पब्लिक फर्स्ट। भोपाल ।ब्यूरो ।

HIGHLIGHT

  • 17 साल बाद कोर्ट का फैसला
  • सभी आरोपी साक्ष्य के अभाव में बरी
  • फॉरेंसिक खामियों और गवाहों की असंगति
  • एनआईए चार्जशीट पर सवालफैसले के खिलाफ अपील संभव

2008 मालेगांव विस्फोट मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित और अन्य 5 आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को ठोस सबूतों से सिद्ध करने में विफल रहा।

29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में एक मस्जिद के पास हुए विस्फोट में 6 लोगों की मौत और 100 से अधिक घायल हुए थे। यह मामला वर्षों तक देश की राजनीति और न्याय व्यवस्था के केंद्र में बना रहा।

अदालत ने क्या कहा?

  • बाइक साध्वी प्रज्ञा की थी, यह साबित नहीं हुआ।
  • कर्नल पुरोहित ने RDX लाया, यह भी साबित नहीं हो सका।
  • फिंगरप्रिंट, पंचनामा और चेसिस नंबर जैसे तकनीकी साक्ष्यों में गंभीर खामियां पाई गईं।
  • अदालत ने दोहराया – “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता” और संदेह के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती।

पीड़ितों को मुआवजा आदेश

  • विस्फोट में मारे गए 6 लोगों के परिवार को ₹2 लाख और
  • घायल व्यक्तियों को ₹50,000 मुआवजा देने का आदेश।

पीड़ितों के वकील ने संकेत दिए हैं कि वे इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे।

न्यायपालिका का रुख: संदेह नहीं, साक्ष्य चाहिए

अदालत ने अपने फैसले में जोर देकर कहा कि “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता,” और यह कि सिर्फ संदेह के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह टिप्पणी न केवल इस केस की संवेदनशीलता को दर्शाती है, बल्कि न्यायपालिका की निष्पक्षता का भी प्रतीक है।

क्या था मालेगांव ब्लास्ट मामला?

29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में एक मस्जिद के पास बम धमाका हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह घटना ईद से पहले के दिनों में हुई थी और देशभर में राजनीतिक व धार्मिक तनाव फैल गया था।

इस केस में शुरुआत में महाराष्ट्र एटीएस ने जांच की, बाद में इसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपा गया।

publicfirstnews.com

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