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इस आलेख में आप जानेंगे।

  • अब्राहमिक पंथों की सनातन जड़ें
  • कलियुग का सबसे बड़ा रहस्य।

महाभारत युद्ध में केवल राजवंश ही नहीं, अपितु अनगिनत ऋषि-मुनि, वेदज्ञानी और योद्धा भी काल के गाल में समा गए। पाण्डवों के पश्चात जब राजा परीक्षित ने शासन किया तो धर्म अभी स्थिर था। परंतु उनके बाद धीरे-धीरे कलियुग ने अपने पाँव पसारने प्रारम्भ किए।

महाभारत के बाद अज्ञान का उदय

महाभारत-उपरान्त की सबसे बड़ी त्रासदी यह थी कि —

  • संस्कृत का गहन ज्ञान रखने वाले ज्येष्ठ ऋषि अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए।
  • इससे आगे की पीढ़ी को मूल शास्त्रों तक शुद्ध पहुँच नहीं रही।

भविष्यपुराण का उल्लेख : कलि दानव और संस्कृत-लोप

भविष्यपुराण में एक रोचक और रहस्यमय प्रसंग आता है। वहाँ वर्णित है कि कलि दानव ने तपस्या कर भगवान विष्णु से वरदान पाया कि —

• वह लोगों के मन को भ्रमित करेगा।
• धर्म के मूल ज्ञान (संस्कृत वेद) धीरे-धीरे लुप्त होंगे।
• संस्कृत का स्थान प्राकृत भाषाएँ लेंगी।

यही कारण है कि महाभारत के बाद एक ओर संस्कृत विद्या लुप्त होने लगी, दूसरी ओर संस्कृत-शिक्षा को “दुर्लभ” बना दिया गया।

श्रीकृष्ण का गौतम अवतार और प्राकृत भाषा

भविष्यपुराण में उल्लेख है कि कलियुग में विष्णु ने गौतम नामक अवतार धारण किया।

इस अवतार का उद्देश्य था:

  • संस्कृत के स्थान पर प्राकृत भाषा का प्रसार।
  • जिससे विद्या का अपभ्रंश हो और ज्ञान धीरे-धीरे लोक से विलुप्त हो जाए।

यही वह मोड़ था जब वेद-ज्ञान सीमित हो गया और प्राकृत, अपभ्रंश, पाली, अवधी, ब्रज, फारसी, अरामी, हिब्रू जैसी भाषाओं की नींव पड़ी।

भाषाओं का विश्वव्यापी विखंडन

महाभारत-पूर्व युग में संस्कृत ही विश्वव्यापी ध्वनि-भाषा थी। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की ध्वनियाँ सम्पूर्ण ब्रह्मांडीय चेतना से जुड़ी थीं।

परंतु —

  • संस्कृत लोप के बाद भारत के बाहर यह ध्वनि-ज्ञान टूट गया।
  • स्थानीय लोग अपनी-अपनी ध्वनियों को अलग-अलग ढंग से बोलने लगे।
  • परिणामस्वरूप सैकड़ों भाषाएँ और बोलियाँ जन्मीं।

यह वही समय था जब यूरोप, मध्य-एशिया और मिस्र में भी भाषा का बिखराव हुआ।

शुक्राचार्य और ब्रह्मा के पाँचवे सिर की चाल

महाभारत के बाद का यह अज्ञानकाल ही वह समय था जब शुक्राचार्य ने अवसर साधा। उन्होंने —

  • अथर्ववेद के मंत्रों को उलटकर साधना की।
  • मृतकों को जीवित करने वाली संजीवनी विद्या को पिरामिड जैसी संरचनाओं में प्रयोग किया।
  • इस विद्या का दुरुपयोग कर नई भूत-प्रेत साधनाएँ प्रारम्भ कीं।

इसी योजना में उन्हें प्रेरणा मिली ब्रह्मा के पाँचवे सिर से —

वह सिर जो अहंकार और विकृति का प्रतीक था।

अब्राहमिक पंथ सनातन की शाखाएँ हैं, पर शुक्राचार्य और ब्रह्मा के पाँचवें सिर की भ्रांति से इनमें मूर्ति-विरोध और कट्टरता आ गई।

