विनोद बंसल, राष्ट्रीय प्रवक्ता – विहिप
“घर वापसी”, जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है किसी व्यक्ति या समूह का अपने घर में पुनः आगमन। यह केवल एक धार्मिक आंदोलन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनरुत्थान की एक महत्त्वपूर्ण धारा है। यह उन व्यक्तियों या समुदायों की अपने मूल स्वधर्म में वापसी की एक सात्विक प्रक्रिया है, जो ऐतिहासिक कारणों, लोभ-लालच, जोर जबरदस्ती या सामाजिक परिस्थितियों के चलते अन्य मत मजहबों को अपनाने के लिए विवश हुए थे।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
भारत में हजारों वर्षों से बहुलतावादी संस्कृति रही है, लेकिन मध्यकालीन आक्रमणों के दौर में विशेषकर मुगल और इस्लामी आक्रांताओं द्वारा बड़े पैमाने पर हिन्दुओं का बलपूर्वक या प्रलोभन द्वारा धर्मांतरण हुआ। यही स्थिति अंग्रेजी शासन के औपनिवेशिक काल में भी रही, जब मिशनरियों ने लालच और सामाजिक सेवा की आड़ में लाखों हिंदुओं, विशेषकर अनुसूचित जातियों, जनजातियों व अन्य पिछड़े वर्ग का धर्मांतरण करवाया।
19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के प्रारंभ में, जब राष्ट्र प्रेम की भावना जोर पकड़ रही थी, तब आर्य समाज के मूर्धन्य संत पूज्य स्वामी श्रद्धानंद और अन्य हिंदू संगठनों ने ‘शुद्धि आंदोलन’ की शुरुआत की, जिसे आज ‘घर वापसी’ का मूल कहा जा सकता है। हालांकि घर वापसी की प्रक्रिया बहुत पुरातन काल से चली आ रही है।
स्वामी श्रद्धानंद ने विशेष रूप से उत्तर भारत में जबरन मुसलमान बनाए गए मेवाती और अन्य जनजातीय समुदायों को पुनः हिन्दू धर्म में लौटाने का पुनीत कार्य किया। उन्होंने इसे एक सामाजिक पुनरुद्धार मानकर एक “राष्ट्रीय कर्तव्य” की संज्ञा दी। इसी शुद्धि आंदोलन के कारण 1926 में उनकी हत्या अब्दुल रशीद नामक मतांधा मुसलमान ने धोखे से कर दी।
1964 में विश्व हिंदू परिषद की स्थापना की पृष्ठभूमि में भी धर्मांतरण के अभिशाप से मुक्ति ही थी। मध्यप्रदेश में ईसाई मिशनरियों के द्वारा किए जा रहे धर्मांतरण मामले में आई नियोगी कमीशन की रिपोर्ट ने 70 के दशक में एक देश व्यापी बहस व नव चेतना को जन्म दिया।
हिन्दू की परिभाषा करते हुए विहिप के संविधान में कहा गया ही कि “जो व्यक्ति भारत में विकसित हुए जीवन मूल्यों में आस्था रखता है या जो व्यक्ति स्वयं को हिन्दू कहता है वह हिन्दू है”। अपनी स्थापना के दूसरे ही वर्ष में, 22 से 24 जनवरी 1966 को कुम्भ के अवसर पर 12 देशों के 25 हज़ार प्रतिनिधियों की सहभागिता के साथ संगठन का प्रथम विश्व हिंदू सम्मेलन तीर्थराज प्रयागराज में सम्पन्न हुआ। इसमें 300 प्रमुख संतों के साथ पहली बार प्रमुख शंकराचार्य भी एक साथ आए और धर्मांतरण पर रोक व परावर्तन (घर वापसी) का एक बड़ा सार्वजनिक संकल्प लिया गया। इसी सम्मेलन में जहां परावर्तन यानि घर वापसी को मान्यता देने का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित हुआ वहीं विहिप के बोध वाक्य “धर्मो रक्षति रक्षितः” और बोध चिह्न “अक्षय वटवृक्ष” भी तय हुआ।
विहिप द्वारा आयोजित 1969 की उडुपी धर्म संसद में पूज्य संतों का यह उदघोष कि ‘हिंदाव: सोदरा सर्वे, ना हिंदू पतित भवेत्’, ने भी देशभर में एक नई बहस को जन्म दिया और कहा कि हिंदू कभी पतित या नीचा नहीं होता। सभी हिंदू भाई भाई हैं। जिन्होंने दबाव, लालच या किसी विवशतावश हिंदू धर्म छोड़ा, वे भी स्वेच्छा से स्वधर्म में पुनः वापस आ सकते हैं। ऐसे अपने सभी बिछड़े बंधु भगिनियों का हम मिलकर हृदय से स्वागत करेंगे। यह बात पूजनीय श्री गुरुजी की उपस्थिति में सभी पूजनीय जगतगुरू शंकराचार्यों व देश के वरिष्ठ हिंदू नेतृत्व से उदघोषित की। इससे पूर्व समाज का एक वर्ग घर वापसी को ठीक नहीं मानता था। वह कहता था कि मुसलमान बनाने से वह अपवित्र हो गया और ऐसे पथ भ्रष्ट व्यक्तियों के साथ हम कैसे संबंध बना सकते हैं।
