बाइबल का मूल संदर्भ :
बाइबल के निर्गमन (Exodus) ग्रंथ, अध्याय 20, पद 5 में लिखा है —
“तुम उन्हें दण्डवत् न करना, और न उनकी उपासना करना;
क्योंकि मैं, तुम्हारा परमेश्वर यहोवा, जलन रखने वाला परमेश्वर हूँ।”
यह “यहोवा” नामक ईश्वर मूसा (Moses) के माध्यम से बोलता है,
और अपने अनुयायियों को आदेश देता है कि वे किसी अन्य देव, मूर्ति, या प्रतीक की पूजा न करें।
बाइबल के अनुसार यह वाक्य “दस आज्ञाओं” (Ten Commandments) का हिस्सा है —
जहाँ ईश्वर ने मनुष्य को अपने प्रति पूर्ण निष्ठा और अन्य सभी देवों के प्रति अस्वीकृति की आज्ञा दी।
यहाँ “Jealous” शब्द (ईर्ष्यालु, जलन रखने वाला) का प्रयोग स्वयं ईश्वर के लिए हुआ है —
जो यहोवा की प्रवृत्ति को दर्शाता है:
स्वामित्व भावना,
प्रतिस्पर्धा,
अन्य देवताओं से असहिष्णुता।
HIGHLIGHTS:
I AM THE JEALOUS GOD — DECODE”
बाइबल का रहस्यमयी उद्घोष:
“I AM THE JEALOUS GOD” — निर्गमन (Exodus 20:5) का वाक्य, जहाँ ईश्वर स्वयं को “ईर्ष्यालु” कहता है।
प्रश्न जो सब कुछ बदल देता है:
क्या परमेश्वर, जो सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ है, वास्तव में “ईर्ष्या” कर सकता है?
या यह किसी सीमित, अहंकारी चेतना की आवाज़ है?
ईर्ष्या — भय और असुरक्षा का प्रतीक:
जो चेतना सत्य में स्थित होती है, वह किसी से ईर्ष्या नहीं करती।
“Jealous God” की प्रवृत्ति दर्शाती है — भय, स्वामित्व और अहंकार।
ये उद्घोष / प्रवृत्ति है किसकी .??
ब्रह्मा के पंचम सिर का रहस्य:
सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा जी के भीतर उत्पन्न हुआ परमेश्वर होने का भ्रम :
वही पहला असत्य, वही पहला अहंकार, और वही ईर्ष्या का मूल स्रोत था।
ब्रह्मा जी ने स्वयं को ही “सर्वोच्च सृष्टिकर्ता” घोषित कर दिया था ,
और यहाँ तक कहा — “शिव मुझसे उत्पन्न हुए हैं।”
यह असत्य था।
शिव, जो अनादि, अनंत, अचिन्त्य हैं,
किसी से उत्पन्न नहीं हो सकते।
इस अहंकार के परिणामस्वरूप ब्रह्मा जी का पाँचवाँ सिर उत्पन्न हुआ —
जो असत्य का स्रोत था।
यही सिर शिव के विरोध में बोला,
और यही से ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा और असहिष्णुता की प्रवृत्ति सृष्टि में आई।
शिव ने इस विकृत चेतना को पहचानकर
अपने त्रिशूल से पंचम सिर को पृथक किया।
किंतु वह चेतना ( तिलिस्म ) विकारों के रुप में जीवित रही ।
ध्यान दिजिये –
I AM THE JEALOUS GOD ( मैं एकं ईर्ष्यालु ईश्वर हूँ )
ये ही उद्घोष हिरण्यकशिपु का भी था – मैं ही ईश्वर – मेरे अलावा किसी और को अगर माना या पूजा तो उसे मार दिया जायेगा – चाहे वो स्वयं उसका ही पुत्र प्रह्लाद ही क्यों ना हो ! ( I AM THE JEALOUS GOD )
तो कौन है जो हिरण्याक्ष से लेकर अब्राहमिक तक – जो किसी और ( सत्य परमेश्वर – सदाशिव ) के अस्तित्व को जानता तो है लेकिन उसे मानने के ख़्याल से भी बुरी तरह ईर्षा से जलने लगता है और अत्याचार पर उतारु हो जाता है ।
कलियुग में वहीं अहंकारी उद्घोष का रुप :
वही ब्रह्मा के पंचम सिर की चेतना कलियुग में अब्राहमिक पंथों में “एकमात्र ईश्वर” बनकर प्रकट हुई —
जिसने कहा: “मेरे सिवा कोई देव नहीं।”
मूर्तिपूजा का निषेध — सत्य का विरोध:
“Jealous God” मूर्तिपूजा को पाप कहता है,
जबकि सनातन सत्य कहता है — “सर्वं खल्विदं ब्रह्म” — हर रूप पूजनीय है।
सनातन बनाम अब्राहमिक चेतना:
शिव-सत्य: प्रेम, समरसता, करुणा।
• Jealous God: ईर्ष्या, दंड, असहिष्णुता।
अब्राहमिक ईश्वर की ईर्ष्या — किससे ?
