पब्लिक फर्स्ट । धर्म । रिसर्च डेस्क ।
ब्रह्मा के पंचम सिर की कुटिलता, शुक्राचार्य की माया और अब्राहमिक पंथों का उद्भव : प्रकृति विरोधी सभ्यता का सच
सनातन वेदों ने सदा कहा —
“माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः”
(पृथ्वी हमारी माता है और हम उसके पुत्र हैं)
- इस वेदोक्त जीवनशैली में हर कर्म का आधार प्रकृति के साथ संतुलन था।
- मनुष्य, पशु, वनस्पति, जल, वायु, अग्नि — सब एक साझा चेतना तंत्र के अंग थे।
- इसलिए न तो शरीर-मन पर अस्वाभाविक बोझ था और न ही घातक बीमारियाँ।
जब पंचम सिर ने दिशा बदली
महाभारत युद्ध के बाद जब लाखों ज्ञानी, ऋषि और योद्धा मारे गए, तब ज्ञान–शून्यता (Knowledge vacuum) उत्पन्न हुई।
महाभारत युद्ध और ज्ञान का संहार
- महाभारत युद्ध में न सिर्फ़ कुटुम्ब का नाश हुआ बल्कि सात्त्विक ऋषि-परंपराएँ भी भारी मात्रा में समाप्त हुईं।
- युद्ध के बाद पृथ्वी पर ज्ञान-शून्यता (Knowledge Vacuum) आई। यही काल पंचम सिर और शुक्राचार्य की माया के लिए अवसर बना।
- ब्रह्मा का पंचम सिर – जो पहले ही शिव द्वारा शापित था – उसका अहंकार यही था कि “मैं विष्णु से भी श्रेष्ठ हूँ, और शिव से भी”।
- इसी अहंकार से वह ऐसी सभ्यताओं की ओर प्रेरित हुआ जो प्रकृति को जीतने और भोगने की मानसिकता पर आधारित थीं।
यही वह क्षण था जब
- ब्रह्मा के पंचम सिर ने शिव–विष्णु से ईर्ष्या कर
- शुक्राचार्य की माया को साथ लेकर नई, प्रकृति–विरोधी सभ्यता की नींव रखी।
यही कारण है कि युद्धोत्तर काल में धीरे-धीरे पश्चिम एशिया में अब्राहमिक पंथ (यहूदी–ईसाई–इस्लाम) जन्मे, जिनकी नींव “एक ईश्वर–एक किताब–एक हुक्म” पर थी, न कि बहु-आयामी प्रकृति–सत्य पर।
यह सभ्यता आर्यों की तरह धर्म–आधारित नहीं थी, बल्कि लालच–आधारित थी।
अब्राहमिक पंथ और पंचम सिर की प्रेरणा
- यह पंथ वेदोक्त चक्र से अलग होकर बने।
- इनमें भय, पाप और दंड प्रमुख साधन बने, न कि तप, साधना और प्रकृति-समरसता।
- यही कारण है कि जब इन पंथों के अनुयायी विज्ञान में आगे बढ़े, तो उनका विज्ञान प्रकृति-विरोधी और विनाशकारी दिशा में गया।
उदाहरण:
- यहूदी विज्ञान और वित्त: शून्य की अवधारणा (भारतीय योगदान) को लेकर आधुनिक गणित, बैंकिंग, और आगे चलकर प्रक्षेपास्त्र और हत्यारे हथियार बनाए।
- ईसाई औद्योगिक क्रांति: मशीन, कारख़ाने, कोयला–पेट्रोल–डीज़ल का दहन। धुआँ और प्रदूषण का युग।
- इस्लामिक रसायन (Alchemy → Chemistry): औषधियों का ज्ञान लेकर धीरे-धीरे केमिकल और ड्रग-निर्माण, परन्तु प्राकृतिक औषधियों का विनाश।
यानी शून्य (Zero) जिसने ब्रह्मांड की अनंतता का रहस्य दिया, उसे पश्चिम ने मिसाइल का लॉन्च कोड बना दिया
शून्य का दुरुपयोग
