- नतीजों के बाद एमपी विधानसभा चुनाव में पार्टी को बनानी होगी नई रणनीति
- गुजरात फॉर्म्यूला लागू करने में पार्टी नेतृत्व को आएंगी मुश्किलें – सूत्र
- कर्नाटक की तरह ही मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है।
- शिवराज सरकार के मंत्रियों पर सबसे ज्यादा आरोप हैं।
पब्लिक फर्स्ट। पॉलिटिक्स फर्स्ट। भोपाल।
इस साल के अंत में मध्य प्रदेश में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। कर्नाटक के नतीजों का एमपी में असर पड़ना तय है। खासकर इसलिए कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व कर्नाटक चुनाव के बाद एमपी में सत्ता और संगठन में बड़े बदलावों की तैयारी कर रहा था। अब इन तैयारियों को अमलीजामा पहनाना मुश्किल हो सकता है। यह उन नेताओं के लिए राहत की बात हो सकती है जिन्हें मंत्रिमंडल से बाहर करने की आशंका जताई जा रही थी। जिन नेताओं को चुनाव में टिकट कटने का डर सता रहा था, वे भी फिलहाल राहत की सांस ले सकते हैं।
बदलाव में रोड़े क्या ?
दरअसल, पार्टी अब किसी हाल में असंतोष बढ़ने का जोखिम नहीं उठा सकती। चुनाव के ठीक पहले बड़े नेताओं के बागी होने का नतीजा बीजेपी हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में भुगत चुकी है। इसलिए कोई ताज्जुब नहीं कि कर्नाटक में बीजेपी की हार से एमपी में उसके अपने भी कई नेता अंदरखाने खुश हो रहे हों।
एमपी में अब आगे क्या ?
भ्रष्टाचार और पुराने चेहरो को लेकर जनता में आक्रोश है लेकिन फिलहाल इसे अंडर करंट कहा जा सकता है। पार्टी के आला नेतृत्व और संघ को भी इसकी जानकारी है । लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के जरिये सत्ता में वापसी करने वाली भाजपा, तब से लेकर अब तक, प्रदेश में सीएम के चेहरे को लेकर, विकल्प या तो तलाश नही पाई है या फिर वो इसके जोखिम का ठीक ठीक आंकलन नही कर पा रही है। इन सबके बीच, पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराज़गी, सरकार पर हावी अफसरशाही से है । पार्टी कार्यकर्ताओं के उन्ही की सरकार में कार्य ना होना, जनता तक योजनाओं के लाभ पहुंचा पाने में अधिकारियों की अडंगेबाज़ी से, भाजपा का निचले स्तर का कार्यकर्ता बेहद नाराज़ है। ऐसे में, पार्टी नेताओं में पनप रहा असंतोष और प्रदेश में बदलाव को लेकर चल रही चर्चाओं ने बीजेपी रणनीतिकारों को चिंता में डाल दिया है।
मंत्रिमंडल और संगठन में बदलाव तय !!
ये तो तय माना जा रहा है कि, बिना सत्ता और संगठन में नये चेहरो को लाये, भाजपा मौजूदा ढांचे के साथ, जनता के बीच अगर जाती है तो उसे बड़ी हार का मुंह देखना पड़ सकता है। ऐसे में राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक़, पार्टी आला कमान, नये और युवा चेहरो को मंत्रिमंडल में जगह दे सकता है । वही मप्र भाजपा के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का भी तीन साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है, ऐसे में उनके कार्यकाल को आगे बढ़ाये जाने की भी संभावना कम ही नज़र आ रही है। सूत्रों की माने तो पार्टी किसी सीनियर लीडर को, प्रदेश अध्यक्ष की कमान चुनावी साल में, असंतोष को संभालने और पार्टी को जिताने के लिये कमान सौंप सकती है।
Publicfirstnews.com