पब्लिक फर्स्ट । रिसर्च डेस्क ।
दुनिया भर में “एक्स-मुस्लिम” (Ex-Muslim) बनने या इस्लाम छोड़ने की घटनाएँ अब पहले से कहीं ज़्यादा दिखाई देने लगी हैं। हालाँकि, मुस्लिम बहुल देशों में इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि कहीं यह अपराध है तो कहीं जानलेवा सामाजिक दबाव। फिर भी, उपलब्ध सर्वे और शोध हमें यह बताते हैं कि यह प्रवृत्ति वाकई तेज़ हो रही है।
कितने लोग छोड़ रहे हैं इस्लाम?
ईरान
- GAMAAN 2020 सर्वे के अनुसार, लगभग 20% ईरानी नागरिकों ने खुद को इस्लाम से अलग या “नास्तिक/अज्ञेय/एक्स-मुस्लिम” बताया।
- यह दर्शाता है कि गुप्त रूप से बड़ी संख्या में लोग धर्म से दूरी बना रहे हैं।
सऊदी अरब
- Arab Barometer सर्वे में सामने आया कि करीब 10 लाख (1 मिलियन) लोग खुद को नास्तिक मानते हैं।
- असली संख्या इससे कहीं ज़्यादा हो सकती है, लेकिन डर के कारण सार्वजनिक नहीं होती।
पाकिस्तान
- FIA रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 4 लाख लोग नियमित रूप से इस्लाम के खिलाफ बोलते हैं।
- सोशल मीडिया पर “एक्स-मुस्लिम” आंदोलन यहाँ गुप्त रूप से बहुत मज़बूत हो रहा है।
भारत (केरल)
- यहाँ मुस्लिम समुदाय में लगभग 4–5% लोग चुपचाप इस्लाम छोड़ चुके हैं।
- सामाजिक दबाव के चलते ज़्यादातर इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं करते।
अमेरिका
- Pew Research के अनुसार, 23% अमेरिकी मुस्लिम मूल निवासी अब खुद को मुस्लिम नहीं मानते।
- अनुमान है कि हर साल करीब 1 लाख लोग अमेरिका में इस्लाम छोड़ते हैं।
फ्रांस
- यहाँ सार्वजनिक रूप से सामने आए करीब 15,000 एक्स-मुस्लिम सक्रिय हैं।
- कई NGO और कम्युनिटी ग्रुप इस आंदोलन को सपोर्ट करते हैं।
तुर्की
- Pew डेटा के अनुसार, यहाँ का “नेट एपोस्टेसी रेट” लगभग 3% है — जो किसी बड़े मुस्लिम-बहुल देश में सबसे ऊँचा माना जाता है।
सबसे ज़्यादा कहाँ लोग छोड़ रहे हैं?
- मुस्लिम-बहुल देश: ईरान, सऊदी अरब, पाकिस्तान, तुर्की, ट्यूनीशिया और मोरक्को में गुप्त रूप से बड़ी संख्या में लोग इस्लाम छोड़ रहे हैं।
- पश्चिमी देश: अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देशों में जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, वहाँ “एक्स-मुस्लिम” समुदाय तेजी से संगठित हो रहा है।
क्यों लोग इस्लाम छोड़ रहे हैं?
