मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव पर उज्जैन से श्रीमद्भगवद गीता प्रचार रथ को रवाना किया। सीएम मोहन ने इस दौरान प्रदेश में भगवान श्री कृष्ण से जुड़े सभी स्थलों को तीर्थ के रूप में विकसित किए जाने की घोषणा की। सीएम मोहन ने कहा कि जहां भगवान श्री कृष्ण के चरण पड़े थे वहां तीर्थस्थल बनाए जाएंगे। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि भोपाल में भगवत भक्तों ने गीता पाठ कर एक अनूठा विश्व रिकार्ड बनाया है। हम मध्यप्रदेश में गीता जी को पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित कर रहे हैं। श्रीमदभगवद गीता पर आधारित स्कूली छात्रों की प्रतियोगिता में 45 लाख से अधिक बच्चों ने भाग लिया व पुरस्कार जीतें।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा भगवान श्रीकृष्ण का मध्यप्रदेश और उज्जैन से गहरा नाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध के बाद महाराजा उग्रसेन को पुन: राजा बनाया और स्वयं उज्जैन के सांदीपनी आश्रम में आकर 64 कलाओं की शिक्षा प्राप्त की। यह मनुष्य के जीवन में शिक्षा के महत्व को दर्शाती है और शिक्षा की सनातन परंपरा से मध्यप्रदेश व उज्जैन का गहरा नाता जोड़ती है। महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी नारायणी सेना कौरवों को दी और स्वयं पाण्डवों के पक्ष में रहे। भगवान श्रीकृष्ण की नारायणी सेना इतनी अनुशासित थी कि उसके सैनिकों ने युद्ध भूमि से पलायन नहीं किया और अंत तक युद्ध में डटे रहे।
सीएम मोहन ने बताया गीता का महत्व और दिया शिक्षा का संदेश
सीएम मोहन यादव ने कहा, ” गीता का ज्ञान सभी धर्मों और समुदायों के लिए है. यह कर्मयोग, भक्तियोग, और ज्ञानयोग की गूढ़ता को स्पष्ट करती है. भगवान श्रीकृष्ण ने उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में 64 कलाओं की शिक्षा ली, जो शिक्षा के महत्व को दर्शाता है.” उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश में गीता को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जा रहा है. हाल ही में आयोजित प्रतियोगिता में 45 लाख से अधिक छात्रों ने भाग लिया. मुख्यमंत्री ने ‘गीता’ को जीवन में अपनाने और उसका अध्ययन करने का आह्वान किया।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि बाबा श्री महाकाल की नगरी उज्जैन, जो सदा से ही धार्मिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र बिन्दु है, आज श्रीमद्भगवद्गीता के पाठ से और अधिक भव्य, दिव्य और ऊर्जामयी लग रही है। अविश्व की प्राचीनतम और समृद्धतम आध्यात्मिक ज्ञानकोष का क्रैशकोर्स है श्रीमदभगवद्गीता। आजकल धर्म का अर्थ केवल पूजा-पद्धति से जोड़ा जाता है, लेकिन सनातन संस्कृति में धर्म का वास्तविक अर्थ था आदर्श आचरण संहिता। श्रीमद्भगवद्गीता जीवन जीने के उसी आदर्श आचरण का प्रकटीकरण है। जीवन में लक्ष्य पाने के लिए हम सभी को श्रीमदभगवद् गीता का दिव्य पाठ करना चाहिए। गीता का ज्ञान सभी के लिए है, गीता साक्षात देववाणी है, गीता दिव्यवाणी है।
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