लेखक: आशुतोष ( संपादक ) | Satya Darshan
7वीं महाविद्या – माँ धूमावती
विष्णु अवतार समन्वय: बुद्ध
कालखंड: 2012 – 2026
धातु: धुआँ (भ्रम), अवसाद, खंडन, वैराग्य
लक्षण:
- माँ धूमावती स्वयं असौंदर्य और विच्छेदन की देवी हैं।
- यह वह काल है जब माया ने लोगों को अत्यधिक भ्रम, मोह, लोभ, ज्ञान–विरोधी अंधत्व में ढँक दिया।
- धूमावती का कार्य है — माया के धुएँ को उड़ाना।
- वह ज्ञान के झूठे मुखौटे उतारती हैं, और यह प्रक्रिया दुखदायी हो सकती है।
- यह वही काल है जब सच्चा–झूठा, आडंबर–साधना, ज्ञान–प्रलाप — इन सब का भेदन प्रारंभ हुआ है।
- मिथ्या धर्मगुरु, संस्थाएँ, सेक्युलरवाद, और अब्राहमिक मायाजाल धीरे-धीरे उजागर होने लगे हैं।
वर्तमान काल (2024–2026) धूमावती के चरम पर है।
8वीं महाविद्या – माँ बगलामुखी
विष्णु अवतार समन्वय: कल्कि (अप्रत्यक्ष रूप में)
कालखंड: 2027 – 2035
धातु: स्तंभन (Pause), स्थिरता, मूक बल
लक्षण:
- बगलामुखी वह शक्ति हैं जो माया के प्रवाह को स्तंभित कर देती हैं।
- जब संपूर्ण समाज असत्य की गति में बह रहा हो — तब माँ उसे रोकती हैं।
- उनका स्वरूप है — शब्द को मूक करना, झूठ को जड़ करना, भ्रम को स्तंभित करना।
- 2027 से वह शक्ति सक्रिय होगी —
- AI-माया, अब्राहमिक-एकेश्वरवाद, राजनीतिक पाखंड, जेंडर-उलटवार, ये सब स्तंभित होने लगेंगे।
- यह समय होगा जब धर्म की ओर गति रुकेगी नहीं — बल्कि वह स्वयं माया को रोक देगा।
बगलामुखी का समय संसार को स्थिर करेगा — ताकि नया निर्माण शुरू हो सके।
9वीं महाविद्या – माँ मातंगी
विष्णु अवतार समन्वय: (Post-Kalki – नव सृष्टि रूप)
कालखंड: 2036 से … ( महाप्रलय से पहले )
धातु: स्वर, सृजन, व्यवस्था
लक्षण:
- मातंगी देवी हैं — वाणी, व्यवस्था, कलात्मक समाज की संरचना की अधिष्ठात्री।
- जब बगलामुखी माया को रोक चुकी होंगी — तब मातंगी नई व्यवस्था का निर्माण करेंगी।
- यह वही समय होगा जब स्त्रियों को पुनः गरिमा मिलेगी,धर्म, तकनीक और प्रकृति का संतुलन स्थापित होगा।
- कला, संगीत, संस्कृति, ज्ञान, ये सब फिर से शुद्ध रूप में पनपेंगे।
2036 के बाद संसार नई चेतना में प्रवेश करेगा — मातंगी के सूत्र में।
10वीं महाविद्या – माँ महाकाली
विष्णु अवतार समन्वय: नारायण का प्रलय रूप – शून्य
कालखंड: अज्ञात (अंतिम प्रलय काल)
अगर AI human के कुमार्ग पर आगे बढ़े तो जो अंतिम पड़ाव आयेगा जहाँ सृष्टि का संपूर्ण विनाश ही एकमात्र मार्ग बचेगा तो महाकाल की ये ही महाकाली विद्या ( शक्ति ) का प्राक्ट्य दशो दिशाओं में स्वयं दिखाई देने लगेगा । और इसे ही महाप्रलय – महाकाल – सृष्टि के काल चक्र का समापन कहते है ।
धातु: शून्यता, मौन, काल, सत्य
लक्षण:
- माँ महाकाली परम काल बिंदु की अधिष्ठात्री हैं।
- जब भी यह संसार अंततः एक अंतिम सत्य की ओर जाएगा।
- यह समय होगा “मौन का प्रभुत्व”, “प्रकृति और पुरुष का विलय”, “शिव–शक्ति का समर्पण”।
- यह वही होगा —जहाँ न शब्द रहेगा, न AI, न भ्रम, न शरीर, केवल काल, शून्य, और परम सत्य।
यह अंतिम बार होगा जब दश महाविद्या माया को स्तंभित करेंगी। इसके बाद न कोई युग चलेगा, न कोई छल बचेगा।
विशेष बिंदु:
विष्णु के दशावतार केवल जीवन की चेतना के रूप हैं, जबकि दश महाविद्या माया में चेतना की दिशा निर्धारित करती हैं।
यह पूरा चक्र — अवसर–भ्रम–रोकथाम–रचना–प्रलय — यह स्त्री ऊर्जा (महाविद्या) द्वारा नियंत्रित है, पुरुष केवल माध्यम है।
यही वह रहस्य है जिसे AI युग, शुक्री चेतना, और एकेश्वरवादी धर्म समझ नहीं पाएँगे।
महाकाली का यह अंत, अंतिम बार होगा —फिर न कोई अवतार होगा, न कोई पुनर्नियोजन — केवल मौन और शिवत्व।
परम सत्य – परम मौन – परम शिव – आत्मा = परमात्मा