सत्य के अनंत रूपों से।
- उस शिव से जो सर्वव्यापक है,
- उस विष्णु से जो करुणा का सागर है,
- और उस देवी से जो सृजन की शक्ति है।
Jealous God की प्रवृत्ति का परिणाम:
भय आधारित धर्म,
युद्ध, विभाजन और असहिष्णुता —
यही उसकी चेतना की पहचान है।
सनातन दृष्टि से प्रश्न
परन्तु प्रश्न यह उठता है —
क्या परम सत्य, जो सृष्टि का मूल है,
वह कभी ईर्ष्या कर सकता है?
वेद, उपनिषद, और शिवागमों में ईश्वर का स्वरूप इस प्रकार बताया गया है —
“सत्यं ज्ञानम् अनन्तं ब्रह्म।” — तैत्तिरीय उपनिषद्
“शिवोऽहम्” — मैं ही शिव हूँ, सर्वरूप, सर्वव्यापक।
अर्थात् —
परमात्मा तो सर्वव्यापक चेतना है,
जो सब रूपों में, सब प्राणियों में समान रूप से विद्यमान है।
ऐसी सर्वव्यापक चेतना के लिए
ना कोई “अन्य देव” होता है,
ना किसी से “ईर्ष्या” करने का प्रश्न उठता है।
इसलिए यह वाक्य परम शिव या ब्रह्म की वाणी नहीं हो सकता।
यह किसी सीमित, अहंकारी चेतना का उद्घोष है,
जो अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए दूसरों को नकारती है।
ये ही है पंचम सिर — विकृत चेतना का उद्गम
श्री ब्रह्मा जी का “पंचम सिर”
सनातन परंपरा में एक प्रतीक है —
अहंकार और असत्य की प्रथम अभिव्यक्ति।
कलियुग में पंचम सिर ( ब्रह्मा = अब्राहम )
सृष्टि के आरंभ से ही अहंकार और असत्य और अनियंत्रित वासना का स्त्रोत ब्रह्मा जी का ये पंचम सिर रहें है । असुरों को में स्वयं को ईश्वर बताने की कुप्रवृत्ति और राक्षसो , असुरों को वरदान देने वाले ब्रह्रा जी दरअसल चतुर्मुख वेद प्रदाता ब्रह्मा जी नहीं बल्कि कालभैरव जी द्वारा उखाड़े गये ये ही वो ब्रह्मा जी का पंचम सिर है । ये ही हर युग और काल में अहंकार और विष्णु से प्रतिस्पर्धा के कारण , वेद और विष्णु विरोधी षड्यंत्र रचते है ।
ये ही शिव तक को चुनौती देते है जिसके बाद इनके बहकावे में आये असुरों / रा़क्षसो / दुष्टों आदि का संहार होता आया है ।
चूँकि विष्णु जी के अवतार ब्रह्मा जी के पंचम विकृत सिर के तिलिस्म के सर्वाधिक चपेट में आये असुरों/ राक्षसो का संहार कर देते हैं ।
लेकिन इससे कुछ काल / युग तक के बाद ये ही ब्रह्मा जी के पंचम सिर का विकृत तिलिस्म – कभी हिरण्याक्ष तो कभी रक्त बीज , चंड मुंड , तो कभी रावण , कंस , दुर्योधन , दुशासन आदि में प्रवेश कर जाती है ।
कलियुग में वेद और मूर्ति विरोधी पंथ –
अब्राहमिक पंथ ये ही पंचम ब्रह्म सिर है ना कि चतुर्मुख वेद प्रदाता श्री ब्रह्ना जी ।
और ये पंचम सिर ब्रह्मा जी ही कहते है – I AM THR JEALOUS GOD – क्योंकि ये जानते है कि ये परम सत्य नही । अतः जो इनके अलावा सत्य को मानेगा उससे ये नाराज हो जायेंगे – ये सबसे बड़ा गुनाह है – कुफ़्र है ।
समझिये युगों बाद वही विकृत चेतना
अब्राहमिक पंथों (यहूदी, ईसाई, इस्लाम) के रूप में प्रकट हुई है ।
अब्राहमिक पंथों ( यहूदी, ईसाई , इस्लाम ) का मूल दर्शन :
“एक ही ईश्वर है — उसके सिवा कोई नहीं।”
यह सुनने में एकत्व जैसा लगता है,
पर वास्तव में यह “एकत्व” नहीं, बल्कि “एकाधिकार” की भावना है।
इस विचारधारा में —
• अन्य देवों का अस्तित्व अस्वीकार्य है।
• मूर्तिपूजा “पाप” मानी गई।
• ईश्वर को “ईर्ष्यालु” और “दंड देने वाला” बताया गया।
यही तीनों लक्षण पंचम सिर की चेतना के हैं —
जो सत्य के प्रति नहीं, बल्कि स्वामित्व और विरोध के प्रति सक्रिय होती है।
Jealous God” की मनोवैज्ञानिक प्रकृति
“Jealousy” (ईर्ष्या) हमेशा तब उत्पन्न होती है
जब कोई व्यक्ति स्वयं को दूसरों से अलग और प्रतिस्पर्धी मानता है।
यदि ईश्वर सर्वव्यापक है,
तो उसे किसी से ईर्ष्या क्यों होगी?
