पब्लिक फर्स्ट।

20 जुलाई 1969, ये वो तारीख है जब अमेरिक की स्पेस एजेंसी नासा ने इतिहास रचा था। अपोलो मून मिशन के तहत पहली बार किसी इंसान ने चांद पर कदम रखा था। नील आर्मस्ट्रॉन्ग वो पहले एस्ट्रोनॉट थे जिन्होंने चांद पर पहुंचने के साथ ही इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा दिया। उनके बाद उनके साथी बज एल्ड्रिन चांद पर उतरे थे।

इस स्पेस मिशन में तब 25 अरब डॉलर, यानी आज के मुताबिक करीब 2 लाख करोड़ रुपए खर्च हुए थे। अमेरिका में 29 जुलाई 1958 को नासा का गठन हुआ था और इसके 11 साल बाद ही स्पेस एजेंसी ने कीर्तिमान रच दिया। इसी के साथ स्पेस वॉर में अमेरिका ने दूसरे सभी देशों को पीछे छोड़ दिया। अपोलो-11 मिशन को मिलाकर अब तक कुल 12 बार लोग चांद पर पहुंच चुके हैं।

हालांकि, कई थ्योरीज ऐसी भी हैं, जिनके मुताबिक, नासा का मशहूर अपोलो मिशन एक बहुत बड़ा झूठ था। रूस की रोसकोमोज स्पेस एजेंसी के पूर्व चीफ दिमित्री रोगोजिन ने इसी साल मई में कहा था कि अब तक इस बात के पर्याप्त सबूत मौजूद नहीं हैं कि अमेरिका कभी चांद पर पहुंचा भी था।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका-सोवियत संघ में शुरू हुआ स्पेस वॉर
1950 के बाद से ही दुनिया की दो ताकतवर शक्तियों अमेरिका और सोवियत संघ के बीच स्पेस वॉर छिड़ चुकी थी। सोवियत संघ ने लूना मिशन के जरिए अंतरिक्ष में अपनी दखलअंदाजी बढ़ानी शुरू की। जनवरी 1966 में लूना-9 ने चांद की सतह पर सफलतापूर्वक लैंड किया। ऐसा करने वाला वो पहला स्पेसक्राफ्ट था।

उधर, अमेरिका भी अब तक स्पेस में कई स्पेसक्राफ्ट भेज चुका था। 1962 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी घोषणा कर चुके थे कि 60 के दशक के अंत तक अमेरिका चांद पर इंसान को भेजेगा। कैनेडी की इस घोषणा के बाद नासा मिशन की तैयारियों में लग गया। एक कठिन ट्रेनिंग के बाद नील आर्मस्ट्रॉन्ग, बज एल्ड्रिन और माइकल कॉलिंस को इस मिशन के लिए चुना गया।

कैनेडी स्पेस सेंटर की आग में 3 एस्ट्रोनॉट्स की मौत
5 साल बाद टेस्टिंग के लिए 1966 में नासा ने अनमैन्ड स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में भेजा, लेकिन इसके अगले साल ही कैनेडी स्पेस सेंटर में भीषण आग लग गई और 3 एस्ट्रोनॉट की मौत हो गई। इसके बाद भी नासा अपने मिशन में जुटा रहा।

16 जुलाई को शुरू हुआ अपोलो-11 मिशन
आखिरकार 16 जुलाई 1969 में अपोलो-11 स्पेसक्राफ्ट में नील आर्मस्ट्रॉन्ग, बज एल्ड्रिन और माइकल कॉलिंस को कैनेडी स्पेस सेंटर से चांद के सफर पर भेजा गया। अमेरिकी समयानुसार सुबह 9 बजकर 32 मिनट पर अमेरिका के कैनेडी स्पेस सेंटर से अपोलो-11 ने उड़ान भरी। नासा के मुताबिक, करीब 65 करोड़ लोगों ने इस नजारे को टीवी पर देखा।

76 घंटे में स्पेसक्राफ्ट 2 लाख 40 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर चुका था। 19 जुलाई को स्पेसक्राफ्ट चांद के ऑर्बिट में पहुंच गया। अगले दिन नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज एल्ड्रिन ईगल मॉड्यूल के जरिए स्पेसक्राफ्ट से अलग हो गए और चांद की सतह पर जाने की तैयारी करने लगे। उनके मॉड्यूल में केवल 30 सेकेंड का ईंधन ही बचा था और अभी भी दोनों चांद की सतह से दूर थे।

