पब्लिक फर्स्ट । नई दिल्ली।  ईडी के डायरेक्टर संजय कुमार मिश्रा को और सेवा विस्तार नहीं देने के निर्देश के बावजूद उनके कार्यकाल की अवधि तीसरी बार बढ़ाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि क्या कोई व्यक्ति इतना जरूरी हो सकता है कि उसके बिना काम नहीं हो सके? शीर्ष अदालत ने कहा कि क्या संगठन में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो उनकी जिम्मेदारी निभा सके?

जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने केंद्र की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि आपके हिसाब से, ईडी में कोई अन्य व्यक्ति योग्य नहीं है? एजेंसी का 2023 के बाद क्या होगा, जब वे सेवानिवृत्त होंगे? इससे पहले मेहता ने कहा कि मिश्रा का सेवा विस्तार प्रशासनिक कारणों से जरूरी है और वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) द्वारा भारत के आकलन के लिए अहम है।

नेताओं के हस्तक्षेप पर सवाल

सॉलिसिटर जनरल  ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर भारत के कानून की अगली समीक्षा 2023 में होनी है और यह सुनिश्चित करने के लिए ईडी में नेतृत्व की निरंतरता अहम है कि भारत की रेटिंग नीचे न गिरे। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हालांकि कोई व्यक्ति इतना अहम नहीं होता कि उसके बाद काम नहीं हो सके, लेकिन ऐसे मामलों में निरंतरता जरूरी होती है। दलीलों की शुरुआत में सॉलिसिटर जनरल ने कुछ जनहित याचिकाएं दायर करने वाले राजनीतिक दलों के उन नेताओं के हस्तक्षेप के अधिकार पर सवाल उठाया, जिन्होंने ईडी के प्रमुख की सेवा में विस्तार की अनुमति देने वाले संशोधित कानून को चुनौती दी है।

सरकार की दलील पर कोर्ट असहमत

शीर्ष अदालत ने मेहता की इस दलील पर असहमति जताई और कहा कि केवल इसलिए कि कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक दल का सदस्य है, क्या यह उसे याचिका दायर करने की अनुमति नहीं देने का आधार हो सकता है? क्या उसे अदालत आने से रोका जा सकता है? मेहता अपनी बात पर अड़े रहे और उन्होंने कहा कि जनहित याचिका को निजी हित नहीं, बल्कि जनहित तक सीमित होना चाहिए। मामले में सुनवाई पूरी नहीं हो सकी और आठ मई को जारी रहेगी।

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