लेखक : आशुतोष
सृष्टि के आदि से ही एक गूढ़ रहस्य छिपा रहा है जिसे वेदों, पुराणों और तांत्रिक ग्रंथों ने अनेक संकेतों में बताया है — ब्रह्मा का पाँचवाँ सिर। यह सिर सृष्टि रचियता, वेदज्ञानी ब्रह्मा नहीं था, बल्कि अहंकार और वासना से उत्पन्न विकृति थी। यही विकृति संसार में पापाचार, अन्याय, बलात्कार, हिंसा और मायावी प्रयोगों का मूल कारण बनी।
ब्रह्मा का पाँचवाँ सिर : अहंकार और वासना का प्रतीक
वेदज्ञानी ब्रह्मा ने सृष्टि को सत्य, ऋतु और धर्म के आधार पर रचा। लेकिन जब उनके भीतर “मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूँ, मेरे अलावा कोई नहीं” वाला अहंकार उत्पन्न हुआ तो यह पाँचवाँ सिर प्रकट हुआ। यही सिर वासना, विकृति और तामसिक चेतना का केंद्र बन गया।
- यही चेतना “नारी को भोग की वस्तु” मानने की दृष्टि फैलाती है।
- यही चेतना बलात्कार, हत्या और अत्याचार की जड़ है।
- यही चेतना “मैं ही ईश्वर हूँ – बाक़ी सबको मिटा दूँ” का विचार पैदा करती है।
यही पाँचवा सिर आगे चलकर असुरों और अब्राहमिक पंथों का आध्यात्मिक स्रोत बना।
असुरों की उपासना : वेद ब्रह्मा नहीं, विकृत ब्रह्मा
पुराणों में वर्णन है कि असुर जब तपस्या करते थे तो वे सृष्टि रचियता, वेदज्ञानी ब्रह्मा की नहीं, बल्कि उस पाँचवे सिर की चेतना की साधना करते थे।
- उसी से उन्हें तामसिक मार्गों की मायावी शक्तियाँ मिलती थीं।
- उसी से वे प्रकृति विनाशकारी प्रयोग करना सीखते थे।
- इसी कारण असुरों का प्रत्येक प्रयास देवों के विरोध और धर्म के खंडन में रहा।
शुक्राचार्य, जो असुरों के गुरु माने जाते हैं, ने इस विकृति को और भी विस्तार दिया। उन्होंने इस चेतना की माया को “ज्ञान” और “विज्ञान” के नाम पर फैलाया।
शुक्र अनुयायियों के ( पश्चिम जगत ) प्रकृति-विरोधी आविष्कार
- प्लास्टिक का साम्राज्य – समुद्र में तैरता प्लास्टिक कचरा, मरे हुए समुद्री जीवों के साथ।
- न्यूक्लियर बम और युद्ध मशीनें – मशरूम क्लाउड, जले हुए पेड़, और नष्ट होते शहर।
- जीन मॉडिफाइड फसलें (GM Crops) – खेत में चमकदार, अस्वाभाविक रूप से बड़े फल/सब्ज़ियाँ, लेकिन ज़हरीले असर के साथ।
- इंडस्ट्रियल फैक्ट्री स्मॉग – धुएँ से भरा आसमान, काली नदी, बंजर पेड़।
- AI–रोबोट बनाम किसान/प्रकृति – रोबोट खेतों में काम कर रहे हैं, जबकि असली किसान और गाय-भैंस किनारे पर दुखी खड़े।
- केमिकल फ़र्टिलाइज़र और पेस्टीसाइड – खेत हरा है लेकिन ज़मीन के नीचे मरी हुई केंचुए, दूषित जल।
- स्पेस रॉकेट डेब्रिस – अंतरिक्ष में तैरता कचरा, धरती पर गिरते उपग्रह।
- फास्ट फ़ूड और लैब मीट – नकली बर्गर/लैब में तैयार मांस, और बीमार मोटे लोग।
पश्चिमी विज्ञान : विकृति से जन्मे आविष्कार
यदि ध्यान से देखें तो पश्चिमी वैज्ञानिकों के लगभग सभी आविष्कार प्रकृति मूलक नहीं बल्कि प्रकृति विनाशक हैं।
- काग़ज़ बनाने के लिए वृक्ष काटना।
- प्लास्टिक और कैमिकल से धरती और जल का प्रदूषण।
- एटम बम और हथियारों से महाविनाश।
- कारख़ानों और इंजिन से पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ना।
- दवाइयों के नाम पर कैमिकल, जो शरीर को रोग से मुक्त करने के साथ ही नए रोग देते हैं।
- ये सब वेद विरोधी चेतना के उत्पाद हैं।
- वेद कहते हैं – “प्रकृति से मित्रता करो”,
- लेकिन पश्चिमी विज्ञान कहता है – “प्रकृति को जीत लो”।
- यह दृष्टि सीधे-सीधे ब्रह्मा के पाँचवे सिर की विकृति का प्रसार है।
अब्राहमिक पंथ और ब्रह्रम का रहस्य
अब्राहमिक पंथों की गहन स्टडी करने पर यही रहस्य खुलता है कि उनका मूल भी इसी विकृति में है।
- “एक ही ईश्वर – बाक़ी सब झूठ” का विचार पाँचवे सिर के अहंकार से आया।
- “नारी केवल भोग की वस्तु” का दृष्टिकोण इसी विकृति की उपज है।
- “जो हमारे मत को न माने, उसे मिटा दो” की नीति पाँचवे सिर की ही माया है।
यानी अब्राहमिक पंथ दरअसल ब्रह्रम (ब्रह्मा का पाँचवा सिर) की ही उपासना और प्रसार हैं, न कि वेद के मूल ब्रह्मा या विष्णु के मार्ग पर आधारित।
समाधान : शिव कृपा से काल भैरव का जागरण
जब तक हम इस पाँचवे सिर की विकृति और शुक्राचार्य की माया को पहचानेंगे नहीं, तब तक धर्म की स्थापना असम्भव है।
समाधान केवल शिव मार्ग में है –
- काल भैरव का जागरण, जो हर मिथ्या और विकृति को काट देता है।
- शिव कृपा से भीतर की वासनाओं और अहंकार को शांत करना।
- नारियों पर कृदृष्टि को त्यागना और उन्हें शक्ति स्वरूपा मानना।
- “मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूँ” वाले हलाहल विचार को भस्म करना।
यही है कलियुग में धर्मस्थापना का मार्ग।
निष्कर्ष
ब्रह्मा का पाँचवाँ सिर केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि आज के युग की सबसे बड़ी चेतावनी है।
शुक्राचार्य ने इसी विकृति को पंथों, आविष्कारों और विज्ञान के नाम पर फैलाया।
यदि हम इस रहस्य को नहीं समझेंगे तो धर्म की रक्षा असम्भव होगी।
धर्म की स्थापना का प्रथम चरण है –
विकृति को जानना, उसका शत्रु बोध करना और शिव कृपा से उसे काटना।