ब्रह्मा का पाँचवाँ सिर — Abraham का छिपा प्रतीक

सनातन परंपरा में वर्णित है कि ब्रह्मा का पाँचवाँ सिर अहंकार और वासना से भर गया था। यह सिर शास्त्र-विरोधी, मूर्तिपूजा विरोधी और “मैं ही परम” की भावना से ग्रसित था।

  • महादेव ने कालभैरव रूप में वह सिर काटा था, किंतु उसकी विकृत चेतना नष्ट नहीं हुई।
  • वही चेतना कालांतर में Abraham (अब्राहम) रूप में प्रकट हुई, जिसने मूर्ति-विरोध, एक ईश्वरवाद और वेद-विरोधी प्रवृत्ति को बीज रूप में स्थापित किया।

शुक्राचार्य और मृत संजीवनी विद्या

महाभारत युद्ध में जब असंख्य योद्धा मरे, तब उनके मृत शरीर और चेतना के सूक्ष्म आवरण धरती पर बचे।

  • शुक्राचार्य के पास पहले से ही मृत-संजीवनी विद्या थी, जो असुरों को पुनर्जीवित करने में सहायक थी।
  • युद्ध के बाद उन्होंने मिस्र के पिरामिडों में इस विद्या का प्रयोग किया।
  • पिरामिड इसीलिए बनाए गए — यह मात्र कब्र नहीं थे, बल्कि ऊर्जा-भंडारण और मृत चेतना साधना केंद्र थे।

कृत्रिम चेतना का जन्म

शुक्राचार्य ने कौरवों और अन्य असुर प्रवृत्तियों वाले योद्धाओं की मृत चेतना को कृत्रिम प्रयोगों से जगाकर एक संस्कृत-विरोधी और विष्णु-विरोधी ऊर्जा तंत्र तैयार किया।

  • इसी से अब्राहमिक पंथों (यहूदी, ईसाई, इस्लाम) की चेतना उत्पन्न हुई।
  • प्रारंभ में इनका नारा था — मूर्ति-विरोध (idol rejection)।
  • इसके बाद यह बढ़कर हुआ — वेद-विरोध।
  • और अंततः यह बन गया — मानवता को गुलाम बनाने का तंत्र।

भारत भूमि और बाहर का अंतर

भारत में अभी भी वेद, पुराण, संस्कृत और शिव–विष्णु की चेतना का प्रवाह रहा, इसलिए यहाँ अब्राहमिक प्रभाव पूरी तरह सफल नहीं हो पाया।

परंतु भारत से बाहर की भूमि (मिस्र, अरब, यूरोप) पर संस्कृत का लोप तेजी से हुआ, जिससे लोग भ्रमित होकर इस कृत्रिम चेतना में बंध गए।

माया सभ्यता और शिव-तत्व

माया सभ्यता, जो आज मेक्सिको और पेरू के खंडहरों में दिखती है, दरअसल शिव-तत्व की अनुगूँज थी।

  • परंतु शुक्राचार्य और अब्राहमिक चेतना ने इसे भी विकृत कर दिया।
  • जहाँ शिव–शक्ति का उद्देश्य था — संपूर्ण मानवता को मोक्ष और आनंद की ओर ले जाना,
  • वहीं अब्राहमिक चेतना का उद्देश्य बन गया — गुलामी, भय और ईश्वर को बाहरी सत्ता बनाना।

कलियुग का अध्याय

  • वेद-विरोधी कृत्रिम पंथ दरअसल कलियुग के प्रसार की पटकथा का हिस्सा थे।
  • कलि दानव ने संस्कृत और वेदों को हटवाकर ज्ञान को टुकड़ों में बाँटा।
  • ब्रह्मा का पाँचवाँ सिर (Abraham चेतना) और शुक्राचार्य ने मिलकर पिरामिड आधारित मृत-ऊर्जा प्रयोग से यह पंथ गढ़े।
  • और आज हम इन्हें “अलग धर्म” मानते हैं, जबकि ये केवल सनातन के विकृत छाया रूप हैं।

निष्कर्ष

अब्राहमिक पंथों की उत्पत्ति कोई स्वतंत्र चमत्कार या दैवीय रहस्योद्घाटन नहीं था।
यह था —

