- 15 अगस्त – धोखे का दिन!
- देश तोड़ने के दिन , जश्न क्यों ?
- अंग्रेज़ भागे कब? दिखाओ तस्वीर!
- लाखो हत्या – बलात्कार पर उत्सव !
15 अगस्त – झूठी आज़ादी के उत्सव की आड़ में भारत को तोड़ने पर पर्दा डालने का षड्यंत्र?
हर वर्ष जब 15 अगस्त आता है, तो देश “स्वतंत्रता दिवस” के रूप में इसे मनाता है।
स्कूलों में झंडा फहराया जाता है, गीत बजते हैं, और नेता भाषण देते हैं। लेकिन कोई यह पूछे – किस आज़ादी का जश्न मनाया जा रहा है?
क्या उस ‘आज़ादी’ का, जिसमें भारत माता के टुकड़े कर दिए गए?
क्या वाकई भारत को 15 अगस्त 1947 को पूर्ण स्वतंत्रता मिली थी ? या ये महज़ सत्ता का हस्तांतरण (Transfer of Power) था — अंग्रेज़ों द्वारा सत्ता अपने चुने हुए उत्तराधिकारियों यानी नेहरू और कांग्रेस के हाथों सौंप दी गई ? और क्या इस तथाकथित ‘स्वतंत्रता’ के साथ जो भयंकर विभाजन हुआ — जिसमें लाखों निर्दोष हिंदुओं और सिखों का कत्लेआम, बलात्कार और विस्थापन हुआ — उस पर मौन रहकर हम खुद से और अपनी सभ्यता से धोखा नहीं कर रहे ?
अगर अंग्रेज़ वास्तव में भागे होते, तो क्या कम से कम एक भी तस्वीर ऐसी नहीं होती जिसमें वे बदहवास भागते नज़र आते ? लेकिन जो तस्वीरें हैं, उनमें लॉर्ड माउंटबेटन जैसे अफ़सर ठाठ से बैठकर सत्ता हस्तांतरित कर रहे हैं।
या उस आज़ादी का, जो लाखों हिंदू-सिखों के बलात्कार, कत्लेआम और विस्थापन पर टिकी थी ?
गांधी-नेहरू-जिन्ना: तीन सिरों वाला एक ही षड्यंत्र
• जिस ‘आज़ादी’ की बातें गांधी, नेहरू और जिन्ना ने की, वह सच्ची मुक्ति नहीं, बल्कि सत्ता का सौदा था।
• इन नेताओं ने अंग्रेज़ों के साथ टेबल पर बैठकर अखंड भारत के टुकड़े करने की पटकथा लिखी। • गांधी ने ‘अहिंसा’ का ढोंग किया, नेहरू ने सत्ता के लिये आंखें मूंद लीं और जिन्ना ने धर्म के नाम पर देश तोड़ डाला।
क्या वाक़ई हम अंग्रेज़ों के गुलाम थे ??
मानसिक ग़ुलामी को वास्तविक ग़ुलामी बताने का षड्यंत्र
क्या ये संभव था ?? !!
अविभाजित भारत पर अंग्रेजों की सबसे अधिक संख्या 1930 के दशक में थी। 1931 की जनगणना के अनुसार, पूरे ब्रिटिश भारत में कुल 1,68,000 अंग्रेज (यूरोपियन) थे, जिनमें से अधिकांश अंग्रेज ही थे। इनमें लगभग 12,000 सरकारी अधिकारी, 60,000 सैनिक, और 21,000 व्यापारी या निजी क्षेत्र में कार्यरत थे।
इस हिसाब से, औसतन एक अंग्रेज लगभग 4000 भारतीयों पर शासन करता था, जबकि उस समय भारत की कुल आबादी लगभग 40 करोड़ थी। यह संख्या पूरे ब्रिटिश शासनकाल में सबसे अधिक मानी जाती है।
खून, आंसू और आग के बीच मिला ‘झूठा स्वराज’
• 1947 में भारत बंटा। लाखों हिंदू-सिख मारे गए।
• महिलाएं की आबरू लूटी गईं, बच्चे जलाए गए, घर-परिवार उजड़ गए।
• और इन्हीं लाशों पर खड़े होकर इन नेताओं ने खुद को “आज़ादी देने वाला” घोषित कर डाला!
