विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर मंदिर में इस बार का रक्षाबंधन पर्व अद्भुत भक्ति और परंपरा के संग मनाया गया। भोर होते ही मंदिर परिसर में हजारों भक्त उमड़ पड़े।
भस्मारती से हुई शुरुआत
पर्व की शुरुआत सुबह 3 बजे भस्मारती के साथ हुई। इस दौरान पुजारी परिवार की महिलाओं ने बाबा महाकाल को सबसे पहली राखी बांधने की परंपरा निभाई। यह विशेष राखी मखमल के कपड़े, रेशमी धागे, मोतियों और भगवान गणेश की चित्रकारी से सजी थी। मान्यता है कि किसी भी शुभ पर्व की शुरुआत महाकाल के दरबार से करने पर उसका फल कई गुना बढ़ जाता है।
विशेष अभिषेक और श्रृंगार
बाबा महाकाल का पंचामृत से अभिषेक किया गया, जिसमें दूध, दही, शहद, घी और शक्कर का प्रयोग हुआ। इसके बाद महाकाल को सुगंधित द्रव्यों और फूलों से स्नान कराकर विशेष श्रृंगार किया गया। गर्भगृह और नंदीहॉल को रंग-बिरंगे फूलों और रोशनी से सजाया गया।
सवा लाख लड्डुओं का महाभोग
इस रक्षाबंधन पर बाबा को 1,25,000 शुद्ध देशी घी, बेसन, शक्कर और ड्राई फ्रूट्स से बने लड्डुओं का महाभोग अर्पित किया गया। यह लड्डू भोग बाद में भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया गया।
दुर्लभ ज्योतिषीय संयोग
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस बार का रक्षाबंधन 297 वर्षों बाद बने दुर्लभ शुभ योग में मनाया गया। इस दिन भद्रा का अभाव और शुभ ग्रह स्थिति ने पर्व को और अधिक पुण्यदायी बना दिया।
भक्तों की भारी भीड़
मंदिर परिसर में सुबह से ही लंबी कतारें लगीं रहीं। भक्तों ने महाकाल के समक्ष विश्व कल्याण और रक्षा की कामना की। मंदिर की सजावट, भस्मारती का दिव्य वातावरण और धार्मिक संगीत ने इस पर्व को अविस्मरणीय बना दिया।
यह आयोजन न केवल रक्षाबंधन की आध्यात्मिक महत्ता को दर्शाता है, बल्कि उज्जैन के सांस्कृतिक और धार्मिक वैभव का भी प्रतीक है।