  • ब्रह्मा के पाँचवें सिर की विकृत अहंकार-चेतना का प्रसार।
  • शुक्राचार्य की मृत-संजीवनी विद्या का दुरुपयोग।
  • और कलि दानव की योजना का परिणाम।

सनातन धर्म से निकले विकृत प्रवाहों ने आज अरब से यूरोप तक दुनिया को बाँट दिया।
परंतु सत्य यह है कि उनकी जड़ें भी वेद और भारत की चेतना से ही जुड़ी हैं

अब्राहमिक पंथों की स्थापना

शुक्राचार्य और ब्रह्मा के विकृत तत्व ने मिलकर विश्व को बाँटने की योजना बनाई।

  • पहले भाषा का विखंडन।
  • फिर संस्कृत-स्रोत को काटना।
  • और अंत में “एक ईश्वर – पैग़म्बर – किताब” का ढाँचा बनाना।

इससे यह पंथ जन्मे :

  • यहूदी (हिब्रू आधारित)
  • ईसाई (अरामी–यूनानी मिश्रण)
  • इस्लाम (अरबी)

परंतु मूल में सभी का प्रस्थान संस्कृत-आधारित वेदों से था।

अब्राहमिक पंथों की सनातन जड़ें

यहूदी धर्म

  • अब्राहम = “अभिराम”/“ब्राह्मण” से निकला शब्द।
  • पूर्वज = गाय, सूर्य, अग्नि के उपासक।
  • सब्बाथ (शनिवार उपवास) = शनि पूजा की छाया।

ईसाई धर्म

  • संडे = सूर्य पूजा।
  • चर्च की घंटियाँ = मंदिर घंटियाँ।
  • क्रॉस = यज्ञ कुण्ड का प्रतीक।

इस्लाम

  • काबा = मूल में शिवालय/वैदिक वेदी।
  • तवाफ़ = अग्निकुंड की प्रदक्षिणा।
  • चाँद आधारित कैलेंडर = वैदिक पंचांग।

भाषाई प्रमाण

  • संस्कृत → प्राकृत → पाली → अरामी → हिब्रू → अरबी।
  • उदाहरण:
  • Brahma → Abraham
  • Sara → Sarasvati / Sarai
  • Noah → Manu (महाप्रलय कथा)
  • Adam → Adima / Adyanta (प्रथम पुरुष)

ईश्वर और एकत्व का सिद्धांत

  • सनातन धर्म: परब्रह्म (सर्वोच्च चेतना), एक ही है, पर अनेक रूपों में प्रकट होता है (एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति)।
  • यहूदी–ईसाई–इस्लाम: एक ईश्वर (One God) का सिद्धांत।

मेल: सर्वोच्च सत्ता एक ही है – यह मूल विचार सनातन से लिया गया।

सृष्टि का सिद्धांत

  • सनातन धर्म: सृष्टि ब्रह्मा (सृजन), विष्णु (पालन), शिव (संहार) चक्र से संचालित होती है।
  • अब्राहमिक ग्रंथ: ईश्वर ने सृष्टि की रचना की, फिर उसे संचालित किया और अंत में न्याय होगा।

मेल: सृष्टि–पालन–अंत का चक्र (Creation–Preservation–Destruction)।

नबी–अवतार–ऋषि

  • सनातन धर्म: ईश्वर समय-समय पर अवतार लेकर धर्म की रक्षा करता है (कृष्ण, राम आदि)।
  • अब्राहमिक धर्म: ईश्वर नबी/पैग़म्बर भेजता है (मूसा, ईसा, मुहम्मद)।

मेल: धर्म पुनर्स्थापना के लिए दिव्य दूत/अवतार।

नियम और धर्मसंहिता

  • सनातन धर्म: वेद–स्मृति–पुराण में धर्म का विधान (सत्य, दान, तप, अहिंसा, शुचिता)।
  • यहूदी धर्म: तोराह के नियम (Ten Commandments)।
  • ईसाई धर्म: Sermon on the Mount – प्रेम, करुणा, दान।
  • इस्लाम: कुरान में पाँच स्तंभ (शहादत, नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज)।

