पब्लिक फर्स्ट। रियाद।

60 साल का बेटा क्लास में छोड़कर आता है, छुट्टी होने तक बाहर बैठता है
सऊदी अरब में इन दिनों 110 साल की उम्र वाली बुजुर्ग स्टूडेंट की चर्चा है। इस महिला का नाम नवाद अल कहतानी है। नवाद सऊदी सरकार के स्पेशल एजुकेशन प्रोग्राम का हिस्सा हैं। इसके तहत किसी भी उम्र के लोग सरकारी स्कूल जाकर बेसिक एजुकेशन हासिल कर सकते हैं।

नवाद के चार बेटे हैं। सबसे बड़े बेटे की उम्र 80 और सबसे छोटे की उम्र 50 साल है। सभी बच्चे मां को इस उम्र में भी तालीम हासिल करते देख रहे हैं और बेहद खुश हैं। तीसरे नंबर का बेटा उन्हें स्कूल छोड़ने जाता है और छुट्टी होने तक स्कूल के बाहर बैठा रहता है ताकि मां को बिना किसी तकलीफ के घर तक छोड़ सके।

देर आयद, दुरुस्त आयद

  1. सऊदी सरकार ने देश में अल रहवा सेंटर खोले हैं। दरअसल, ये एक बेसिक एजुकेशन चेन है, जिसे खास तौर पर देश के पिछड़े हिस्से दक्षिण-पश्चिम के लिए डिजाइन किया गया है। हालांकि कुछ और हिस्सों में ये एजुकेशन प्रोग्राम चलाया जा रहा है।
  2. नवाद की बात करें तो वो सऊदी के उम्वाह इलाके में रहती हैं। बुजुर्ग महिला का मानना है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। वो कहती है- जहां तक मेरे तालीम हासिल करने का सवाल है तो बस इतना सच है कि देर आयद, दुरुस्त आयद।
  3. सऊदी सरकार देश में इलिटरेसी यानी निरक्षरता को पूरी तरह खत्म करना चाहती है। नवाद एजुकेशन हासिल करने के लिए कितनी उत्सुक हैं, इसका अंदाजा सिर्फ एक बात से लगाया जा सकता है कि जिस दिन से उन्होंने स्कूल जॉइन किया है, उस दिन से अब तक एक भी दिन गैरहाजिर नहीं रहीं।

आसान नहीं था स्कूल लौटना
करीब 100 साल बाद स्कूल लौटने वाली नवाद कहती हैं- उम्र के इस मुकाम पर स्कूल लौटना बेहद मुश्किल काम है। मैंने पहली बार जब इस एजुकेशन प्रोग्राम के बारे में सुना तो बहुत अच्छा लगा। मुझे लगता है कि मुझे अपनी तालीम कई साल पहले ही शुरू कर देनी थी। आज इस बात का अफसोस होता है कि मैंने कई साल बिना एजुकेशन के गंवा दिए। अब न सिर्फ मेरी जिंदगी बदलेगी, बल्कि मैं दूसरों का जीवन भी संवार सकती हूं।

नवाद के बच्चे अपनी मां के फिर स्कूल जाने पर बेहद खुश हैं और उनका समर्थन करते हैं। एक बेटा कहता है- यह सब अल्लाह की मर्जी से हो रहा है। मैं रोज मां को स्कूल लेकर जाता हूं और जब तक स्कूल की छुट्टी नहीं हो जाती, तब तक बाहर बैठकर उनका इंतजार करता हूं। स्कूल में को-एजुकेशन का इंतजाम नहीं है और लड़कियों के लिए इस इलाके में सिर्फ एक स्कूल है। लिहाजा यहां टीचर्स पर काफी दबाव रहता है।

publicfirstnews.com

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