पब्लिक फर्स्ट। मथुरा।

फोटो-किताबों से दावा; मुस्लिम पक्ष बोला- कोर्ट में क्यों नहीं दिखाते
तारीख: 10 सितंबर, जगह: आगरा का फतेहाबाद। यहां एक प्रदर्शनी लगी, जिसमें लोगों को मूर्तियों की पुरानी फोटो, किताबें, कोर्ट के फैसले और नक्शे दिखाए गए। मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि का केस लड़ रहा हिंदू पक्ष इन्हें ईदगाह की जगह मंदिर होने के सबूत बताता है। ये प्रदर्शनी योगी यूथ ब्रिगेड और धर्म रक्षा ट्रस्ट ने लगाई थी।

श्रीकृष्ण जन्मस्थान के लिए याचिका लगाने वाले एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह शहर-शहर जाकर सभी ‘सबूत’ दिखा रहे हैं। आगरा के बाद वाराणसी, प्रयागराज और लखनऊ में ये प्रदर्शनी लगाई जाएगी।

15 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में कृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद की सुनवाई होगी। हिंदू पक्ष अब तक अलग-अलग कोर्ट में 18 याचिकाएं लगा चुका है। उसकी दो मांगें हैं…

वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद की तर्ज पर मथुरा में भी ASI सर्वे कराया जाए। इसके लिए अगस्त में सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई थी।

श्री कृष्ण जन्मभूमि से ईदगाह का कब्जा हटाया जाए, इसके लिए स्थानीय अदालतों में याचिकाएं लगी हैं।

मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की है कि सभी मामलों की सुनवाई मथुरा डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में हो। अभी इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई में चल रही है।

सुनवाई से पहले दैनिक भास्कर दोनों पक्षों के पास पहुंचा और पूछा कि अपना दावा साबित करने के लिए उनके पास क्या सबूत हैं। साथ ही लोगों से जाना कि इस विवाद का मथुरा के माहौल पर क्या असर पड़ा है।

मंदिर-मस्जिद का मसला 52 साल शांत, 2020 में फिर विवाद
12 अक्टूबर, 1968 को शाही ईदगाह और श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान के बीच समझौता हुआ था। इसमें 13.7 एकड़ जमीन में से 10.9 एकड़ पर मंदिर और 2.5 एकड़ पर शाही ईदगाह बनने की बात हुई। समझौते के 52 साल बाद 2020 में हिंदू पक्ष ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर दावा करते हुए शाही ईदगाह को हटाने की मांग की। इससे ये विवाद फिर सामने आ गया।

हिंदू पक्ष ने 52 साल बाद ईदगाह की जमीन पर दावा क्यों किया? इसका जवाब श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के जनसंपर्क अधिकारी विजय बहादुर सिंह ने दिया। वे कहते हैं, ‘अब तक हम मंदिर के डेवलपमेंट में लगे थे। अब जाकर श्रद्धालुओं के लिए जरूरी सुविधाएं जुटा पाए हैं।’

‘अयोध्या के राममंदिर पर फैसला आया और हमारी सरकार सत्ता में आ गई, इसलिए ये समय हमारे लिए सबसे सही है। यही वजह है कि पहले श्रीकृष्ण के भक्तों ने याचिका दायर की, फिर ट्रस्ट की तरफ से 11 अगस्त 2023 को याचिका लगाई गई।’

विजय बहादुर सिंह कहते हैं, ‘मुस्लिम पक्ष के पास शाही ईदगाह पर अधिकार का कोई सबूत नहीं है। 1968 के जिस समझौते की ये दुहाई देते हैं, कानूनन वो सही नहीं है।’

हिंदू पक्ष किन सबूतों के आधार पर कोर्ट में 18 याचिका लगा चुका है। इसका जवाब जानने हम एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह के पास वृंदावन पहुंचे। महेंद्र प्रताप सिंह ने अपनी टेबल पर सबूतों की लंबी लिस्ट रख दी। हमने पूछा- इनकी प्रदर्शनी क्यों लगा रहे हैं?

महेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, ‘मथुरा का विवाद क्या है और हम शाही ईदगाह पर क्यों दावा कर रहे हैं, ये बात हिंदू समाज को बताने के लिए हमने शहर-शहर सबूतों की प्रदर्शनी लगाई है। अब भी बहुत से भक्तों को नहीं पता कि शाही ईदगाह कृष्ण जन्मस्थान पर बनी है।’

पहला सबूत: मुगल काल से लेकर मथुरा गजेटियर तक श्रीकृष्ण जन्मभूमि का जिक्र
महेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं, ‘मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सैकड़ों साल से बना हुआ है। आज से 5512 साल पहले श्रीकृष्ण भगवान मथुरा में प्रकट हुए थे। 1017 में महमूद गजनवी भारत आया और मथुरा पर बार-बार हमला किया। 9वें हमले में उसकी सेना ने शहर में लूटपाट कर मंदिर तोड़ दिया। गजनवी के साथ उसका मंत्री अल-उतबी भी था।’

‘कृष्ण मंदिर को देखकर गजनवी के मंत्री ने कहा था कि ऐसी खूबसूरत इमारत न मैंने देखी, न मेरे सुल्तान ने देखी थी। ऐसा लगता है कि इसकी तामीर फरिश्तों ने की हो। दोबारा इतनी सुंदर इमारत बनाने में 200 साल लगेंगे। इसके बावजूद मंदिर तोड़ दिया गया।’

महेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, ‘रिसर्च के दौरान हमने करीब 2 लाख रुपए उन किताबों के लिए खर्च किए, जिनमें मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि का रिकार्ड मिलता है। अल-उतबी की लिखी किताब-ए-यामिनी के साथ-साथ मथुरा गजेटियर, फ्रैंकोइस बर्नियर की लिखी ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर, वीएस भटनागर की लिखी एम्परर औरंगजेब एंड डिस्ट्रक्शन ऑफ टेंपल और अलेक्जेंडर कनिंघम की लिखी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया किताब में भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि का जिक्र है। इन्हें हम कोर्ट में बतौर सबूत पेश करेंगे।’

दूसरा सबूत: औरंगजेब का मंदिर तोड़ने का फरमान
महेंद्र प्रताप सिंह साकी मुस्ताद खान की किताब ‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘इस किताब में औरंगजेब के 1658 से 1707 तक के शासन का इतिहास है। इसमें लिखा है- औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर को ढहाने और यहां की मूर्तियों को आगरा में शाही जहांआरा बेगम साहिब मस्जिद की सीढ़ियों में लगाने का आदेश जारी किया।’

महेंद्र कहते हैं, ‘सिर्फ एक किताब नहीं है, ऐसी कई किताबें हैं, जिसमें औरंगजेब के श्रीकृष्ण मंदिर को ढहाने के आदेश का जिक्र है। मंदिर तोड़ने के बाद एक हिस्से में मंदिर के ढांचे पर मस्जिद बनवाई गई। इसे अब शाही ईदगाह बताया जा रहा है, लेकिन वही श्रीकृष्ण भगवान का जन्मस्थान और गर्भगृह है।’

तीसरा सबूत: शाही ईदगाह में कमल की आकृति
महेंद्र सिंह दावा करते हैं कि शाही ईदगाह में हिंदू धर्म से जुड़े निशान हैं। कुछ फोटो दिखाते हुए वे कहते हैं, ‘वहां खंभों पर कमल के निशान हैं। नागराज आदिशेष की आकृति बनी है। इसीलिए हमने सुप्रीम कोर्ट में शाही ईदगाह के ASI सर्वे की याचिका लगाई है। वैज्ञानिक तरीके से जांच होगी, तो पता चल जाएगा कि उस जगह मंदिर का गर्भगृह है या फिर शाही ईदगाह। हमें डर है कि दूसरा पक्ष इन सबूतों को मिटा न दे।’

चौथा सबूत: कटरा केशव देव से मिली मूर्तियां
महेंद्र कहते हैं, ‘मथुरा के म्यूजियम में कई मूर्तियां हैं, जो श्री कृष्ण जन्मभूमि की समय-समय पर खुदाई के दौरान निकली हैं। आर्कियोलॉजी के जानकारों ने बताया भी है कि ये मूर्तियां किस वक्त की हैं। इससे साबित होता है कि यही जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान है।’