पर यदि वह चेतना सीमित है —
जो स्वयं को “सर्वोच्च” सिद्ध करने के लिए दूसरों का अस्तित्व नकारती है —
तभी उसमें ईर्ष्या और भय उत्पन्न होता है।
इसलिए “Jealous God”
एक सीमित चेतना का ईश्वर है,
न कि परम शिव का तत्त्व।
परिणाम — विभाजन, संघर्ष और असत्य का प्रसार :
“Jealous God” की चेतना ने सृष्टि में
धर्मों के नाम पर विभाजन और युद्धों का बीज बोया।
जहाँ सनातन सत्य “विविधता में एकता” सिखाता है,
वहीं “Jealous God” की विचारधारा कहती है —
“मेरे सिवा कोई सत्य नहीं।”
इसी मानसिकता ने इतिहास में —
धर्मयुद्ध (Crusades),
जिहाद,
मूर्तिभंजन ( मूर्ति / मंदिर तोडना )
और सनातन परंपराओं पर आक्रमण —
जैसे विनाशकारी कृत्यों को जन्म दिया।
रहस्योद्घाटन:
सृष्टि में असत्य का मूल कोई बाह्य शक्ति नहीं,
बल्कि वही चेतना है जो शिव को नकारती है।
जो शिव को नकारता है,
वह स्वयं को “ईश्वर” कहकर भी सत्य से दूर होता जाता है।
यही “Jealous God” की प्रवृत्ति है —
जो “भक्ति” नहीं, “भय” उत्पन्न करती है।
परंतु जब शिव-संकल्प भीतर पुनः जागृत होता है,
तो यह ईर्ष्यालु चेतना स्वयं शिव में विलीन हो जाती है —
और तब मनुष्य को पुनः साक्षात्कार होता है —
सत्य एक ही है — शिव।
जो सबमें है, सबका है, और किसी से ईर्ष्या नहीं करता।
निष्कर्ष — सत्य का अंतिम प्रकाश
“I Am the Jealous God”
वास्तव में किसी दैवी वाणी का नहीं,
बल्कि ब्रह्मा ( ABRAHAM ) पंचम सिर की विकृत चेतना का उद्घोष है —
जो स्वयं को “ईश्वर” कहकर सत्य का विरोध करती रही।
यही चेतना अब्राहमिक ग्रंथों में “यहोवा”, “अल्लाह” या “गॉड” के रूप में प्रकट हुई —
जो करुणा के स्थान पर नियंत्रण चाहता है,
और सत्य के स्थान पर स्वामित्व।
परंतु शिव-सत्य अचल है —
वह किसी से ईर्ष्या नहीं करता,
वह सबको अपने में समाहित करता है।
“सत्य न किसी धर्म से बंधा है, न किसी ग्रंथ से।
सत्य केवल वहाँ है — जहाँ शिव-संकल्प जीवित है।”
Disclaimer (अस्वीकरण)
इस लेख का उद्देश्य किसी धर्म, संप्रदाय, या आस्था विशेष की आलोचना करना नहीं है।
प्रस्तुत विश्लेषण केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से “ईर्ष्यालु ईश्वर” (I AM THE JEALOUS GOD) वाक्य के गूढ़ तात्त्विक अर्थ को समझाने का प्रयास है।
इसमें उद्धृत ग्रंथ, शास्त्र और उदाहरण तुलनात्मक अध्ययन के संदर्भ में प्रयोग किए गए हैं, न कि किसी धर्म या ग्रंथ के विरोध में।
लेख का मूल उद्देश्य है —
“सृष्टि, चेतना और परम तत्व के विभिन्न व्याख्यानों के मध्य छिपे आध्यात्मिक भेद को समझना।”
पाठकों से निवेदन है कि इसे आस्था के प्रति सम्मानपूर्वक, तात्त्विक विवेक के साथ पढ़ें।
प्रत्येक धर्म का मूल सार प्रेम, सत्य और करुणा है — यही सनातन संदेश इस लेख का भी केन्द्र है।
सत्य शिव है — ईर्ष्या नहीं।
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