पब्लिक फर्स्ट,अयोध्या
अयोध्या में रामलला के मंदिर में विराजित बालक राम के मस्तक पर इसी रामनवमी को दोपहर 12 बजे सूर्य स्वयं तिलक करेंगे। मंदिर का शिखर अभी अधूरा है। हालांकि निर्माण एजेंसी ने सूर्य तिलक के लिए जरूरी शिखर को 17 अप्रैल को आ रही राम नवमी से पहले पूरा करने का लक्ष्य रखा है। 7.5 सेमी का यह तिलक 3 मिनट के लिए होगा। सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट CBRI के चीफ साइंटिस्ट एसके पाणिग्रही ने बताया कि इसके लिए मंदिर के शिखर से गर्भगृह तक उपकरण डिजाइन किया गया है। उपकरण का गर्भगृह वाला हिस्सा लगाया जा चुका है। बाकी मंदिर निर्माण पूर्ण होने पर जोड़ा जाएगा। मंदिर के शिखर पर जिस दर्पण पर सूर्य की किरणें पड़ेंगी,वह रामनवमी पर ऐसे घूमेगा कि किरणें परावर्तित होकर श्रीराम के मस्तक तक पहुंचें। इधर,रामलला के पूजन के लिए अर्चकों की नियुक्ति और प्रशिक्षण देने वाले आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने बताया कि अभी उनकी सेवा 5 साल के राजकुमार की तरह हो रही है। उन्हें रबड़ी-मालपुआ का भोग लग रहा है,और शयन से पहले उन्हें चारों वेद सुनाए जा रहे हैं। रामलला कि सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक की दिनचर्या तय है। रामलला को अर्चक सुबह 4 बजे उसी तरह जगाते हैं,जैसे माता कौशल्या जगाती थीं। बाल भोग,शृंगार आरती के बाद प्रभु दर्शन देते हैं। यह पूरी प्रक्रिया लगभग सुबह 6:30 बजे तक संपन्न होती है। दर्शनों के बाद करीब 9:30 बजे कुछ देर के लिए पट बंद होते हैं। फिर 11:30 बजे तक दर्शन का क्रम चलता है। 11:30 बजे राजभोग लगता है। इसकी पद्धति भी तय है। 12 बजे राजभोग आरती होती है। राजभोग के पद सुनाए जाते हैं। संगीत की सेवा होती है। भगवान लगभग आधा घंटा सबको दर्शन देते हैं। और 12:30 बजे मध्यान्ह विश्राम शुरू हो जाता है। दोपहर ढाई बजे के बाद उन्हें फिर से जगाया जाता है। फिर से भोग लगाया जाता है और आरती होती है। इसके बाद दर्शन शुरू होते हैं। शाम 6:30 बजे संध्या आरती होती है। रात करीब 8 से 8:30 बजे शयन आरती होती है। शयन आरती से पहले भोग लगाया जाता है। प्रभु को संगीत सुनाया जाता है। भगवान को रोज चारों वेद सुनाए जाते है।