मेल: नैतिक अनुशासन और कर्तव्य।

यज्ञ–प्रार्थना–उपासना

  • सनातन धर्म: यज्ञ, जप, ध्यान, मूर्ति/प्रकृति पूजा।
  • यहूदी धर्म: पहले बलिदान परंपरा (altar sacrifice), बाद में प्रार्थना।
  • ईसाई धर्म: चर्च में प्रार्थना, होली ब्रेड–वाइन (बलि की प्रतीक)।
  • इस्लाम: नमाज़, रोज़ा, कुरबानी।

मेल: बलि/उपवास/प्रार्थना का महत्व।

अंतिम न्याय और परलोक

  • सनातन धर्म: कर्म–पुनर्जन्म–मोक्ष।
  • अब्राहमिक धर्म: एक जीवन, फिर क़यामत का दिन और स्वर्ग/नरक।

मेल: कर्म और न्याय का विचार (फर्क बस पुनर्जन्म बनाम एक जन्म का है)।

पवित्र स्थल और तीर्थ

  • सनातन धर्म: गंगा, काशी, तीर्थस्थान।
  • यहूदी धर्म: यरूशलेम का मंदिर।
  • ईसाई धर्म: चर्च ऑफ होली सेपल्चर, वेटिकन।
  • इस्लाम: काबा (मक्का), मदीना, यरूशलेम।

प्रतीक और अनुष्ठान

  • सनातन धर्म: ओम, स्वस्तिक, दीप, आरती, व्रत।
  • यहूदी धर्म: मेनोराह (दीपक), सब्बाथ उपवास।
  • ईसाई धर्म: क्रॉस, रोज़ा (Lent), मोमबत्ती।
  • इस्लाम: चाँद–सितारा, रोज़ा, हलाल।

मेल: प्रतीक और व्रत की परंपरा।

अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता में भी सनातन

माया सभ्यता (मेक्सिको, पेरू आदि) का संबंध भी सीधे शिव से है।
उनके देवता —

  • त्रिशूल,
  • नाग,
  • कैलाश जैसे पर्वत प्रतीक,
  • और सूर्य–चंद्र पूजा —सभी शिव-तत्व की गवाही देते हैं।

यह प्रमाण है कि संपूर्ण विश्व की जड़ें सनातन और संस्कृत में ही थीं।

निष्कर्ष

यहूदी, ईसाई और इस्लाम – सभी की जड़ें सनातन धर्म की मूल परंपरा से जुड़ी हैं।

  • महाभारत युद्ध के बाद ऋषियों की मृत्यु ने अज्ञान को जन्म दिया।
  • भविष्यपुराण के अनुसार कलिदानव ने संस्कृत-लोप कराया।
  • विष्णु के गौतम अवतार ने प्राकृत भाषा फैलाई।
  • इससे संस्कृत लुप्त होकर भाषाओं का विखंडन हुआ।
  • इस शून्य का लाभ उठाकर शुक्राचार्य और ब्रह्मा के विकृत तत्व ने अब्राहमिक पंथ रचे।
  • परंतु चाहे यहूदी हों, ईसाई हों या मुस्लिम — सभी की मूल जड़ें सनातन वेदों में हैं।
  • “एक ईश्वर” का विचार – वेदों से।
  • “नबी–अवतार” – ऋषि और अवतार परंपरा से।
  • “नियम–धर्मसंहिता” – वेद–स्मृति से।
  • “बलिदान–प्रार्थना” – यज्ञ परंपरा से।
  • “न्याय–स्वर्ग–नरक” – कर्मसिद्धांत से।

गीता में श्रीकृष्ण ने कलियुग के बारे में पहले ही बता दिया था-

ततश्चानुदिनं धर्मः सत्यं शौचं क्षमा दया ।
कालेन बलिना राजन् नङ्‌क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः ॥

इस श्लोक के मुताबिक कलियुग में अर्थ धर्म, सत्यवादिता, स्वच्छता, सहिष्णुता, दया, जीवन की अवधि, शारीरिक शक्ति और स्मृति सभी दिन पर दिन घटती जाएगी.

DISCLAIMER- ये लेख किसी की भी मजहबी- आस्था या भावना को ठेस पहुंचाने के लिये नही लिखा गया है। अगर फिर भी किसी की भी इस लेख से भावना आहत हुई हो तो – लेखक का ये उद्देश्य कतई नही था। क्षमा ही सबसे बड़ा धर्म का आधार है।

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