वास्तव में, धर्मांतरण ने ही ‘घर वापसी’ को संगठित आंदोलन का रूप दिया। विहिप का मानना है कि धर्मांतरण भारतीय समाज को विभाजित कर राष्ट्रांतरण का कारक बन, ना सिर्फ देश की सांस्कृतिक अस्मिता को खतरे में डालता है अपितु अपने ही पूर्व स्वधर्मियों का शोषण कर अमानवीय रूप धारण कर लेता है। भारत से अलग हुए पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति इसका जीता जागता उदाहरण है। इसीलिए, घर वापसी को ‘धर्मांतरण’ नहीं बल्कि, ‘स्वधर्म की पुनर्प्राप्ति’ माना जाता है।
विहिप समेत अनेक पूज्य संत व हिंदू संगठन, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में अधिक चौकन्ने रहते हैं, जहाँ हिंदू समाज के अनुसूचित जाति, जनजातियों या अन्य सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोग अधिक संख्या में पहले हिंदू थे और बाद में ईसाई या इस्लाम में चले गए।
घर वापसी की प्रक्रिया:
हालांकि घर वापसी की कोई निश्चित प्रक्रिया नहीं बताई जा सकती, यह देश, काल व परिस्थिति के अनुसार बदली रहती है किंतु, सामान्य तौर पर यह निम्नलिखित चरणों में होती है:
संपर्क एवं संवाद:
पहले उन व्यक्तियों या परिवारों से संपर्क किया जाता है जो अपने पूर्वजों के धर्म में लौटने को स्वयं इच्छुक होते हैं।
सत्यापन :
जांच की जाती है कि संबंधित व्यक्ति या उनके पूर्वज वास्तव में कभी हिन्दू थे। यह पहचान व्यक्तियों के ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक व पारिवारिक परिवेश के आधार पर होती है।
धार्मिक अनुष्ठान:
घर वापसी की प्रक्रिया एक पवित्र वैदिक विधान के अंतर्गत ‘शुद्धि यज्ञ’, ‘संकल्प’, ‘हवन’, और ‘गंगा जल स्नान’ इत्यादि धार्मिक अनुष्ठान के द्वारा संपन्न होती है।
सामाजिक पुनः स्वीकार:
स्थानीय समाज के वरिष्ठ जन और पुरोहित वर्ग उस व्यक्ति या पारिवारिक समूह को पुनः हिंदू समाज में अभिनंदन पूर्वक स्वीकार कर उन्हें उनका मूल गोत्र प्रदान करते हैं।
सामाजिक समरसता:
उनके पुनः हिंदू समाज में आने के बाद, उनके साथ भेदभाव, विशेषकर जाति या वर्ग के आधार पर न हो, यह शेष समाज द्वारा सुनिश्चित किया जाता है। साथ ही उनके साथ रोटी-बेटी का संबंध बना कर एकता और एकात्मकता का संकल्प भी लिया जाता है।
पूज्य संतों के आशीर्वाद व हिंदू समाज के जागरूक लोगों व समूहों के साथ विश्व हिंदू परिषद के गत 6 दशकों में किए गए विविध प्रयासों ने इस संबंध में सम्पूर्ण देश में एक नव चेतना का संचार किया है। विहिप ने अवैध धर्मांतरण पर रोक तथा धर्मान्तरित हिन्दू भाई-बहिनों को अपनी जड़ों से पुन: जोड़ने की दिशा में भी बड़ा कार्य किया है। हमने अभी तक लगभग 40 लाख हिन्दुओं के धर्मांतरण को रोकने के साथ-साथ हम लगभग 9 लाख लोगों की घरवापसी भी करा चुके। अनुसूचित जाति, जन जाति, वनवासी व गिरिवासी समाज के बीच सेवा, समर्पण व स्वावलंबन के मंत्र के साथ अनेक राज्यों में छल-बल पूर्वक धर्मान्तरण के विरुद्ध कठोर दण्ड की व्यवस्था वाले कानून विहिप के सतत प्रयासों के कारण ही बन पाए हैं।
अभी तक लगभग 25 हजार बहिनों को लवजिहाद के षडयन्त्र से बचाया। इतना ही नहीं, गत एक दशक में देश के दर्जन भर राज्यों में अवैध धर्मांतरण के विरुद्ध कठोर कानून बनवाकर धर्मद्रोही चर्च, जिहादी और कम्युनिस्टों को जेल पहुंचाया है। कुछ वर्ष पूर्व तक लव जिहाद व धर्मांतरण की घटनाओं को जो लोग सिरे से नकारकर भारतीय परंपराओं और मान्यताओं का उपहास उड़ाते थे वे अब स्वयं उसे मानने को मजबूर हुए हैं। समाज में घर वापसी के प्रति एक नई लहर चल पड़ी है। यूपी में छांगुर जैसे जिहादी जमालुद्दीनों के अनगिनत देशविरोधी व धर्मांतरण के अड्डों को अब समाज स्वयं अग्रणी हो कर ध्वस्त कर रहा है। विहिप समेत अब सम्पूर्ण भारत का यह संकल्प है कि देश को हम धर्मांतरण की इस विभीषिका से मुक्ति दिला कर ही रहेंगे।