पांचवां सबूत: 9 मार्च, 1921 का डिस्ट्रिक्ट कोर्ट आगरा का आदेश
महेंद्र कागजों में से कोर्ट का एक आदेश निकालते हैं। उसे दिखाते हुए कहते हैं, ‘ये डिस्ट्रिक्ट कोर्ट का 1921 का आदेश है। इसमें लिखा है कि दीवार के अंदर की विवादित जमीन मंदिर की जगह है।’

‘अंग्रेजों ने 1815 में केशव देव मंदिर नीलाम किया, तो बनारस के पटनीमल ने ये जगह ले ली थी। तभी से मुस्लिम पक्ष की तरफ से बार-बार मुकदमे किए गए। 1920 में अंजुमन इस्लामिया की ओर से मुकदमा किया गया। इस पर कोर्ट ने फैसला सुनाया कि विवादित जमीन मंदिर की है। मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी गई। बार-बार कोशिशों के बावजूद हर बार मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया गया।’

छठा सबूत: खसरा-खतौनी में जमीन श्री कृष्ण जन्मभूमि के नाम दर्ज, ईदगाह का हाउस टैक्स भी मंदिर के नाम
महेंद्र प्रताप सिंह फसली साल 1424 की खसरा-खतौनी दिखाते हुए कहते हैं, ‘इसमें जमीन नंबर-255 श्री कृष्ण जन्मभूमि के नाम पर दर्ज है। इस खसरा खतौनी में ईदगाह का जिक्र नहीं है। अब तक हाउस टैक्स भी श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ही जमा कर रहा है। ये सभी पुख्ता सबूत हैं।’

सातवां सबूत: शाही ईदगाह और श्री कृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान के बीच 1968 में हुआ समझौता
1968 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान और ईदगाह के बीच समझौता हो गया, तो अब हंगामा क्यों है? जवाब में महेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, ‘मदन मोहन मालवीय और तीन लोगों ने मिलकर मंदिर की जमीन पटनीमल के वारिसों से खरीद ली, तो उन्होंने मंदिर की व्यवस्था संभालने के लिए एक ट्रस्ट बनाया।’

‘ट्रस्ट में नामी लोग थे, वे मथुरा में नहीं रह सकते थे। ऐसे में उन्होंने रोजाना के काम देखने के लिए श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान बनाया। ये संस्थान बिना ट्रस्ट के परमिशन के फैसले नहीं ले सकता था। इसे ऐसे समझें कि हमारी कोई प्रॉपर्टी है। हमने उसकी देखरेख के लिए किसी को रख दिया, तो वो उसे खरीदने-बेचने के फैसले नहीं ले सकता है। इसी तरह श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान और ईदगाह का समझौता हुआ था। ये कोर्ट में नहीं टिकेगा।’

लोग बोले- मंदिर-मस्जिद से हमें दिक्कत नहीं
श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह के पक्षकारों के बाद हम मथुरा के लोगों से बातचीत करने निकले। श्रीकृष्ण जन्मस्थान से लगभग 200 मीटर दूर मथुरा-वृंदावन रोड पर डीग गेट चौराहा है।

हमने लोगों से पूछा कि शाही ईदगाह का केस कोर्ट में आने के बाद मथुरा में कैसा माहौल है? लोगों ने कैमरे पर बात करने से इनकार कर दिया। हमने कैमरा बंद कर बात न करने की वजह पूछी, तो बोले कि मीडियावाले हमसे बात करके चले जाते हैं, उसके बाद पुलिस हमें नोटिस दे देती है। कई लोगों को तो जेल भी भेज दिया गया। हालांकि, कुछ लोग बात करने के लिए तैयार हो गए…

श्रीकृष्ण जन्मभूमि संघर्ष न्यास बोला- मंदिर से कब्जा हटाया जाए
श्रीकृष्ण जन्मभूमि संघर्ष न्यास के अध्यक्ष दिनेश शर्मा ने भी कोर्ट में याचिका दायर की है। वे बताते हैं’ ‘मैंने याचिका डाली थी, तब मैं हिंदू महासभा का राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष था। उसके बाद मैं ये लड़ाई श्रीकृष्ण जन्मभूमि संघर्ष न्यास के अध्यक्ष के तौर पर लड़ रहा हूं।’

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