पब्लिक फर्स्ट। इस्लामाबाद।

कहा- अमेरिकी पाबंदियों के चलते इसे आगे नहीं बढ़ा सकते; भारत भी रह चुका पार्टनर
आर्थिक तंगहाली से परेशान पाकिस्तान अब अमेरिका के दबाव में ईरान के साथ गैस पाइप लाइन प्रोजेक्ट को छोड़ने वाला है। इस प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान को सस्ते दाम पर बिजली हासिल होने वाली थी। पहले भारत भी ईरान और पाकिस्तान के साथ इस गैस पाइप लाइन प्रोजेक्ट का सदस्य था। जो पहले ही इससे बाहर हो चुका है।

जबकि 3 अगस्त को पाक दौरे पर ईरान के विदेश मंत्री हुसैन आमिर अब्दुल्लाह ने पाक विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो से मिलकर इस मल्टी बिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट को जल्द शुरू करने की मांग की थी। अब पाकिस्तान ने इसे छोड़ने के लिए ईरान को एक नोटिस जारी कर दिया है। इसमें बताया गया है कि पाकिस्तान इस प्रोजेक्ट को तब तक आगे नहीं बढ़ा सकता है जब तक उस पर अमेरिका की पाबंंदियां लगी हैं।

पाक को देना पड़ा सकता है 1 लाख 48 हजार करोड़ का जुर्माना
ईरान का दावा है कि वो अपने हिस्से की गैस पाइप लाइन का काम पहले ही पूरा कर चुका है। इसके लिए उसने 1,150 किलोमीटर पाइप लाइन बिछाई है। 2013 में ये काम पूरा होने की सेरेमनी ईरान ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की मौजूदगी में सेलिब्रेट की थी। इसमें 62 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए हैं।

पाकिस्तान ने भी जनवरी 2015 तक अपने हिस्से का काम पूरा करने का वादा किया था। जो पूरा नहीं किया गया। 2014 में पाकिस्तान के तत्कालीन पेट्रोलियम मिनिस्टर शाहिद खाकान अब्बासी ने कहा था कि अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों के चलते इस प्रोजेक्ट में परेशानियां आ रही हैं । पाकिस्‍तान के गैस डील सस्‍पेंड करने से अब पाकिस्तान को 18 अरब डॉलर यानी 1 लाख 48 हजार करोड़ रुपए का भारी-भरकम जुर्माना देना पड़ सकता है।

पाकिस्तान ने अमेरिका से मांगी थी छूट
वॉयस ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट के मुताबिक ईरान की गैस पाइपलाइन के जरिए पाकिस्तान को प्रति दिन 750 मिलियन क्यूबिक फीट की गैस मिलती। 2009 और 2010 में जब ईरान और पाकिस्तान ने गैस पाइप लाइन प्रोजेक्ट पर फ्रेमवर्क एग्रीमेंट साइन किया तो अमेरिका ने डिप्लोमेसी के तहत और सार्वजनिक तौर पर इस पर कड़ा विरोध जताया था।

मार्च में पाकिस्तान ने अमेरिका में एक डेलीगेशन भेजा था। इसका मकसद अमेरिका से प्रोजेक्ट आगे बढ़ाने के लिए छूट मांगना था। ताकि वो ईरान के चलते उन पर कोई पाबंदी न लगा दे। हालांकि, अमेरिका ने अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं दिया ।

क्या है वो न्यूक्लियर डील जिसके रद्द होने से ईरान पर लगी हैं पाबंदियां
2015 में ईरान ने चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन, जर्मनी और अमेरिका के साथ एक परमाणु समझौता किया। ये समझौता इसलिए हुआ क्योंकि पश्चिम देशों को डर था कि ईरान परमाणु हथियार बना सकता है या फिर वो ऐसा देश बन सकता है जिसके पास परमाणु हथियार भले ही ना हों लेकिन उन्हें बनाने की सारी क्षमताएं हों और कभी भी उनका इस्तेमाल कर सके।

ईरान के साथ परमाणु समझौता कर न्यूक्लियर कैपिसिटी बढ़ाने के उसके शोध कार्यक्रम को काफी नियंत्रित किया गया। ईरान को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल पर जोर देने वाली अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के जरिए अंतरराष्ट्रीय निगरानी में लाया गया। इसके बदले परमाणु कार्यक्रम के चलते ईरान के पर लगे आर्थिक प्रतिबंध हटाए गए।

हालांकि, 8 मई 2018 को तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका को ईरान न्यूक्लियर डील समझौते से बाहर कर लिया। अमेरिका ने 2019 से ईरान पर फिर प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए थे।

publicfirstnews.com

Share.

Comments are closed.