भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए कोई नया या चौंकाने वाला चेहरा नहीं लाया, बल्कि हेमंत खंडेलवाल जैसे अनुभवी, संयमित और संगठन-सिद्ध नेता को चुना। इसके पीछे कई व्यावहारिक और रणनीतिक कारण हैं:
स्थिरता बनाम प्रयोग
2023 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव भाजपा ने मजबूत संगठन और स्पष्ट नेतृत्व में जीते। ऐसे में पार्टी किसी अनिश्चित “एक्सपेरिमेंट” या नया चेहरा लाकर संगठन में संघर्ष या अस्थिरता का जोखिम नहीं लेना चाहती थी।
हेमंत खंडेलवाल एक स्थिर, संतुलित और सर्वस्वीकार्य चेहरा हैं — जो पार्टी के अंदर किसी गुट से नहीं जुड़ते।
अनुभव और संगठनात्मक पकड़
खंडेलवाल पूर्व सांसद, दो बार विधायक, और बीजेपी जिला अध्यक्ष, राज्य कोषाध्यक्ष जैसे पदों पर रह चुके हैं।
संगठन में वे गहराई से रचे-बसे हुए नेता हैं, जिनका सभी स्तरों पर संवाद है। नए चेहरे को यह संगठनात्मक विश्वसनीयता हासिल करने में समय लगता।
क्षेत्रीय और सामाजिक संतुलन
मध्यप्रदेश में बीजेपी सांकेतिक प्रतिनिधित्व को लेकर सजग रहती है। खंडेलवाल महाकौशल क्षेत्र से आते हैं — जो लंबे समय से उपेक्षित महसूस कर रहा था।
साथ ही वे वैश्य समाज से हैं, जिसे पार्टी ने हाल के वर्षों में प्रमुख भूमिका में नहीं रखा था। यह सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश भी है।
संघ की पृष्ठभूमि और विश्वसनीयता
हेमंत खंडेलवाल संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े हुए, लो-प्रोफाइल लेकिन रिजल्ट-ओरिएंटेड नेता माने जाते हैं।
बीजेपी ऐसे ही नेताओं को प्राथमिकता देती है जो दिखावे से दूर, संगठन की रीति-नीति में ढले हुए हों।
2028 विधानसभा की तैयारी
BJP अभी से 2028 के मिशन पर नजर रखे हुए है। इसके लिए पार्टी को एक ऐसा अध्यक्ष चाहिए जो लंबी रेस का घोड़ा हो — जो एक-एक कार्यकर्ता से संवाद कर सके, गुटबाजी से दूर रहकर सभी को साध सके और नेतृत्व को चुनौती दिए बिना निष्कलंक तरीके से टीम को आगे ले जाए।
खंडेलवाल इस फ्रेम में पूरी तरह फिट बैठते हैं।
निष्कर्ष: भाजपा ने जोखिम के बजाय भरोसे का रास्ता चुना
बीजेपी ने प्रदेश में जोखिम भरा ‘नया चेहरा’ लाने की बजाय, अनुभव, संतुलन और स्वीकार्यता को तरजीह दी।
हेमंत खंडेलवाल का चयन व्यक्तिगत नहीं बल्कि संगठनात्मक मजबूती के आधार पर हुआ है।
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