आर्यभट्ट के शून्य ने सृष्टि को ज्ञान का अनंत विस्तार दिया। परंतु वही शून्यता जब पंचम सिर की विकृत सोच से जुड़ी, तो उसने
- बारूद,
- प्रक्षेपास्त्र,
- मशीनों और
- घातक औद्योगिक हथियारों को जन्म दिया।
यहाँ से विज्ञान प्रकृति की गति के साथ चलने वाला साधन न रहकर प्रकृति को जीतने का हथियार बन गया।
पंचम सिर की उपज – ‘विज्ञान’ का असली छल:
“पहले रोग दो, फिर दवा बेचो”
- पंचम सिर की माया ने पहले वैदिक जीवनशैली को बदला:
- दातुन की जगह पेस्ट।
- रात्रि 12 बजे को “गुड मॉर्निंग” कहा।
- प्राकृतिक भोजन की जगह पैकेट फूड, 2-मिनिट नूडल्स।
- संयमित गृहस्थ धर्म की जगह अत्यधिक सेक्स = मर्दानगी का भ्रम।
- फिर इसी विकृति से उपजी बीमारियों का इलाज करने के नाम पर कैमिकल दवाएँ, ऑपरेशन और अंग काटना चमत्कार कहे गए।
- आँखें पहले कमजोर करवाईं, फिर चश्मा चढ़ाकर बोला गया: “देखो विज्ञान का चमत्कार!”
महाविनाशक आविष्कार
- प्लास्टिक: जिसे नष्ट करना असम्भव है। यह समुद्र, भूमि, वायु सबको जकड़ चुका है।
- पेट्रोल–डीज़ल गाड़ियाँ: जो धरती के वातावरण को छेद कर रही हैं।
- परमाणु बम: हिरोशिमा–नागासाकी इसका साक्षात् प्रमाण।
- कारखाने और धुआँ: औद्योगिक क्रांति से आज तक वातावरण का संकट।
सोचिए: क्या त्रेता–द्वापर में रथ और विमान प्रकृति को ऐसे नुकसान पहुँचा रहे थे? नहीं।
त्रेता–द्वापर बनाम कलियुग
त्रेता और द्वापर में, चाहे रावण का पुष्पक विमान हो या अर्जुन का रथ — कहीं भी धुआँ–प्रदूषण, पर्यावरण–विनाश नहीं था।
उनके यंत्र सत्व–गुण पर आधारित थे, प्राकृतिक ऊर्जा पर चलते थे।
यहाँ तक कि युद्ध के समय भी
- औषधियों से उपचार
- फलों, पुष्पों, जड़ी–बूटियों से जीवन रक्षा का ही प्रयोग था।
आज की तरह रासायनिक दवाओं का मायाजाल नहीं।
पशुपतिनाथ के विरुद्ध चाल : मांसाहार का व्यापार
महादेव का एक नाम है पशुपतिनाथ — जो हर पशु का स्वामी और रक्षक है।
लेकिन पंचम सिर की सबसे घातक कुटिलता थी —
- जानवरों तक को मारकर भोग की वस्तु बना देना।
- मांस का व्यापार धर्म बना देना।
- पशु–वध को संस्कार बना देना।
यही विचार पश्चिम से अब्राहमिक पंथों द्वारा फैलाया गया। यहां से ही शिकार, कसाईखाने और मांस–कारोबार ने जन्म लिया।
परिणाम — करुणा, संवेदना और अहिंसा पर आधारित मानव–चेतना का पतन।
जल–माया : कोल्ड ड्रिंक और पर्यावरणवाद का ढोंग
प्रकृति ने हमें दिया शुद्ध जल — जीवन का आधार।
वेदों ने कहा —
“आपः सर्वं जीवनम्।” (जल ही समस्त जीवन है)
लेकिन पंचम सिर की औलादों ने
- इस शुद्ध जल को कोल्ड–ड्रिंक, सोडा और शराब में बदलकर बेचना शुरू किया।
- करोड़ों लीटर पानी बर्बाद कर केमिकल भरे पेय बनाना शुरू किया।
