बांग्लादेश के लालमोनिरहाट में बन रहे एक नए एयरबेस को लेकर भारत की चिंता गहराती जा रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, हाल ही में चीनी अधिकारियों ने इस निर्माणाधीन एयरबेस का दौरा किया है। यह एयरबेस भारत के रणनीतिक रूप से अत्यंत संवेदनशील सिलिगुड़ी कॉरिडोर (जिसे ‘चिकन नेक’ भी कहा जाता है) के बेहद करीब स्थित है। यह इलाका बांग्लादेश के रंगपुर डिवीजन में आता है और भारत-बांग्लादेश सीमा से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह परियोजना मार्च 2025 में सार्वजनिक की गई थी और तब से ही भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान सतर्क हो गए हैं।
इस स्थान पर पहले एक द्वितीय विश्व युद्ध कालीन हवाई पट्टी मौजूद थी, लेकिन अब यहां चीन की मदद से एक आधुनिक एयरबेस तैयार किया जा रहा है। भारत के लिए यह चिंता का विषय इसलिए भी है क्योंकि बांग्लादेश की नई सरकार और बीजिंग के बीच रक्षा सहयोग गहराता जा रहा है। भारतीय अधिकारी इस परियोजना पर पैनी नजर बनाए हुए हैं और यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि यह आधार केवल नागरिक उड़ानों, प्रशिक्षण गतिविधियों या फिर सैन्य विमानों की तैनाती के लिए उपयोग में लाया जाएगा या नहीं।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “चिंता इस बात की है कि यह एयरबेस भारत की सैन्य गतिविधियों की निगरानी या खुफिया जानकारी जुटाने के लिए इस्तेमाल हो सकता है, खासकर संघर्ष की स्थिति में।” उन्होंने डोकलाम में हुए भारत-चीन टकराव का उदाहरण देते हुए इस आशंका को और मजबूत किया।
यह घटनाक्रम ऐसे समय पर सामने आया है जब बांग्लादेश के सलाहकार मुहम्मद यूनुस और उनके सहयोगी लगातार भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र का संदर्भ विभिन्न संदर्भों में दे रहे हैं, जिससे भारत की आशंकाएं और तेज हो गई हैं। भारत ने इस क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति मजबूत कर रखी है। त्रिशक्ति कॉर्प्स का मुख्यालय सिलिगुड़ी के पास है और हासीमारा एयरबेस पर राफेल लड़ाकू विमानों की तैनाती की गई है। लालमोनिरहाट एयरबेस भी भारतीय तोपखाने की मारक सीमा में आता है।
इसके अलावा, चीन द्वारा बांग्लादेश को भारी मात्रा में सैन्य हथियारों की आपूर्ति और सैन्य बुनियादी ढांचे के विकास में भूमिका ने भारत की चिंता और बढ़ा दी है। भारतीय एजेंसियां इस एयरबेस के रणनीतिक प्रभावों और क्षेत्रीय सुरक्षा पर उसके संभावित असर का विश्लेषण कर रही हैं।
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