पब्लिक फर्स्ट। तराना / उज्जैन। अर्पित बोड़ाना ।
मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले की तराना तहसील के गांव मल्हारगढ़ का सरकारी स्कूल शिक्षा विभाग की लापरवाही और प्रशासन की अनदेखी का जीवंत उदाहरण बन चुका है। तराना-लक्ष्मीपुरा मेन रोड पर स्थित यह विद्यालय सुविधाओं के अभाव में बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
घास, गंदगी और जलभराव बना बड़ी चुनौती
स्कूल परिसर में चारों ओर घनी घास और गंदगी का साम्राज्य है, जिससे बच्चों को क्लासरूम तक पहुंचने में कठिनाई होती है। गांव का गंदा पानी स्कूल परिसर में जमा होता रहता है, और निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है।
पीने का पानी नहीं, शौचालय भी अनुपयोगी
विद्यालय में न तो पीने के पानी की व्यवस्था है, न ही शौचालय उपयोग लायक है। शौचालय बनने के बाद से ही बंद पड़ा है, और उसका रास्ता भी बाधित है। पूरे स्कूल में बदबू और अस्वच्छता का माहौल है, जहां बच्चों के लिए बैठना भी दूभर है।
सरकार के दावे बनाम जमीनी हकीकत
जहां एक ओर सरकार “स्वच्छ भारत” और “हाईटेक स्कूल” जैसे अभियानों का प्रचार कर रही है, वहीं दूसरी ओर मल्हारगढ़ का यह स्कूल विकास की अनदेखी का प्रतीक बन गया है। न खेल का मैदान है, न पर्याप्त क्लासरूम — सुविधाओं का पूर्ण अभाव है।
स्थानीय आवाज़ें, जिम्मेदारों की चुप्पी
स्थानीय शिक्षक और ग्रामीणों ने कई बार शिकायतें दर्ज कराई हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। यह स्कूल मेन रोड पर स्थित है, जहां से रोजाना अधिकारी और जनप्रतिनिधि गुजरते हैं, लेकिन किसी ने आज तक सुध नहीं ली।
निष्कर्ष:
मल्हारगढ़ का यह स्कूल शिक्षा तंत्र की गिरती साख और प्रशासन की उदासीनता की गवाही देता है। सवाल यह है — क्या अब भी आंखें खोलेंगे जिम्मेदार? या बच्चों का भविष्य ऐसे ही कीचड़ में सड़ता रहेगा?
