पब्लिक फर्स्ट। टोक्यो।

स्नाइपर लैंडर के साथ रवाना हुआ H2-A रॉकेट; खराब मौसम की वजह से पहले दो बार टला
जापान की स्पेस एजेंसी 7 सितंबर यानी आज सुबह अपना मून मिशन लॉन्‍च किया। मून मिशन स्नाइपर लैंडर के साथ H2-A रॉकेट तनेगाशिमा स्पेस सेंटर से स्थानीय समयानुसार सुबह 8:42 बजे लॉन्च किया गया। इसके तीन से चार महीने में चंद्रमा की ऑर्बिट में पहुंचने और अगले साल जनवरी में लैंड करने की उम्मीद है।

इसकी लॉन्चिंग डेट पहले 26 अगस्त थी। बाद में 28 अगस्त की गई, लेकिन खराब मौसम की वजह से जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) ने इसकी लॉन्चिंग टाल दी थी।

चांद की सतह पर लैंडिंग की जापान की यह पहली कोशिश होगी। हालांकि, मई महीने में एक प्राइवेट जापानी कंपनी चांद पर उतरने की कोशिश की, जिसमें असफलता मिली।

रॉकेट दो स्पेस मिशन ले जा रहा है
जापान का मून मिशन अपने साथ एक नया एक्स-रे टेलीस्कोप और एक लाइट वेट हाई-प्रिशिसन स्पेक्ट्रोस्कोपी मून लैंडर ले गया है। जो भविष्य में चंद्रमा पर लैंडिंग तकनीक बेस के रूप में काम करेगा।टेलीस्कोप सुबह 8:56 बजे रॉकेट से अलग हो गया। जबकि लैंडर के सुबह 9:29 बजे अलग होने की उम्मीद है।

भारत के चंद्रयान 3 की कामयाबी के बाद अब जापान के स्लिम लैंडर पर दुनिया की नजरें हैं। कहा जा रहा है कि अब तक के तमाम मून मिशन्स में लैंडिंग के लिहाज से यह सबसे एडवांस्ड टेक्नोलॉजी से लैस है और जिस जगह पर इसे लैंड करना है, ये बिल्कुल उसी स्पॉट पर उतरेगा। रडार से लैस स्लिम लैंडर चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंड करेगा।

स्लिम के क्या मायने
‘स्मार्ट लैंडर फॉर इन्वेस्टिगेटिंग मून’ यानी स्लिम (SLIM)। इसको SLIM नाम दिया ही इसलिए गया है, क्योंकि माना जा रहा है कि ये एक्युरेसी के मामले में बाकी के मून मिशन्स से बहुत बेहतर होगा। किसी भी मून मिशन में सबसे जरूरी चीज पिन पॉइंट लैंडिंग मानी जाती है। पुराने मिशन्स में ये माना जाता रहा है कि जहां बेहतर जगह हो वहां लैंडिंग की जाए। स्लिम के बारे में कहा जा रहा है कि ये जहां चाहेगा, बिल्कुल वहीं लैंड करेगा।

ग्रैविटी के लिहाज से देखें तो चंद्रमा पर यह धरती की तुलना में 6 गुना कम है। लिहाजा, किसी भी लैंडर के लिए यहां लैंड करना बेहद चैलेंजिंग माना जाता है। हालांकि बदलते वक्त और टेलिस्कोपिक टेक्नोलॉजी की मदद से यह काम पहले के मुकाबले काफी आसान हुआ है। अब किसी भी मिशन के पहले ही साइंटिस्ट्स के पास हाईडेफिनेशन इमेजेस और लैंडिंग स्लॉट (जगह) की जरूरी जानकारी मौजूद होती है।

ये तमाम बातें लैंडिंग और इसके बाद रिसर्च के लिहाज से काफी जरूरी होती हैं। खास तौर पर साउथ पोल यानी दक्षिणी ध्रुव पर। हमारे चंद्रयान ने चंद्रमा की इसी सबसे मुश्किल और सबसे ज्यादा रहस्यमयी जगह पर लैंड किया है।

पिनपॉइंट लैंडिंग से क्या फायदा होगा
‘स्पेस डॉट कॉम’ वेबसाइट के मुताबिक पिनपॉइंट लैंडिंग का सबसे बड़ा फायदा ये है कि एक खास जगह पर पहले से फोकस किया जाता है। इसके बारे में काफी हद तक जानकारी पहले से मौजूद होती है और इसी हिसाब से लैंडर का डिजाइन और पोस्ट लैंडिंग रोवर मूवमेंट तय किया जाता है। मकसद यही होता है कि उस खास जगह पर पानी की मौजूदगी और बाकी चीजों की सटीक जानकारी हासिल की जाए।

स्लिम अगर कामयाब लैंडिंग करता है तो इसका टारगेट अपने आसपास का 100 मीटर क्षेत्र होगा। इस लैंडर का वजन 200 किलोग्राम है। लंबाई 2.4 मीटर और चौड़ाई 2.7 मीटर है। इसमें बेहतरीन रडार, लेजर रेंज फाइंडर और विजन बेस्ड नेविगेशन सिस्टम हैं। ये इक्विपमेंट्स एक्युरेट लैंडिंग में मदद करेंगे।

इसमें लगे कैमरे चंद्रमा पर मौजूद चट्टानों की बिल्कुल साफ तस्वीरें लेंगे। इसके साथ ही इसमें लूनर एक्सप्लोरेशन व्हीकल और लूनर रोबोट भी हैं। इन्हें ORA-Q नाम दिया गया है। इनका साइज बहुत छोटा है और इन्हें हथेली पर रखा जा सकता है।

लॉन्चिंग और लैंडिंग के बीच लंबा फासला
स्लिम को मौसम बेहतर होते ही लॉन्च किए जाने की उम्मीद है। यह तीन से चार महीने तक ऑर्बिट में चक्कर लगाएगा। इसके बाद यह लैंड करेगा। ये वहां करीब 6 महीने तक ऑपरेशनल रह सकता है और इस दौरान अपने कमांड सेंटर को पूरे वक्त तस्वीरें भेजता रहेगा।

जापान के साइंटिस्ट्स का मानना है कि इस मिशन से मिलने वाली कामयाबी फ्यूचर के मिशन्स के लिए बहुत खास साबित होगी। जापान को शुरुआती दौर में इस तरह के मिशन्स में ज्यादा कामयाबी नहीं मिली थी। इनसे सीखकर जापान ने यह नया मिशन मून लॉन्च करने का फैसला किया है। अब स्लिम को मून स्नाइपर के जरिए लॉन्च किए जाने का वक्त करीब है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जापान के इस मिशन पर करीब 102 मिलियन डॉलर खर्च हुए हैं।

publicfirstnews.com

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