सागर (मध्यप्रदेश) से चौथे स्तंभ की साख पर बट्टा लगाने वाली चौंकाने वाली खबर सामने आई है। यहां की रहने वाली बबीता राजपूत नामक महिला ने नामचीन चैनलों के चार पत्रकारों पर ब्लैकमेलिंग, जबरन वसूली और मानसिक प्रताड़ना के गंभीर आरोप लगाए हैं।
पीड़िता की शिकायत
बबीता राजपूत ने आईजी सागर को दी गई लिखित शिकायत में बताया कि उनके पति एक छोटे से अस्पताल में कंपाउंडर का काम करते हैं। पिछले दो सप्ताह से लगातार
- IBC24 के पत्रकार शिवम तिवारी,
- NDTV से जुड़े हनी दुबे
- Zee News के पत्रकार पियूष साहू
- और आकाश अहिरवार
उनसे पैसों की मांग कर रहे थे।
घर में घुसकर धमकी और अशोभनीय कृत्य
पीड़िता ने बताया कि पैसे देने से इनकार करने पर चारों पत्रकार उसके घर पहुंचे और जबरन प्रवेश किया। आरोप है कि उन्होंने उसके पति को धक्का दिया और उस समय जब वह अपने बच्चों को दूध पिला रही थी, तब पत्रकारों ने वीडियो बनाना शुरू कर दिया।
जब पीड़िता ने इसका विरोध किया तो दंपत्ति को गंदी-गंदी गालियां दी गईं और धमकी दी गई कि अगर पैसे नहीं दिए गए तो यह वीडियो सभी चैनलों और सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया जाएगा।
व्हाट्सएप कॉल से दबाव
पीड़िता का आरोप है कि आरोपियों ने भोपाल स्थित चैनलों के अधिकारियों से भी व्हाट्सएप कॉल करवाई और उनके जरिए धमकाने का प्रयास किया। यहां तक कहा गया कि –
“हम पत्रकार हैं, हमारे खिलाफ पहले भी शिकायतें हुईं, लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया।”
पुलिस ने नहीं सुनी शिकायत
मामले की गंभीरता को देखते हुए पीड़िता मोती नगर थाने पहुंची, लेकिन वहां उसकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद महिला ने आईजी सागर से लिखित शिकायत करते हुए कहा कि यदि कार्रवाई नहीं हुई और वीडियो वायरल हुआ तो वह और उसका पति आत्महत्या करने को मजबूर होंगे।
बड़ा सवाल
इस घटना ने एक बार फिर पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर गहरा सवाल खड़ा किया है। जब पत्रकार ही आम लोगों से जबरन वसूली और ब्लैकमेलिंग में लिप्त पाए जाते हैं, तो पत्रकारिता के चौथे स्तंभ पर जनता का विश्वास डगमगाने लगता है।
पीड़िता ने अधिकारियों से मांग की है कि ऐसे तथाकथित पत्रकारों पर कड़ी कार्रवाई की जाए और चैनल प्रबंधन भी तत्काल इन्हें बाहर निकाले।
DISCLAIMER :
उक्त समाचार सोशल मीडिया पर वायरल शिकायत पत्र और पीड़ित के वीडियो बयान के आधार पर है। पब्लिक फर्स्ट के पास सोशल मीडिया पर वायरल, शिकायत कर्ता दंपत्ति का वीडियो बयान उपलब्ध है। मामले की सत्यता की जांच पुलिस या अन्य कानूनी एजेंसी ही कर सकती है।
