आलोचना का केंद्र बनी हैं:
1. सीता का परित्याग
राज्य की जनभावना को देखते हुए श्रीराम द्वारा गर्भवती सीता को वन में छोड़ देना — यह निर्णय श्रीराम के चरित्र को कई दृष्टियों से कठोर एवं क्रूर दिखाता है।
2. शंबूक वध
एक शूद्र तपस्वी को केवल इसलिए मार देना कि वह ‘वर्ण धर्म’ के विपरीत तप कर रहा था — यह दृश्य वर्ण व्यवस्था और सामाजिक न्याय पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
3. लक्ष्मण का त्याग और जल-समाधि
लक्ष्मण का जान-बूझकर स्वयं को मृत्यु के लिए प्रस्तुत करना — श्रीराम के आदेश के कारण — एक आदर्श भाई की त्रासद विदाई जैसी प्रतीत होती है।
उत्तर कांड: प्रमाणिकता पर विद्वानों के मत
1. परंपरागत विद्वानों की मान्यता
• वे इसे रामायण का अभिन्न हिस्सा मानते हैं।
• हरिवंश, ब्रह्मांड, पद्म पुराण आदि में उत्तर कांड की कथाओं का संदर्भ मिलता है।
• कई संस्कृत भाष्यकारों ने भी इस पर टीकाएं लिखीं हैं, जैसे गोविंदराज और महेश्वरतीर्थ।
2. आधुनिक आलोचकों की दृष्टि
• डॉ. गोरे, डॉ. रामविलास शर्मा जैसे कई शोधकर्ताओं ने इसे बाद में जोड़ा गया प्रक्षिप्त अंश माना है।
• महाभारत के वनपर्व में जो रामकथा आती है, वह राज्याभिषेक पर समाप्त हो जाती है — न तो सीता निर्वासन, न शंबूक वध का कोई उल्लेख।
• भाषा, शैली और नीति में अंतर होने के कारण यह रचना शैली से भी अलग प्रतीत होती है।
संरचना और सांख्यिकी दृष्टिकोण से
• रामायण की कुल रचना: 24,000 श्लोक / 500 अध्याय
• उत्तर कांड की लंबाई: लगभग 111 अध्याय
• कई लोक परंपराएं इसे रामायण का ‘एपिलॉग’ या पश्चातकथा मानती हैं।
उत्तर कांड के प्रमुख कथानक
• सीता निर्वासन और वाल्मीकि आश्रम
• लव-कुश जन्म, बाललीला और राम से युद्ध
• अश्वमेध यज्ञ में लव-कुश का हस्तक्षेप
• सीता का पृथ्वी में प्रवेश (मृत्यु)
• लक्ष्मण का जल समाधि
राम का अवतार समापन और बैकुंठ गमन
संक्षिप्त निष्कर्ष
उत्तर कांड की प्रमाणिकता पर विद्वानों में मतभेद है।
लोक परंपराओं में यह विद्यमान है, लेकिन शास्त्रों की दृष्टि से यह प्रक्षिप्त माना गया है।
सीता निर्वासन और शंबूक वध जैसे प्रसंग, श्रीराम के आदर्श स्वरूप से टकराते हैं।
उत्तर कांड को एक आत्म-आलोचनात्मक ग्रंथ भी कहा जा सकता है — जहाँ आदर्श और राजधर्म का संघर्ष सामने आता है।
निष्कर्ष
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चंद्र जी का चरित्र एक आदर्श है । इसमें कई बिन्दु किसी भी आधार / तर्कों पर सही नही बैठती । इस कांड में कई प्रश्न हैं जिसका उत्तर – उत्तर कांड में संतुष्टि नहीं देते है ।
श्रीराम ने क्यों छोड़ी सीता? — उत्तर कांड में उठता बड़ा प्रश्न
रामायण का अंत लव-कुश युद्ध है? या युद्ध कांड में ही खत्म हो गई कथा?
शंबूक वध: धर्म रक्षा या वर्ण भेद?
लक्ष्मण का त्याग — न्याय या अन्याय?
उत्तर कांड: रामायण का हिस्सा या प्रक्षिप्त अध्याय?
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