पब्लिक फर्स्ट।

मणिपुर की सिचुएशन पर दो एनालिसिस पढ़‍िए। एक बतलाता है कि कैसे मैतेई समुदाय को ST में शामिल करना गलत फैसला है। दूसरा यह समझाता है

  1. दो समुदायों में संघर्ष के चलते मई से हिंसा की आग में जल रहा मणिपुर
  2. मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने पर हुआ विवाद
  3. मणिपुर हाई कोर्ट के आदेश की पूर्व IAS ने निंदा की, दूसरा पहलू भी है
  4. भीड़ कैसे और क्यों महिलाओं को निशाना बना रही है, वजह समझ‍िए

मणिपुर में महिलाओं के साथ बर्बरता का वीडियो देखकर देश कांप उठा। बेकाबू भीड़ ने महिलाओं को नग्‍न अवस्‍था में परेड करवाया। उनका सरेआम कैमरे पर यौन शोषण किया गया। वीडियो वायरल होने के बाद लोगों को मणिपुर की भयावह स्थिति का अंदाजा हुआ। लोग कहने लगे कि राज्य की कानून और व्यवस्था पंगु हो चुकी है। वीडियो से एक बात फिर साबित हुई। हिंसा कहीं भी हो, महिलाओं का इस्तेमाल ताकत दिखाने के लिए होता है। महिलाओं के शरीर को शक्ति-प्रदर्शन का जरिया बना लिया जाता है। हैदराबाद यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र की असिस्‍टेंट प्रफेसर होइनिलिंग सिटलहौ (Hoineilhing Sitlhou) ने हिंसा में महिलाओं को निशाना बनाए जाने की वजहें समझाईं हैं। वहीं, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व सचिव राघव चड्ढा बताते हैं कि मैतेई समुदाय को ST में शामिल करने का फैसला क्यों गलत है। मणिपुर हिंसा के कारणों में विस्तार से जाते TOI के इन दो एनालिसिस का सार हिंदी में पढ़‍िए।

मणिपुर हिंसा: क्‍या महिलाओं को न्याय दिलवा सकेगा भावनाओं का यह उबाल?


होइनिलिंग लिखती हैं कि मणिपुर की हिंसा में महिलाओं के शरीर का खूब इस्तेमाल हुआ। कभी दुश्मन को सुरक्षा के लिए खतरा बताने के लिए, कभी किसी ‘अपने’ और ‘बाहरी’ के लिए राजनीतिक हदें तय करने के लिए, कभी भारतीय सेना या पैरामिलिट्री फोर्सेज को दखल देने से रोकने के लिए महिलाओं को ढाल बनाया गया। असिस्टेंट प्रफेसर ने विभिन्न घटनाओं का हवाला किया है। नगा वुमन यूनियन का आरोप है कि 24 मई को चार महिलाओं को एक गाड़ी से जबरन उतारा गया। उनके कपड़े फाड़ दिए गए और सामान तहस-नहस कर दिया। अपने लेख में वह कहती हैं कि महिलाओं के खिलाफ अलग-अलग अपराधों में प्रतिक्रिया अलग-अलग रही। इसी वजह से मणिपुर में कुछ लोगों का राज्‍य सरकार पर से भरोसा उठ चुका है।

बकौल होइनिलिंग, मणिपुर के पुलिस थानों में महिलाओं पर अत्याचार के कई और मामले लंबित पड़े हैं। बहुत सारी पीड़‍िताएं तो अभी FIR दर्ज कराने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहीं। मणिपुर के वीडियो पर जो भावुकता का उबाल आया है, उससे पीड़िताओं को न्याय दिलाने की दिशा में ठोस कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। उससे लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास बहाल होगा।

क्‍या मैतेई को ST में शामिल करना भूल?


पूर्व IAS राघव चंद्रा लिखते हैं कि मैतेई को जनजातीय दर्जा देने वाले मणिपुर हाई कोर्ट के फैसले को कानूनी कसौटी पर परखना चाहिए। उन्होंने TOI में छपे लेख में कहा क‍ि HC के चीफ जस्टिस ने यह बात नजरअंदाज कर दी कि ST या जातियों में किसी को मान्यता देना या हटाना काफी संवेदनशील है। वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहते हैं कि अदालतें इस मामले पर फैसला करने की अधिकारी नहीं, कम से कम जब तक बाकी प्रक्रिया पूरी न हो चुकी हो।

ST का दर्जा मिलना क्‍यों अहम


अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने से एक समुदाय को नौकरियों में आरक्षण के अलावा कई अधिकार मिलते हैं। मणिपुर में, जनजातीय भूमि के हस्तांतरण को रोकने के लिए विशेष कानून बनाकर गैर-आदिवासी समुदायों द्वारा भूमि की खरीद को हतोत्साहित किया जा सकता है। अत्याचार निवारण अधिनियम लागू करने की क्षमता एक और अधिकार है। मणिपुर की अनुसूचित जनजातियों को वहां कमाई आय के लिए आयकर अधिनियम की धारा 10 (26) के तहत छूट भी मिलती है। लेकिन लोकुर समिति की टिप्पणियों के अनुसार, ‘जिन जनजातियों के सदस्य आम आबादी के साथ घुलमिल गए हैं, वे अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल होने के योग्य नहीं हैं… प्रत्येक जनजाति को खास तवज्जो की जरूरत नहीं समझी जाती।

publicfirstnews.com

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