अंग्रेज़ों को भगाया – भागते हुए अंग्रेज़ो की तस्वीर कहां है ?
• आज़ादी के नाटक में एक बड़ा झूठ ये था कि अंग्रेज़ों को ‘भगा’ दिया गया।
• सच तो यह है कि कोई युद्ध नहीं हुआ, कोई बगावत नहीं हुई, कोई हार नहीं हुई।
• नेहरू और माउंटबेटन की साथ चाय-नाश्ते की तस्वीरें तो मिलती हैं, लेकिन एक भी तस्वीर ऐसी नहीं जिसमें कोई अंग्रेज़ भागता दिखे!
ये कैसा ‘संग्राम’ था जिसमें दुश्मन को गुलाब देकर विदा किया गया?
यह दावा कि महात्मा गांधी और कांग्रेस की ‘अहिंसात्मक लड़ाई’ से अंग्रेज़ भारत छोड़ने पर मजबूर हुए, पूरी तरह ऐतिहासिक रूप से संदिग्ध है।
15 अगस्त: आज़ादी का दिन नहीं, गहरी नींद की शुरुआत :
• 15 अगस्त दरअसल देश को नींद की गोली देने का दिन था।
• जनता को ‘आज़ादी’ का झूठा सपना दिखाकर, असली सत्य पर परदा डाल दिया गया।
जब कोई परिवार उजड़ता है, उसके बच्चे मारे जाते हैं, उसकी बहू-बेटियाँ लूटी जाती हैं — और फिर कहा जाए कि “अब तुम आज़ाद हो”, तो क्या वह परिवार जश्न मना सकता है?
• न विभाजन की त्रासदी पर कोई न्याय हुआ, न पीड़ितों को इंसाफ मिला, और न ही आज तक पाकिस्तान से अपनी जमीनें वापस ली गईं।
• 15 अगस्त 1947 को भारत नहीं, बल्कि भारत माता के टुकड़े हुए थे।
• “भारत”, जो पहले से ही था, वो आज़ाद नहीं हुआ, बल्कि विभाजित किया गया।
• एक नया इस्लामिक राष्ट्र ‘पाकिस्तान’ अस्तित्व में आया और भारत से “धर्मनिरपेक्ष” रहने की कीमत पर यह सब सहने को कहा गया।
भारत का इतिहास लाखों वर्षों पुराना – इसमें ‘बंटवारे’ की कोई जगह नहीं
• क्या कोई बता सकता है कि भारत जैसे सनातन राष्ट्र में मुसलमानों का बंटवारे का हक़ कैसे आया?
- भारत कोई “बनाया हुआ” देश नहीं था। यह एक हज़ारों वर्षों पुरानी सभ्यता है जिसकी जड़ें वेदों, उपनिषदों और महाभारत जैसे ग्रंथों में हैं।
• अंग्रेज़ों ने भारत के संसाधनों को लूटा, लोगों को दबाया और मानसिक ग़ुलामी थोपी।
• क्या भारत के टुकड़े कर देने को हम ‘स्वतंत्रता’ कहेंगे या सभ्यता पर हमला?
• क्या यह संभव है कि जिनका इतिहास भारत में केवल 1400 साल पुराना हो, वो एक हज़ारों साल पुराने राष्ट्र के टुकड़े करवा दें?
निष्कर्ष:
15 अगस्त को आज़ादी का जश्न नहीं, भारत की आत्मा के साथ किये गए सबसे बड़े धोखे के रूप में याद किया जाना चाहिए।
ये दिन वह है जब भारत को यह सपना दिखाया गया कि वह मुक्त हो गया है, जबकि सच्चाई यह थी कि भारत बंट चुका था, रक्त में डूब चुका था, और सत्ता कुछ हाथों में समर्पित हो चुकी थी।
हमें इस दिन को “प्रायश्चित और प्रण” दिवस के रूप में मनाना चाहिए —
प्रायश्चित उस भूल का जो हमने गांधी-नेहरू जैसे लोगों को नेता बनाकर की और प्रण उस अखंड भारत को पुनः स्थापित करने का, जिसे छल-बल से तोड़ डाला गया।
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