चांद की सतह पर पड़ा इंसान का पहला कदम
दुनियाभर के लोगों की धड़कनें बढ़ने लगीं थीं। 20 जुलाई को शाम 4 बजकर 17 मिनट पर स्पेस सेंटर में वैज्ञानिकों को नील आर्मस्ट्रांग की तरफ से एक मैसेज मिला। इस मैसेज में आर्मस्ट्रांग ने कहा, ‘हम लैंड कर चुके हैं।’ इसी के साथ पूरा अमेरिका खुशी से झूम उठा। चांद की सतह पर कदम रखते हुए आर्मस्ट्रांग ने कहा, ‘एक इंसान के लिए यह एक छोटा कदम है, लेकिन सम्पूर्ण मानव जाति के लिए एक बड़ी छलांग है।’

इसके कुछ देर बाद एल्ड्रिन भी चांद की सतह पर उतरे। दोनों वहां करीब ढाई घंटे रहे। उन्होंने चांद की सतह पर अमेरिका का झंडा भी लगाया। इसके बाद कुछ फोटो खींचे और रिसर्च के लिए सतह से मिट्टी इकट्ठी की।

धरती पर लौटना बड़ा टास्क
अब अपोलो-11 के लिए अगला टास्क था वापस धरती पर आना। स्पेस कैप्सूल को बहुत ही सटीक एंगल पर पृथ्वी के एटमॉस्फियर में दाखिल होना था। जब कोई चीज 24,000 मील प्रति घंटे की रफ्तार से वायुमंडल से टकराती है, तो इससे एक भयानक आग का गोला बनता है। ऐसे में चैंलेंज ये था कि अगर उनकी स्पीड ज्यादा होगी, तो स्पेसक्राफ्ट तेजी से हीट-अप होकर जल जाएगा। वहीं अगर उनकी स्पीड बहुत कम हुई तो स्पेसक्राफ्ट वायुमंडल से बाहर निकल जाएगा।

तीन मिनट के कम्युनिकेशन ब्लैकआउट के बाद, आर्मस्ट्रॉन्ग ने एक सफल एन्ट्री का सिग्नल दिया। हिस्ट्री डॉट कॉम के मुताबिक अपोलो 11 मिशन लॉन्च के ठीक आठ दिन, तीन घंटे, 18 मिनट और 35 सेकंड के बाद प्रशांत महासागर में स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग के साथ खत्म हुआ था।

मून मिशन पूरा होने के अगले साल से ही इसे झुठलाने का सिलसिला शुरू
वॉइस ऑफ अमेरिका के मुताबिक, चांद पर इंसान के कदम रखने के 1 साल बाद ही इन बातों को भी अफवाह मिलने लगी थी कि नासा का अपोलो मून मिशन झूठ था। 1970 में हुए सर्वे के मुताबिक, उस वक्त करीब 30% अमेरिकी ऐसे थे जो अपोलो-11 की पूरी कहानी को झूठा मानते थे।

इसके बाद 1976 में अमेरिकी नेवी के पूर्व अफसर और नासा के मून मिशन का हिस्सा रहे बिल केसिंग ने एक किताब पब्लिश की, जिसका नाम था ‘वी नेवर वेंट टु द मून- अमेरिकाज थर्टी बिलियन डॉलर स्विंडल।’

अपनी इस किताब में केसिंग ने उन तमाम थ्योरी का जिक्र किया था, जिससे अमेरिका का मून मिशन झूठा साबित होता है। हालांकि, किताब सामने आने के बाद अमेरिका सहित कई बड़े देशों के साइंटिस्ट्स ने इन थ्योरीज को खारिज करते हुए इनकी काउंटर-थ्योरी भी बताईं। केसिंग उस कंपनी में बतौर टेक्निकल राइटर काम करते थे, जिसने नासा के अपोलो मिशन के रॉकेट सैटर्न वी के लिए इंजन बनाया था।

नासा की मून लैंडिंग असल में हॉलीवुड डॉयरेक्टर की फिल्म?
वॉइस ऑफ अमेरिका के मुताबिक, मून लैंडिंग की कॉन्सपिरेसी थ्योरी के तहत ये भी कहा जाता है कि मशहूर हॉलीवुड डायरेक्टर स्टैनले क्यूब्रेक ने नासा के लिए मून लैंडिंग को एरिया 51 में फिल्माया था। एरिया 51 अमेरिका नेवादा में एयर फोर्स का एक क्लासिफाईड बेस है।

दरअसल, स्टैनले क्यूब्रेक को हॉलीवुड के बेस्ट डायरेक्टर में से एक माना जाता है। उन्होंने 1969 में चांद पर इंसान के कदम पड़ने से ठीक एक साल पहले 1968 में 2001- अ स्पेस ऑडिसी नाम की फिल्म बनाई थी, जिसमें स्पेस और चांद से जुड़े कई सीन फिल्माए गए थे। इससे साबित होता है कि उस वक्त हॉलीवुड के पास इस तरह के सीन फिल्माने की तकनीक मौजूद थी।

publicfirstnews.com

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