बौद्धिक/वैचारिक कारण
- विज्ञान और धर्म में टकराव
- कुरान-हदीस की आलोचना
- महिलाओं की स्थिति और मानवाधिकार उल्लंघन
- इतिहास और धार्मिक दावों पर प्रश्न
सामाजिक/अनुभवजन्य कारण
- कट्टरता और धार्मिक हिंसा
- परिवार/समाज में सवाल पूछने की मनाही
- महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार
- समुदाय का दबाव और डर
युवा वर्ग और इंटरनेट
- YouTube, सोशल मीडिया और ऑनलाइन मंचों पर “एक्स-मुस्लिम” बहस और अनुभव साझा कर रहे हैं।
- इससे युवाओं में सवाल उठाने और अपनी पहचान बदलने का साहस बढ़ा।
असल में “एक्स–मुस्लिम” आंदोलन और इस्लाम छोड़ने की घटनाएँ कट्टरपंथी मौलाना और मुस्लिम नेतृत्व के लिए गहरी चिंता का कारण बनी हुई हैं। इसके कुछ संकेत और उदाहरण इस प्रकार हैं:
खुले बयानों में चिंता
- मिस्र, पाकिस्तान और सऊदी अरब के इस्लामी विद्वान बार-बार चेतावनी दे रहे हैं कि “युवा इंटरनेट से भटक रहे हैं और ईमान छोड़ रहे हैं”।
- पाकिस्तान के कुछ बड़े मौलाना तक कह चुके हैं कि “अल्लाह से इनकार करने वालों की संख्या बढ़ रही है और यह हमारी उम्मत के लिए सबसे बड़ा खतरा है।”
बढ़ती फतवा संस्कृति
- अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत में मौलानाओं ने एक्स–मुस्लिमों और नास्तिकों के खिलाफ फतवे जारी किए हैं।
- ब्लासफेमी (ईशनिंदा) कानूनों का ज़्यादा इस्तेमाल इसी चिंता से होता है, ताकि कोई भी खुलकर धर्म की आलोचना न कर सके।
मस्जिदों और मदरसों में “रोकथाम अभियान”
- कई जगह ख़ुत्बों (शुक्रवार के भाषण) में खासकर यह चेतावनी दी जाती है कि “सोशल मीडिया से बचो, विज्ञानवादी या आलोचनात्मक सामग्री मत पढ़ो”।
- मुस्लिम परिवारों को कहा जाता है कि बच्चों पर नज़र रखें, वरना “वे ईमान से बाहर हो सकते हैं।”
सोशल मीडिया पर काउंटर कैंपेन
- “#ComeBackToIslam” या “#RefuteAtheism” जैसे हैशटैग चलाए जा रहे हैं।
- इस्लामिक प्रीचर यूट्यूब पर “Ex-Muslims की शंका का जवाब” नाम से वीडियो बना रहे हैं।
डर और गुस्सा — दोनों का मिश्रण
- डर: कि बड़ी संख्या में युवा चुपचाप इस्लाम छोड़ रहे हैं और यह अगले 20–30 साल में उम्मत की एकता को तोड़ देगा।
- गुस्सा: कि “इस्लाम विरोधी ताकतें” जानबूझकर युवाओं को भटका रही हैं। इसलिए यह मुद्दा अक्सर “इस्लाम पर हमला” कहकर पेश किया जाता है।
ताज़ा संकेत
- ईरान और तुर्की में बढ़ती धर्मनिरपेक्षता को लेकर वहाँ के मौलवी खुले तौर पर कह रहे हैं कि “अगर यही चलता रहा तो हमारी अगली पीढ़ी मस्जिद से दूर हो जाएगी।”
- पाकिस्तान में FIA की रिपोर्ट पर मौलाना ने संसद तक में कहा कि “यह इस्लामी पहचान पर हमला है।”
कुल मिलाकर:
कट्टरपंथी मौलानाओं की सबसे बड़ी चिंता यह है कि ‘उम्मत के अंदर से ही लोग बाहर निकल रहे हैं’। यही कारण है कि वे लगातार और सख़्त नियम, फतवे और डर का सहारा ले रहे हैं।
निष्कर्ष
इस्लाम छोड़ने की प्रवृत्ति अब केवल पश्चिम तक सीमित नहीं है। ईरान से लेकर सऊदी, पाकिस्तान और तुर्की तक, अंदर ही अंदर एक बड़ा बदलाव चल रहा है। फर्क इतना है कि —
- जहाँ आज़ादी है, वहाँ लोग खुलेआम इसे स्वीकार कर रहे हैं।
- जहाँ दमन है, वहाँ यह आंदोलन गुप्त रूप से लेकिन तेज़ी से बढ़ रहा है।
कुल मिलाकर — यह केवल धार्मिक बदलाव नहीं, बल्कि बौद्धिक स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और आधुनिक मूल्यों की ओर एक वैश्विक शिफ्ट है।
