पब्लिक फर्स्ट | जगदलपुर |राजेन्द्र बाजपेयी |

मानसून का शुरुआती दौर और उमस का वातावरण इसके उगने के लिए मुफीद होता है, इसका प्राक्रतिक उत्पादन भी कम पेचीदा नहीं है । साल वृक्षों के नीचे पनपने वाला बोड़ा साल के एक से दो माह तक ही निकलता है । जून से जुलाई तक यह बहुतायत में मिलता है बाद में यह डेढ़ से हजार रुपये तक गिर जाता है ज्यादातर महिलाएं साल वृक्षों की जड़ के आसपास कुछ भीतर तक खुदाई कर इसे निकालती हैं । इसके चाहने वाले इसे मटन और चिकन से भी स्वादिष्ट मानते हैं ।मशरुम की 12 प्रजातियों में बोड़ा एक मात्र जमीन के भीतर तैयार होता है । लोग इसके इतने दीवाने हैं कि चाहे जिस भाव बिके लेने को तैयार रहते हैं ।

दरअसल इसका जायका शुरुआती दौर में ही लजीज होता है बाद में यह धीरे धीरे कड़ा व रूखा होकर स्वाधीन सा हो जाता है ।बस्तर के ग्रामीणों के लिए यह तेंदूपत्ता और महुआ के बाद आमदनी का मुख्य स्त्रोत है। बारिश के मौसम की शुरुआत के साथ बोड़ा के बाजार में आने का सिलसिला शुरू हो गया है। प्राकृतिक रूप से एक निश्चित अवधि के लिए ही इसका उगना और इसकी स्वादिष्टता इसे अनोखी सब्जियों में शुमार करता है। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के साथ-साथ अन्य जिलों के रहवासी और पड़ोसी राज्य ओडिशा, तेलंगाना से भी बड़ी संख्या में लोग इसे खरीदने के लिए यहां पहुंचते हैं।

इस वर्ष मौसम की बेरुखी ने बोड़ा की आवक को प्रभावित किया है । लगभग एक पखवाड़े से बारिश की बूंद तक नहीं गिरी है । इसी वजह से यह महंगे दामों में बिक रहा है,शहर के मुख्य बाजार के साथ-साथ हर छोटे बड़े बाजार में बोड़ा आने लगा है। आवक शुरू हो गई है|जानकारों के मुताबिक बोड़ा में फाइबर, सेलेनियम, प्रोटीन, पोटेशियम, विटामिन डी और एंटीबैक्टीरियल प्रॉपर्टीज होते हैं। जिसके कारण शुगर , हाई बीपी , बैक्टीरियल संक्रमण , कुपोषण और पेट के रोगों के लिए इसे लाभदायक माना जाता है ।बोड़ा बेचने वाली दसरी बाई ने बताया कि शुरू में पहली बार जब बोड़ा आया तो 6 हजार किलो तक बिका । इस बार बारिश अच्छी न होने से फसल अभी नहीं निकल रही है ।सुंदरी के अनुसार बोड़ा की जितनी डिमांड होती है उतना उत्पादन नहीं होता। इसके शौकीनॉन की संख्या की अधिकता इसके मूल्य वृध्दि का कारण है। वैसभी यह सीजनल क्रॉप है जो केवल साल में डेढ़ से दो माह तक ही मिलती है।

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