पब्लिक फर्स्ट। उज्जैन। अमृत बैंडवाल ।
Highlights:
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन के अलखधाम नगर उद्यान में संत कंवरराम की प्रतिमा का किया अनावरण
उद्यान का नाम अब “संत कंवरराम उद्यान”
47 दिव्यांगजनों की निःशुल्क हवाई तीर्थ यात्रा – इंदौर से नाथद्वारा
प्रयास को गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में मिली मान्यता
दिव्यांगों को मुख्यमंत्री ने मंच से सौंपे प्रमाण पत्र
समाजसेवियों और जनप्रतिनिधियों की रही विशेष उपस्थिति
उज्जैन में ऐतिहासिक क्षण: संत कंवरराम की प्रतिमा का अनावरण, 47 दिव्यांगों की हवाई तीर्थ यात्रा बनी विश्व रिकॉर्ड
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन दौरे के दौरान अलखधाम नगर उद्यान में संत कंवरराम की भव्य प्रतिमा का अनावरण कर एक ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बने। इस कार्यक्रम में उन्होंने समाजसेवा की मिसाल पेश करते हुए 47 दिव्यांगजनों की नि:शुल्क हवाई तीर्थ यात्रा को गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कर सम्मानित किया।
संत कंवरराम उद्यान का उद्घाटन
मुख्यमंत्री ने संत कंवरराम की समाज के प्रति सेवाओं और आध्यात्मिक योगदान को याद करते हुए उद्यान का सौंदर्यीकरण कराने और उसका नाम बदलकर “संत कंवरराम उद्यान” रखने के निर्देश उज्जैन महापौर को दिए। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु, समाजसेवी और जनप्रतिनिधि उपस्थित थे।
विश्व रिकॉर्ड बनी दिव्यांगों की तीर्थ यात्रा
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने 47 दिव्यांगजनों का मंच से सम्मान करते हुए उन्हें शुभकामनाएँ दीं। इन दिव्यांगजनों को इंदौर से हवाई मार्ग द्वारा उदयपुर और वहां से नाथद्वारा की तीर्थ यात्रा कराई गई। यह पूरी यात्रा नि:शुल्क आयोजित की गई, जिसे गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में विश्व रिकॉर्ड के रूप में दर्ज किया गया।
गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड टीम के सीओओ मनीष विश्नोई ने बताया कि इतनी बड़ी संख्या में दिव्यांगों की एक साथ हवाई यात्रा कराना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसमें विशेष देखरेख और व्यवस्थाओं की आवश्यकता होती है। इस सफल आयोजन ने इस प्रयास को एक ऐतिहासिक पहचान दिलाई।
मुख्यमंत्री का उद्बोधन :
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मीडिया से चर्चा करते हुए कहा,
“आज वैशाख पूर्णिमा के पावन अवसर पर संत कंवरराम जी की मूर्ति का अनावरण कर गर्व महसूस हो रहा है। दिव्यांगजनों की सेवा समाज के लिए प्रेरणादायी है।”
समाजसेवी की सराहना
समाजसेवी महेश परियानी ने इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि यह आयोजन न केवल संत कंवरराम को समर्पित था, बल्कि दिव्यांगजनों के सम्मान और समाज में समरसता की भावना को बढ़ाने का प्रतीक है।
