पब्लिक फर्स्ट । श्रीनगर । ब्यूरो रिपोर्ट ।

कश्मीर में मुस्लिम सरनेम जो पहले हिन्दू थे
ऐसे कई कश्मीरी मुस्लिम सरनेम हैं जिनकी जड़ें हिन्दू (विशेषकर ब्राह्मण/पंडित) समाज से जुड़ी हैं। धर्म परिवर्तन के बाद भी इन सरनेम का इस्तेमाल जारी रहा।

प्रमुख सरनेम और उनका इतिहास
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• पंडित, भट/बट, धर, दार, लोन, मंटू, मट्टू, गनी, तांत्रे, राजगुरु, राठेर, राजदान, मगरे, याटू, वानी

ये सरनेम पहले हिन्दू ब्राह्मण (कश्मीरी पंडित) या अन्य हिन्दू जातियों के थे।
14वीं सदी में मुस्लिम शासन के दौरान बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन हुआ। हिन्दुओं को तरह तरह की यातनाएँ दी गईं ।

बहुत से ब्राह्मणों और अन्य हिन्दुओं ने इस्लाम कबूल किया, लेकिन अपनी सामाजिक पहचान और सरनेम को बनाए रखा। आज भी कश्मीर में कई मुस्लिम परिवार इन पारंपरिक सरनेम का इस्तेमाल करते हैं।

कन्वर्ज़न से पहले और बाद

ध्यान दें:

कई मुस्लिम परिवार आज भी अपने नाम के साथ ‘पंडित’, ‘भट’, ‘लोन’ आदि सरनेम लगाते हैं और इन्हें ‘मुस्लिम पंडित’ या ‘पंडित शेख’ भी कहा जाता है।

ऐतिहासिक कारण

• कश्मीर में इस्लाम के आगमन से पहले अधिकांश आबादी हिन्दू थी, जिसमें ब्राह्मण (पंडित) प्रमुख थे।
• 14वीं सदी में सुल्तान सिकंदर बुतशिकन के समय बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन हुआ।
• धर्म बदलने के बावजूद कई परिवारों ने अपनी जातिगत और सांस्कृतिक पहचान (सरनेम) बनाए रखी।

कई मुस्लिम जातियाँ जैसे पटेल, पिंजारा, मंसूरी (रंगरेज), बोहरा, देशवली, चेजरा, इदरीसी आदि, पहले हिंदू जातियों (जैसे पटेल, गुर्जर, जाट, राजभर, अहिर, मिस्त्री आदि) से थीं, जिन्होंने बर्बर मध्यकाल में इस्लाम कबूलने के लिये मजबूर किया गया ।

निष्कर्ष:
कश्मीर में आज भी कई मुस्लिम सरनेम जैसे पंडित, बट, धर, लोन आदि, हिन्दू ब्राह्मणों/पंडितों की विरासत से जुड़े हैं, जो धर्म परिवर्तन के बाद भी जारी रहे ।

publicfirstnews.com

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