हिंदू पुराणों में वर्णित ब्रह्मा–विष्णु वर्चस्व कथा कोई साधारण कथा नहीं —
यह चेतना के विकास, अहंकार के पतन और परम-सत्य के प्रकट होने का प्रतीक है।
विवाद का आरंभ
एक समय ब्रह्मा और विष्णु में प्रश्न उठा —
कौन श्रेष्ठ है — सृजन करने वाला या पालन करने वाला?
यह प्रश्न केवल देवताओं का नहीं,
हर युग के मनुष्य, दार्शनिक और सभ्यताओं के भीतर उठता रहा है।
जब अहंकार बढ़ा, तब उजाला डगमगाया —
और उसी क्षण प्रकट हुआ अनंत अग्नि-स्तंभ — शिवलिंग, जो न आदि था न अंत।
अग्निलिंग का रहस्य
विष्णु बोले — “मैं इसकी जड़ खोजता हूँ।”
और वराह रूप लेकर नीचे गए।
ब्रह्मा बोले — “मैं शीर्ष खोजता हूँ।”
और हंस रूप धारण कर ऊपर गए।
अनंत खोज के बाद
विष्णु ने सत्य स्वीकार किया — कि अंत मिला नहीं।
ब्रह्मा ने असत्य का सहारा लिया।
तभी प्रकट हुए महाशिव — निराकार, असीम, तेजस्वी।
उन्होंने कहा —
“सत्य के आगे झुकने वाला ही सत्य में स्थित होता है।
असत्य के सहारे कोई सर्वोच्च नहीं बनता।”
परिणाम
विष्णु को आशीर्वाद मिला —
भक्ति, स्मृति, और लोकमान्यता।
ब्रह्मा को कहा गया —
“असत्य मन को आवृत करता है, इसलिए तुम्हारी पूजा सीमित रहेगी।”
यह दंड नहीं — चेतना का सिद्धांत है।
जहाँ सत्य है, वहाँ स्थायित्व है।
शिव — मूल, शाश्वत, निर्विकल्प
देवी-भागवत, लिंगपुराण और अघोर आगम प्रमाणित करते हैं —
“जब कुछ भी नहीं था, न अस्तित्व न अनस्तित्व —
केवल शिव-तत्त्व था।”
उसी से प्रकट हुई दो धाराएँ —
• ज्ञान-धारा → ब्रह्मा
• पालन-धारा → विष्णु
दोनों दिव्य हैं, परंतु मूल शिव हैं — कारण-रहित कारण।
वर्चस्व नहीं — चेतना का विकास
बाद के युगों में कुछ परंपराओं ने प्रतीक-केन्द्रित मार्ग चुना,
कुछ ने निराकार मार्ग,
कुछ ने तप-मार्ग,
कुछ ने तर्क-मार्ग।
यही विविधता विश्व आध्यात्मिकता की सुंदरता है।
यह कथा धर्मों का संघर्ष नहीं,
धारणा-स्तरों का प्रतीक है —
जहाँ अहंकार और सत्य का द्वंद्व चलता है।
आज का संदेश
आज युग बदल रहा है।
मनुष्य फिर उसी प्रश्न पर है —
“मैं कौन हूँ?
सृष्टि का केंद्र मैं हूँ या मैं किसी अनंत चेतना का साक्षी?”
शिव का मार्ग कहता है —
• भागो मत
• लड़ो मत
• जागो
माया में रहते हुए माया से ऊपर उठो।
कर्म करो, पर कर्ता-भाव से मुक्त रहो।
निष्कर्ष
अग्निलिंग आज भी कहता है —
“ज्ञान बिना सत्य — अहंकार बनता है।
ज्ञान + समर्पण = सत्य-बोध।”
जो झुकता है वह उठता है।
जो जिद करता है वह गिरता है।
शिव सत्य हैं।
वही आदि, वही अनंत।
अहंकार नहीं — सत्य ही अंतिम आधिपत्य है।
शिव सर्वोच्च हैं क्योंकि वे निराकार सत्य हैं।
publicfirstnews.com