और जब स्वयं जल–संकट फैलाया, तब “हम पर्यावरण–रक्षक हैं” का ढोंग रचा।
यह वही दोहरा चरित्र है — पहले रोग पैदा करो, फिर दवा बेचकर “वैज्ञानिक चमत्कार” कहलाओ।
असली सनातन जीवन बनाम अब्राहमिक पथ
- सनातन में — पेड़ लगाना, गाय की सेवा करना, जल की पूजा करना, फल–फूल–अन्न को प्रसाद मानना।
- अब्राहमिक विकृति में — पशु काटना, जल को जहर बनाना, प्रकृति को वस्तु बनाना।
यही कारण है कि आज की बीमारियाँ, प्रदूषण, युद्ध, जल–संकट — सबका मूल एक ही है :
- पंचम सिर की ईर्ष्या
- शुक्राचार्य की माया
- और पश्चिम से फैली अब्राहमिक सोच
पंचम सिर की विनाशक योजना
- पंचम सिर का लक्ष्य कोई नया धर्म नहीं था, उसका लक्ष्य था संपूर्ण सृष्टि का विनाश।
- उसकी ईर्ष्या विष्णु से भी है और शिव से भी।
- अतः वह असुरों और राक्षसों में अहंकार भरकर उन्हें घातक वरदान और विनाशकारी साधन देता आया है।
- यही क्रम आज भी चल रहा है — आधुनिक विज्ञान का अधिकांश हिस्सा प्रकृति-विरोधी दिशा में बढ़ता है।
अब समय क्या कहता है?
- कलियुग का वर्तमान चरण = पंचम सिर और शुक्राचार्य की माया का चरम।
- परंतु अब समय है सनातन जीवनशैली की वापसी का।
- ब्रह्मा के पंचम सिर की विकृति से बचने का एक ही मार्ग है: प्रकृति–अनुकूल जीवन।
समाधान: वैदिक जीवनशैली में वापसी
- खानपान: स्थानीय, मौसमी, शुद्ध आहार। प्रोसेस्ड और पैकेज्ड फूड से दूरी।
- दिनचर्या: सूर्योदय से पहले उठना, योग, प्राणायाम, ध्यान।
- औषधि: प्राकृतिक औषधियों और आयुर्वेद को प्राथमिकता देना।
- ऊर्जा: प्रदूषणकारी साधनों की जगह अक्षय ऊर्जा।
- वृक्षारोपण: अशोक, पीपल, नीम, बरगद जैसे जीवनदायी वृक्षों का रोपण।
- आध्यात्मिकता: शिव–विष्णु–शक्ति की उपासना और स्मरण।
अंतिम सत्य
पश्चिम का विज्ञान आगे नहीं है — वह प्रकृति-विरोधी है।
यह उनकी गलती नहीं, बल्कि महाभारत-उत्तर आए ज्ञान-शून्य काल और उसमें पनपे पंचम सिर और शुक्राचार्य की माया का परिणाम है।
अब हमारे पास विकल्प है — या तो हम इसी माया में फँसकर प्रकृति का विनाश देखें, या फिर सनातन प्राकृतिक जीवनशैली अपनाकर शिव–सत्य से जुड़ें।
निष्कर्ष
सृष्टि की रक्षा कृत्रिम मशीनों से नहीं, बल्कि प्राकृतिक जीवन से होगी।
- प्रकृति के खिलाफ जितने भी “आविष्कार” हुए — चाहे मांसाहार, बारूद, हथियार, कोल्ड ड्रिंक या प्रदूषणकारी मशीनें हों — ये सब सनातन–विरोधी अब्राहमिक मानसिकता की उपज हैं।
- वेदांत का मार्ग बताता है कि मनुष्य और प्रकृति शत्रु नहीं, सहजीवी हैं।
- और अंतिम सत्य यही है कि पशुपतिनाथ शिव ही रक्षक हैं — जो फिर से इस पृथ्वी को संतुलन की ओर ले जाएंगे।
सत्य यही है:
सत्यम् शिवम् सुन्दरम् — प्रकृति में ही शिव का निवास है।
publicfirstnews.com
