पब्लिक फर्स्ट। जम्मू कश्मीर। मीर मुजफ्फर।
सरकारी डिग्री कॉलेज (जीडीसी) पंपोर में सोमवार को “कश्मीर में भीख मांगने की समस्या – एक बढ़ती चिंता” विषय पर एक महत्वपूर्ण सेमिनार आयोजित किया गया। इस आयोजन में समाजसेवियों, शिक्षाविदों और धार्मिक विद्वानों ने भाग लिया, जिन्होंने इस गंभीर सामाजिक समस्या के समाधान पर अपने विचार साझा किए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता जीडीसी पंपोर की प्रिंसिपल प्रोफेसर सूफिया खलील ने की। विशिष्ट अतिथियों में समाजसेवी और इस्लामिक वित्त विशेषज्ञ डॉ. महबूब मखदूमी, मिस खैर-उन-निसा (डब्ल्यूटीओ सदस्य), मुफ्ती मोहम्मद सुल्तान कासमी (सिराज-उल-आलूम के ग्रैंड मुफ्ती), और डॉ. मोहम्मद इकबाल मलिक (इस्लामिक अध्ययन विभाग के प्रमुख) शामिल रहे। इस कार्यक्रम में संकाय सदस्यों के साथ बड़ी संख्या में छात्रों ने भी भाग लिया।
भीख मांगने की समस्या के सामाजिक-आर्थिक पहलू
सभा को संबोधित करते हुए डॉ. महबूब मखदूमी ने कहा, “भीख मांगना केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक जटिल सामाजिक समस्या है। इसके समाधान के लिए कौशल विकास और वित्तीय समावेशन जैसे स्थायी उपायों की आवश्यकता है।”
मिस खैर-उन-निसा ने वैश्विक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए कहा कि अन्य देशों में इस समस्या के समाधान के लिए सख्त कानूनों और प्रभावी सामाजिक कल्याण योजनाओं का सहारा लिया गया है। उन्होंने कहा, “भारत में भी प्रभावी नीतियों और भीख मांगने के खिलाफ कानूनों के सख्त क्रियान्वयन की आवश्यकता है।”
इस्लामिक दृष्टिकोण और समुदाय की भूमिका
मुफ्ती मोहम्मद सुल्तान कासमी ने इस्लामिक दृष्टिकोण साझा करते हुए कहा, “इस्लाम दान को प्रोत्साहित करता है, लेकिन आदतन भीख मांगने को हतोत्साहित करता है। समाज को ज़कात और सामाजिक सहायता के माध्यम से गरीबों और वंचितों की मदद के लिए आगे आना चाहिए।”
समाधान की ओर कदम
इस्लामिक अध्ययन विभाग के प्रमुख डॉ. मोहम्मद इकबाल मलिक ने कहा कि इस समस्या के समाधान के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों में वृद्धि जरूरी है। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार और सामाजिक संस्थानों को मिलकर कार्य करना चाहिए ताकि जरूरतमंदों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
इस सेमिनार ने कश्मीर में बढ़ती भीख मांगने की समस्या पर जागरूकता बढ़ाने और इसके समाधान के लिए ठोस कदम उठाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म दिया।