रहस्य :
- कैसे होती है माँ प्रसन्न :
माँ लक्ष्मी किसी बाहरी देवी की तरह प्रसन्न होकर धन नहीं देतीं —
बल्कि वे आपकी चेतना में स्थित समृद्धि-शक्ति हैं।
जब साधक श्रद्धा, शुद्धता और स्थिरता से पूजन करता है —
तो लक्ष्मी उसी आंतरिक आवृत्ति (frequency) में जागृत होती हैं।
यह जागरण ही “लक्ष्मी-प्रसन्नता” कहलाता है।
- बाह्य कर्म से आंतरिक सक्रियता तक
दीपावली या दैनिक पूजा का उद्देश्य बाहरी कर्मकांड नहीं,
बल्कि “मानसिक विद्युत–संतुलन” है —
जहाँ दीपक की लौ आंतरिक सूर्य (अग्नि तत्व) को जाग्रत करती है,
और लक्ष्मी का मन्त्र जल–प्रवाह शक्ति को संतुलित करता है।
जब अग्नि और अप तत्व का यह मिलन होता है,
तो चित्त में “स्थिर प्रकाश” उत्पन्न होता है —
यही वह बिंदु है जहाँ लक्ष्मी ऊर्जा सक्रिय होती है।
माँ लक्ष्मी मंत्रों या वस्त्रों से नहीं,
बल्कि आपके कर्म–संकल्प के शुद्ध कम्पन से प्रसन्न होती हैं।
जब आपका मन “समर्पण” में होता है —
यानी न मांगना, बस समर्पित होना —
तो वहाँ लक्ष्मी स्थिर हो जाती हैं।
(इसे स्थायिनी लक्ष्मी कहा गया है — जो एक बार आती हैं तो जाती नहीं।)
लक्ष्मी का स्थायित्व — शास्त्रों में संकेत :
श्रीमद्भागवत कहती है
“जहाँ हरि का स्मरण होता है, वहाँ लक्ष्मी स्वयं निवास करती हैं।”
• शिवपुराण में —
“वैराग्य के बिना लक्ष्मी क्षणिक है, विवेक के साथ स्थायी।”
अर्थात जब साधक वैराग्य और विवेक दोनों रखता है
तो लक्ष्मी केवल धन के रूप में नहीं —
बल्कि दीप्ति, निर्णय और दिशा के रूप में साथ रहती हैं।
- निष्कर्ष — पूजन से प्रसन्नता नहीं, “सामंजस्य” होता है
पूजन एक प्रकार की “कम्पन-संगति” (vibrational tuning) है।
जैसे रेडियो सही फ्रिक्वेंसी पर आए तो संगीत सुनाई देता है,
वैसे ही जब मन, वाणी और कर्म सही संकल्प पर हों,
तो लक्ष्मी की “चेतना” प्रसन्नता रूप में प्रकट होती है।
इसलिए —
“लक्ष्मी प्रसन्नता से नहीं आतीं, शुद्धता से प्रकट होती हैं।”
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