मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने आज महान क्रांतिकारी बूचा कोरकू को नमन किया और उनके बलिदान को याद किया।
लेकिन सवाल ये है – क्या किसी कांग्रेसी नेता ने कभी इन सच्चे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद किया?
जिन्होंने अंग्रेज़ों की चाय परोसने और सिगरेट जलाने वाले नेताओं को महान क्रांतिकारी बता दिया, उन्होंने बूचा कोरकू जैसे बलिदानियों के नाम तक को भुला दिया।
इतिहास :
- बूचा कोरकू, मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के बंजारीढाल गांव के निवासी थे।
- 1930 के जंगल सत्याग्रह में उन्होंने आदिवासियों का नेतृत्व किया और अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ डटकर खड़े हुए।
- पुलिस की बर्बरता में वे गोली से घायल हुए, बैतूल और रायपुर जेलों में यातना सहनी पड़ी और आखिरकार शहीद हो गए।
- उनका बलिदान आज भी आदिवासी समाज की आज़ादी और अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक है।
कोरकू जनजाति की विरासत
- कोरकू समाज शिव भक्त है और भोलेनाथ को कुलदेवता मानता है।
- सतपुड़ा पर्वत, नर्मदा घाटी और ताप्ती नदी क्षेत्र में बसे इस समाज ने 1857 की क्रांति में भी अंग्रेजों से संघर्ष किया।
- राजा भभूत सिंह के नेतृत्व में उन्होंने विद्रोह किया, लेकिन अंग्रेजों ने क्रूर दमन किया।
प्रेरणा के दो स्तंभ
- कोवा गोंड – गोंड साम्राज्य के योद्धा, जिन्होंने मुगलों और अंग्रेजों से संघर्ष किया।
- बूचा कोरकू – 1930 के जंगल सत्याग्रह के शहीद, जिनका बलिदान जनजातीय स्वाभिमान का प्रतीक है।
निष्कर्ष
आज जब भाजपा के नेता इन वीर बलिदानियों को नमन कर रहे हैं, तो सवाल उठना लाज़मी है – कांग्रेस नेताओं ने इन सच्चे क्रांतिकारियों को क्यों भुला दिया ? क्या कभी किसी कांग्रेसी नेताओं ने हमारे असली क्रांतिकारियों और शूरवीरों को याद किया ??
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