उप्र के हमीरपुर शहर से सटी ग्राम पंचायत रमेड़ी डांडा, जिसे करीब दो दशक पूर्व नगर पालिका क्षेत्र में शामिल कर लिया गया था, आज भी विकास की बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। नगर सीमा का विस्तार तो हुआ, लेकिन सड़क, नाली, जल निकासी जैसी मूलभूत सुविधाएं यहां अब तक नहीं पहुंच सकीं।
बारिश के मौसम में चूरामन डेरा में कीचड़ और दलदल भरे रास्तों से लोगों को रोज गुजरना पड़ता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब ये क्षेत्र ग्राम पंचायत के अधीन था, तब कीचड़ और गंदगी जैसी समस्याएं इतनी भयावह नहीं थीं। उस समय प्रधानी चुनाव होते थे और समस्याओं का समाधान होता था।
शहरी सीमा में विलय, लेकिन विकास नदारद:
वर्ष 2017 के निकाय चुनाव के बाद हमीरपुर नगर पालिका ने अपना विस्तार करते हुए ग्राम पंचायत भिलावां, मेरापुर, ब्रह्मा का डेरा, रमेड़ी डांडा और कुछेछा जैसे गांवों को शहरी क्षेत्र में शामिल कर लिया था।
इन सभी डेरों में करीब 10,000 की आबादी निवास करती है। इन्हें नगर पालिका के अंतर्गत अलग-अलग वार्डों में मर्ज कर दिया गया था।
विकास की धीमी रफ्तार:
नगर पालिका क्षेत्र में आने के बाद भी इन इलाकों में सड़क निर्माण, सफाई व्यवस्था, जल निकासी, स्ट्रीट लाइट्स जैसी सुविधाएं अब भी अधूरी हैं।
केसरिया डेरा की सड़क, जो यमुना और बेतवा संगम तक जाती है, वह भी खराब हाल में है।
स्थानीय लोगों की नाराज़गी:
- “जब तक ग्राम पंचायत थी, तब स्थिति बेहतर थी। अब सिर्फ नाम शहरी हो गया, सुविधाएं नहीं।”
- “हम रोज कीचड़ से गुजरते हैं। कोई सुनवाई नहीं हो रही।”
निष्कर्ष:
शहरी क्षेत्र में शामिल किए गए ग्रामीण इलाकों को यदि विकास की मुख्यधारा से नहीं जोड़ा गया, तो नगर पालिका का विस्तार सिर्फ कागज़ों पर सीमित रह जाएगा। स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को जल्द हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि ग्रामीणों को भी मूलभूत सुविधाएं मिल सकें।
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