पब्लिक फर्स्ट । रिसर्च डेस्क । आशुतोष ।

शिव पुराण और स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, ब्रह्मा के पाँच सिर थे। चौतरफा ब्रह्माण्ड में सृष्टि का विस्तार करते-करते ब्रह्मा अपने ही रचे निर्माण (सरस्वती / सावित्री) के प्रति आकर्षित होने लगे। वेद-विरोधी कार्य, वासना और अहंकार जब चरम पर पहुँचे, तब प्रकट हुए—धर्म के रक्षक शिव।

उन्होंने रौद्र रूप में काल भैरव को आदेश दिया:

“इस अहंकार के सिर को काट दो—वरना ये सृष्टि भी अधर्ममय हो जाएगी!”

लेकिन फिर कथा पलटी गई… क्यों?

बाद की व्याख्याओं में इस धर्मयुद्ध को “ब्रह्महत्या” बताया गया!

भैरव को कहा गया—पापी, भटका हुआ, ब्रह्मदोषी!

पर क्यों?

क्यों एक ऐसे योद्धा को जो अधर्म का दमन करने चला था—उसकी छवि बिगाड़ी गई?

इसका उत्तर है—एक गहरा धार्मिक–राजनीतिक षड्यंत्र, जिससे सनातन धर्म की मूल चेतना को विकृत किया गया।

षड्यंत्र की परतें: जब धर्मरक्षक को अपराधी बना दिया गया

ब्रह्महत्या का पाप या अधर्म का दमन?

शिव की आज्ञा से काल भैरव ने जो कार्य किया, वह वेद-रक्षा और धार्मिक मर्यादा की पुनर्स्थापना थी।

वह हत्या नहीं, अधर्म का उन्मूलन था।

‘भटकाव’ का मिथक

काल भैरव ब्रह्मांड में भटके नहीं—बल्कि परिक्रमा की।
यह परिक्रमा एक चेतावनी थी:

“यह देखो सृष्टि के प्राणियों!
यहाँ तक कि सृष्टिकर्ता भी अधर्म करेगा, तो दंड से नहीं बचेगा!”

काशी और कपाल मोचन: पाप से नहीं, अधर्म से मुक्ति

काशी में जब काल भैरव ने पाँचवें सिर (कपाल) को त्यागा, तो यह किसी पाप से मुक्ति नहीं, बल्कि अधर्म के प्रतीक का अंत था।
काशी इसलिए ‘मोक्ष भूमि’ कहलाती है—यहाँ अधर्म की शक्ति निष्क्रिय हो जाती है।

पाँचवाँ सिर: आज भी जीवित है — प्रवृत्तियों के रूप में

कहानी वहाँ खत्म नहीं होती जहाँ सिर कटता है।
वह प्रवृत्ति समय-समय पर पुनः जन्म लेती है:

जब कोई सत्ता, पंथ या विचारधारा इन प्रवृत्तियों को पोषित करता है—वहीं से ब्रह्मा का पाँचवाँ सिर फिर उठता है!

आज की चेतावनी: मिथ्याचार से सच्चाई को बचाओ!

“धर्म का रक्षक ‘भटक रहा है’—ये कहना, धर्म को ही भटकाना है!”

जिस काल भैरव ने अधर्म को सबके सामने घुमाया, आज वही काल भैरव—मिथकों की आड़ में झूठा बना दिया गया।

यह आलेख आग्रह करता है:

  • सनातन धर्म के मूल स्वरूप को समझो।
  • प्रतीक और सत्यों को विकृत करने वालों से सतर्क रहो।
  • धर्म की रक्षा करने वालों को ‘पापी’ कहने वाले खुद अधर्म के पक्षधर हैं।

निष्कर्ष: काल भैरव – भटके नहीं, बल्कि चेताया

  • पौराणिक सत्य: ब्रह्मा का पाँचवाँ सिर – अधर्म का प्रतीक था।
  • शिव का आदेश: काल भैरव ने उसका वध कर धर्म की पुनर्स्थापना की।
  • परिक्रमा: अधर्म का परिणाम बताने के लिए किया गया ‘प्रदर्शन’।
  • काशी: मोक्ष-स्थली, जहाँ अधर्म की ऊर्जा समाप्त होती है।
  • भैरव: पापी नहीं, सनातन धर्म के रक्षक और शिव के आज्ञाकारी हैं।

सतर्क रहें: धार्मिक मिथकों में जो छिपाया गया है, वही आपके भविष्य की चेतना है!

publicfirstnews.com

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