पब्लिक फर्स्ट । रिसर्च डेस्क । ब्यूरो ।

“धर्म बदला, जाति की जंजीर और कस गई”

उपशीर्षक:

हिन्दू धर्म को जातिवाद का प्रतीक बनाकर बदनाम किया गया, जबकि इस्लाम में छुपा जातिवाद कहीं ज़्यादा गहरा, क्रूर और बोलने की भी मनाही वाला है!

प्रस्तावना: भाईचारे के पोस्टर में लिपटी एक जातिवादी चुप्पी

भारत में सदियों से जातिगत ऊँच-नीच के नाम पर सनातन धर्म को कोसा गया। उसे पिछड़ा, शोषणकारी, ब्राह्मणवादी और दमनकारी कहा गया — और उसका विकल्प बताया गया “इस्लाम” जो समानता और भाईचारे का दावा करता है।

लेकिन क्या सच में इस्लाम में समानता है?

जिन लाखों लोगों ने जाति अत्याचार से तंग आकर या तलवार के डर से इस्लाम अपनाया, उन्हें ना केवल उनकी पुरानी जाति मिली, बल्कि उसका एक नया, और अपमानजनक रूप भी—जहाँ बोलने की भी इजाज़त नहीं।
यह सबसे खतरनाक जातिवाद है—जो धर्मनिरपेक्षता और बराबरी की आड़ में छुपा बैठा है।

सनातन धर्म बनाम इस्लाम – जातिवाद की सच्चाई

इस्लाम में छुपा हुआ जातिगत ढांचा: मुख्य वर्गीकरण

अशराफ (श्रेष्ठ/विदेशी नस्ल के मुसलमान)

यह वर्ग खुद को अरब, ईरानी, तुर्क, अफगान मूल का बताता है।

जातियाँ:

  • सैयद: “पैगम्बर की संतान” कहकर उच्चतम वर्ग।
  • शेख: कथित अरब वंशज, व्यापारी और शासक वर्ग।
  • पठान: अफगान मूल के योद्धा, खुद को राजपूतों से बेहतर मानते हैं।
  • मुगल: मध्य एशियाई वंशज, शासक और दरबारी भूमिका में।

इनमें आपस में ही विवाह होते हैं। सैयद लोग किसी गैर-सैयद से निकाह नहीं करते।

अजलाफ (धर्मांतरित भारतीय जातियाँ – पिछड़ी जाति)

यह वर्ग वह है जो भारत के विभिन्न शिल्पकार, कारीगर, बुनकर, व्यापारी वर्ग से इस्लाम में आए।

उपजातियाँ और उनके सरनेम:

  • अंसारी: बुनकर वर्ग (जुलाहा जाति), उत्तर भारत में बड़ी संख्या।
  • मंसूरी: धोबी जाति से धर्मांतरित।
  • कसाई / कुरैशी: पशु वध करने वाले, मांस व्यापारी।
  • सिद्दीकी / नक़वी / फारूकी: पेशे के आधार पर बने उपनाम, जो कथित रूप से “क़ुरैश” वंश या अरब परिवारों से जोड़ने की कोशिश हैं – असल में ये जाति छुपाने के प्रयास हैं।

अशराफ इनसे विवाह नहीं करते। इनके लिए मस्जिद, कब्रिस्तान और इबादत की जगहें तक अलग हो जाती हैं।

अरज़ल (पसमांदा / दलित मूल से आए मुस्लिम)

ये सबसे निचली पायदान के लोग हैं जो मेहतर, हलालखोर, भंगी, हिजड़ा आदि जातियों से इस्लाम में आए।

मुख्य विशेषताएँ:

  • सरनेम नहीं, पेशा ही पहचान।
  • शादी-ब्याह अशराफ और अजलाफ तक नहीं करते।
  • इबादत में हिस्सा नहीं मिलता, मस्जिदों में प्रवेश में अवरोध।
  • कब्रिस्तान अलग, कई बार सार्वजनिक कब्रिस्तान में जगह नहीं।

ये वही वर्ग हैं जिन्हें मुसलमान समाज में “मूक गुलाम” की तरह रखा जाता है—वोट के समय याद किया जाता है, बाकी समय भुला दिया जाता है।

उदाहरण से समझें: मुसलमानों के सरनेम = जातिगत रहस्य

भेदभाव के रूप: एक ज़मीनी हकीकत

निकाह में भेदभाव:

  • सैयद परिवारों में “ग़ैर-सैयद” लड़के से शादी करना “बेइज्ज़ती” मानी जाती है।
  • बुनकर (अंसारी) या कसाई परिवारों की लड़कियाँ अगर ऊँची जाति में विवाह चाहें, तो हत्या या बहिष्कार तक कर दिया जाता है।

मस्जिदों में प्रवेश:

  • कई गांवों में अलग-अलग बिरादरियों की मस्जिदें—अरबी मुसलमानों की अलग, अंसारी की अलग, दलित मुसलमानों की अलग।

इबादत में भेदभाव:

  • मस्जिद की पंक्ति में सबसे पीछे खड़ा किया जाता है।
  • शुक्रवार की नमाज़ में मौलवी तक पसमांदा के मुद्दों पर बोलने से बचते हैं।

राजनीतिक छाया:

  • मुस्लिम नेतृत्व में 90% प्रतिनिधित्व सिर्फ अशराफ वर्ग का, जबकि 80% से अधिक आबादी पसमांदा वर्ग की है।

निष्कर्ष: हिन्दू धर्म गया, जाति की बेड़ी और मोटी हुई

जिन लोगों ने हिन्दू धर्म को कोसकर इस्लाम में ‘भाईचारा’ ढूंढा—उन्हें ना धर्म की मुक्ति मिली, ना समानता का अधिकार।

धर्मांतरण कोई समाधान नहीं, बल्कि एक नया ‘अदृश्य पिंजरा’ है।

हिन्दू धर्म में यद्यपि जातिवाद रहा, परंतु वहाँ आत्मनिरीक्षण, सुधार और संतों का प्रवाह चलता रहा।

पर इस्लाम में सुधार की अनुमति नहीं। वहाँ बोलना भी हराम है।

जातिगत जनगणना इस्लाम की इन्हीं जातियों के जाल का खुलासा कर देगी !

  • विपक्ष का दांव पड़ सकता है उल्टा
  • ⁠धर्मांतरण किया लेकिन जाति वहीं !
  • ⁠मुस्लिम भाईचारे का होगा भंडाफोड़ !?
  • विपक्षी कांग्रेस और अन्य विरोधी दलों की मांग पर देश में जातिगत जनगणना की जायेगी ।
  • ऐसे में 2025 की जातिगत जनगणना में मुस्लिमों की भी जातियां गिनी जाएंगी। पहली बार मुसलमानों के लिए भी धर्म के साथ जाति का कॉलम होगा।
  • मुस्लिम समाज में सैकड़ों जातियां और उपजातियां हैं, जिनमें से प्रमुख को तीन वर्गों (अशराफ, अजलाफ, अरजाल) में बांटा जाता है।
  • पसमांदा मुसलमानों की पहचान विशेष रूप से की जाएगी, जिनकी संख्या मुस्लिम समाज में 80-85% मानी जाती है।
  • अब तक की जनगणनाओं में मुसलमानों को एक ही वर्ग में गिना जाता था, लेकिन इस बार जातिगत विविधता का पूरा डेटा सामने आएगा.
  • यानि धर्मांतरित पंसमांदा मुस्लिमों का मुद्दा – मुसलमान समाज के भीतर छिपाये गये – भाईचारे के पर्दे से बाहर आ जायेगा और तब शायद मुसलमानों की सियासत और मुल्ला मौलवियों के फरमानों और फ़तवों के पीछे की हकीकत का बड़े ख़ुलासा हो जायेगा !।

भारत में पहली बार होने जा रही जातिगत जनगणना में मुस्लिम समुदाय की सैकड़ों जातियां और उपजातियां शामिल की जा सकती हैं। भारतीय मुसलमान मुख्य रूप से तीन बड़े वर्गों में बंटे हैं: अशराफ, अजलाफ (या पसमांदा), और अरजाल। इन वर्गों के भीतर अनेक जातियां और बिरादरियां मौजूद हैं, जिनकी गणना इस बार विस्तार से की जाएगी।

प्रमुख मुस्लिम जातियां और उपजातियां

  • पसमांदा मुसलमान (OBC/अति पिछड़े) की संख्या मुस्लिम समाज में 70-85% तक मानी जाती है।
  • अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों में मुस्लिम जातियों के नाम और उपजातियां बदल सकती हैं, जिससे कुल मिलाकर सैकड़ों जातियां/उपजातियां गणना में दर्ज हो सकती हैं।
  • अब तक सरकारी गिनती में मुसलमानों को एक धार्मिक समूह के रूप में गिना जाता था, लेकिन इस बार जाति के आधार पर अलग-अलग पहचान दर्ज की जाएगी।

publicfirstnews.com

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