मध्यप्रदेश के किसानों के लिए एक बड़ी और चिंताजनक खबर सामने आई है। मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला की वर्ष 2024-25 की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में किसानों द्वारा खेतों में यूरिया का अत्यधिक और असंतुलित उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे मिट्टी की उर्वरता तेजी से घट रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, जमीन में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और जिंक जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की भारी कमी पाई गई है, जो सीधे तौर पर फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को प्रभावित कर रही है।

कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को चेताते हुए कहा है कि ज्यादा उत्पादन के लालच में किसान मक्का और सोयाबीन जैसी फसलों के एक एकड़ क्षेत्र में 5-6 बोरी यूरिया डाल रहे हैं, जबकि वास्तव में जरूरत सिर्फ 2 बोरियों की होती है। इससे पौधे जरूरत से ज्यादा बढ़ जाते हैं, फसल पकने में देरी होती है और लागत भी दोगुनी हो जाती है। इसके साथ ही मिट्टी में पोटाश और जिंक की कमी बनी रहती है क्योंकि यूरिया और डीएपी सिर्फ नाइट्रोजन और फास्फोरस की आपूर्ति करते हैं।

कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसएस सारंगदेवोत ने चेतावनी दी है कि अत्यधिक यूरिया के कारण मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता प्रभावित हो रही है, जिससे लंबे समय तक फसल उत्पादन घट सकता है। यूरिया पौधों को अधिक मुलायम और कमजोर बना देता है जिससे उनमें कीट और रोगों का खतरा बढ़ जाता है। पौधों की पत्तियां और जड़ें कमजोर हो जाती हैं, जिससे उनका विकास रुक जाता है।

इसका असर केवल खेतों और फसलों तक सीमित नहीं है। यूरिया से निकलने वाली नाइट्रस ऑक्साइड गैस वायु प्रदूषण का कारण बन रही है और यह पानी में नाइट्रेट की मात्रा को भी बढ़ा रही है, जिससे जलीय जीवों की सेहत को खतरा है। स्वास्थ्य की दृष्टि से, यूरिया के कारण उच्च रक्तचाप, किडनी, लिवर और हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। बच्चों में सांस लेने की तकलीफ, त्वचा रोग जैसी समस्याएं भी देखी जा रही हैं।

इसी बीच, रतलाम जिले के जावरा तहसील अंतर्गत पंचेवा जेठाना और नोलखा गांव के करीब 30 किसान एक और बड़ी समस्या से जूझ रहे हैं। खरपतवार नष्ट करने के लिए खेतों में डाली गई रासायनिक दवा से इन किसानों की करीब 500 बीघा फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई। किसानों का आरोप है कि जिस हिस्से में यह दवाई डाली गई, वहीं की फसल झुलसकर नष्ट हो गई, जबकि दूसरी दवाई वाले हिस्से की फसल पूरी तरह सुरक्षित रही।

किसानों ने इस पूरे मामले में नायब तहसीलदार वैभव कुमार जैन को ज्ञापन सौंपते हुए दवा बनाने वाली कंपनी पर कानूनी कार्रवाई और मुआवजे की मांग की है। किसानों का कहना है कि यह पूरी तरह से दवाई की गुणवत्ता में खामी का मामला है और यदि समय रहते उचित कार्रवाई नहीं की गई तो उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो सकती है।

इस घटनाक्रम से साफ है कि मध्यप्रदेश का कृषि क्षेत्र इस समय मिट्टी की सेहत से लेकर रासायनिक दवाओं तक, कई गंभीर संकटों से गुजर रहा है। अब जरूरत है वैज्ञानिक सलाह, संतुलित खाद प्रबंधन और दोषी कंपनियों पर सख्त कार्रवाई की, ताकि किसान और खेत दोनों सुरक्षित रह सकें।

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