गुरु पूर्णिमा: ज्ञान, श्रद्धा और परंपरा का उत्सव

गुरु पूर्णिमा भारत का एक पवित्र और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध पर्व है, जो आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह दिन उन सभी गुरुओं के सम्मान में समर्पित होता है, जिन्होंने हमारे जीवन को सही दिशा दी, हमें अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान का प्रकाश प्रदान किया।

गुरु का महत्व

‘गुरु’ शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है – ‘गु’ का अर्थ है अंधकार और ‘रु’ का अर्थ है उसे हटाने वाला। गुरु वह होता है जो अपने शिष्य को अज्ञानता के अंधकार से बाहर निकालकर ज्ञान और सत्य के मार्ग पर ले जाता है। हमारे जीवन में गुरु का स्थान माता-पिता और ईश्वर के समान होता है।

गुरु पूर्णिमा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

गुरु पूर्णिमा का ऐतिहासिक महत्व महर्षि वेदव्यास से जुड़ा हुआ है। इसी दिन उन्होंने वेदों का संकलन किया, महाभारत की रचना की और 18 पुराणों की संरचना की। इस कारण यह दिन ‘व्यास पूर्णिमा’ के रूप में भी जाना जाता है। ऋषि वेदव्यास को भारत में ज्ञान परंपरा का जनक माना जाता है।बौद्ध धर्म में भी गुरु पूर्णिमा का विशेष स्थान है। ऐसा माना जाता है कि भगवान गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद पहली बार अपने शिष्यों को सारनाथ में इसी दिन धर्म का उपदेश दिया था। इसलिए बौद्ध अनुयायी भी इस दिन को श्रद्धा और भक्ति से मनाते हैं।

परंपराएँ और रीति-रिवाज

इस दिन शिष्य अपने गुरु के चरणों में श्रद्धा के साथ पुष्प अर्पित करते हैं, उनका आशीर्वाद लेते हैं और उन्हें अपने जीवन की सफलता का श्रेय देते हैं। गुरुकुलों, आश्रमों और विद्यालयों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। कई लोग इस दिन व्रत रखते हैं, धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं और आध्यात्मिक साधना में लीन रहते हैं।

आधुनिक युग में गुरु की भूमिका

आज के समय में जब जीवन तकनीक-प्रधान और तेज़ी से बदल रहा है, गुरु की भूमिका केवल धार्मिक या शैक्षिक नहीं रह गई है, बल्कि वह एक मार्गदर्शक, मेंटर और प्रेरणास्त्रोत भी बन गया है। शिक्षक, माता-पिता, आध्यात्मिक गुरू, कोच, और कभी-कभी जीवन अनुभव भी हमारे गुरु बन सकते हैं।

निष्कर्ष

गुरु पूर्णिमा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि एक ऐसा अवसर है जो हमें जीवन में विनम्रता, कृतज्ञता और आत्मचिंतन की प्रेरणा देता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि जीवन में सच्चे मार्गदर्शन की कितनी आवश्यकता होती है।इस पावन अवसर पर आइए हम अपने गुरुओं को सच्चे मन से नमन करें, उनके बताए मार्ग पर चलें और समाज में ज्ञान, सेवा और सत्य का प्रसार करें।

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